By नवभारत | Updated Date: Jan 23 2019 9:22AM |
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चुनाव आयोग के इस दावे के बावजूद कि भारत में इस्तेमाल की जाने वाली इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) को हैक नहीं किया जा सकता, लंदन में सईद सूजा नामक अमेरिकी हैकर ने ईवीएम को हैक करने का दावा किया और इसका डेमान्सट्रेशन करके भी दिखाया. लोकसभा चुनाव के 4 माह पूर्व किए गए इस तरह के दावे से संदेह को बल मिला है कि ईवीएम में गोलमाल किया जा सकता है. अमेरिकी हैकर का दावा है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में ईवीएम के साथ गड़बड़ी की गई तथा दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने भी ईवीएम से छेड़छाड़ की थी. इसके अलावा यूपी, गुजरात एवं महाराष्ट्र में भी ऐसा ही किया गया. उसका आरोप है कि ईवीएम को हैक करने में रिलायंस कम्युनिकेशन्स भाजपा की मदद करती है.
हैकिंग रोकने का दावा
हैकर सईद सूजा का दावा है कि उसकी टीम हैकिंग रोकने का काम करती है तथा इस टीम ने राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में चुनाव के दौरान ईवीएम में धांधली को रोका. देश में बार-बार ईवीएम पर शक जताया जाता रहा. गोवा, मणिपुर, पंजाब, यूपी व उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद कुछ राजनीतिक दलों ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था. चुनाव आयोग ने ऐसी शिकायतों को बेबुनियाद बताकर ठुकरा दिया था.
रविशंकर प्रसाद का सवाल
ईवीएम पर शक जताने वालों से कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सवाल किया कि 2007 में मायावती यूपी में जीतीं तो ईवीएम ठीक था, अखिलेश यादव 2012 में जीते तो ईवीएम ठीक, ममता बनर्जी 2-2 बार विधानसभा चुनाव जीतीं तो ईवीएम ठीक, अरविंद केजरीवाल और अमररिंदर सिंह जीते तो ईवीएम ठीक थी, लेकिन क्या केवल 2014 में ईवीएम हैक की गई?
भारत में सन 2000 से इस्तेमाल
भारत में कागजी मतपत्रों की जगह ईवीएम का इस्तेमाल सन् 2000 से किया जा रहा है. विभिन्न विधानसभा चुनावों के अलावा 2004, 2009 तथा 2014 के लोकसभा चुनाव ईवीएम से कराए गए. दिसंबर 1977 में चुनाव आयोग ने ईवीएम से चुनाव कराने का सुझाव दिया था. दिसंबर 1988 में संसद ने इस बारे में कानूनी संशोधन किया तथा जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 में धारा 61ए जोड़कर चुनाव आयोग को वोटिंग मशीन के इस्तेमाल का अधिकार दिया. मार्च 1989 से यह प्रावधान लागू हो गया. केंद्र सरकार ने जनवरी 1990 में चुनाव सुधार कमेटी नियुक्त की. अप्रैल 1990 में विशेषज्ञ समिति ने सर्वसम्मति से राय दी कि बिना समय खोए ईवीएम का इस्तेमाल शुरू कर देना चाहिए.
छेड़छाड़ करना असंभव
ईवीएम इलेक्ट्रानिक तरीके से सुरक्षित है जिससे छेड़छाड़ या फेरबदल नहीं किया जा सकता. चुनाव आयोग द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ईवीएम वन टाइम प्रोग्रामेबल होती हैं. ये मशीनें वायर या वायरलेस से किसी अन्य मशीन से जुड़ी नहीं होतीं. नेटवर्किंग न होने से इनके डेटा करप्शन की कोई गुंजाइश नहीं है. ईवीएम के साफ्टवेयर का विकास बीईएल तथा ईसीआईएल के इंजीनियरों द्वारा किया जाता है. साफ्टवेयर ऐसा बनाया जाता है कि मतदाता सिर्फ एक बार वोट डाल सके. मशीन को बाहर से कोई सिग्नल नहीं मिलता. कुछ राजदलों की दलील है कि कुछ विदेशी राष्ट्रों ने ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया है. विदेश के ईवीएम और भारतीय चुनाव आयोग के ईवीएम की आपस में कोई तुलना नहीं हो सकती.
अदालतों की राय
ईवीएम के संबंध में कर्नाटक हाईकोर्ट की राय है कि यह इलेक्ट्रानिक और कंप्यूटर टेक्नोलाजी की बड़ी उपलब्धि है तथा राष्ट्रीय गौरव का विषय है. मतपेटियों की तुलना में ईवीएम बहुत उपयोगी है. मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि ईवीएम से छेड़छाड़ का सवाल ही नहीं उठता. इसमें वायरस की समस्या नहीं आ सकती.
चुनाव के समय मॉक ड्रिल
चुनाव के दिन हर मतदान केंद्र पर उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों के सम्मुख कम से कम 50 वोटों का मॉक पोल कराया जाता है और उनका समाधान होने पर हस्ताक्षर कराए जाते हैं. मॉक पोल के बाद ईवीएम पर थ्रेड सील और ग्रीन पेपर सील लगा दी जाती है. ऐसे व्यापक तकनीकी व प्रशासकीय सुरक्षा उपायों के बाद ईवीएम सुरक्षित हो जाती है.