BOSE

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    नयी दिल्ली. आज यानी मंगलवार 30 नवंबर को मशहूर वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस (Jagdish Chandra Bose) की 163वी जयंती है। जी हाँ, उनका 30 नवंबर, 1858 को जन्म हुआ था। बोस का जन्म बंगाल (अब बांग्लादेश) के ढाका जिले के फरीदपुर के मेमनसिंह में हुआ था। उनके पिता भगवान चन्द्र बोस ब्रह्म समाज के एक बड़े नेता थे और फरीदपुर, बर्धमान एवं अन्य जगहों पर उप-मैजिस्ट्रेट या सहायक कमिश्नर के तौर पर भी पदस्थ थे। लेकिन फिर भी उनके अंदर राष्ट्रीयता का का ऐसा बीज रोपित था कि उन्होंने अपने बेटे जगदीश चंद्र बोस की प्रारंभिक शिक्षा में अंग्रेजी भषा को ही नकार दिया। इसलिए बोस की शुरुआती पढ़ाई बांग्ला भाषा में ही हुई थी।

    लेकिन जगदीश चंद्र बोस तो जैसे कहते हैं न कि ‘पूत के पाँव पालने में’ ही दिख जाते हैं, वे बचपन से ही मेधावी थे। उन्होंने बाद में अंग्रेजी सीखनी शुरू की तो जल्द ही उन्होंने इस भाषा को सीख ली। बचपन से ही उनका मन जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान में अधिक लगता था। बस उनकी शुरुआती पढ़ाई में ही इन विषयों में उनके समुचित रुझान को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें डॉक्टरी की पढ़ाई करने के लिए लंदन भेज दिया। 

    डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए लंदन पहुंचे जगदीश चंद्र बोस

    इसके बाद महज 22 साल उम्र में चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई करने के लिए जगदीश चंद्र बोस, इंग्लैंड की राजधानी लंदन पहुँच गए। लेकिन लंदन पहुंचने के बाद से ही उनका स्वास्थ्य खराब रहने लग गया था, जिसके बाद उन्होंने डॉक्टर बनने का बड़ा निर्णय बदल दिया और वे मेडिकल की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर वापस देश लौट आए।

    छोड़ दी मेडिकल की पढ़ाई 

    इसके बाद जब बोस का मेडिकल में जाने का मन बदला तो वे भौतिकी की तरफ मुद गए। जिसके चलते बाद में उन्होंने भौतिक विज्ञान में कैम्ब्रिज के क्राइस्ट महाविद्यालय में एडमिशन ले लिया। वहां उन्होंने  रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर काम किया और रेडियो की खोज भी की। उन्होंने अपने इस खोज में रेडियो तरंगों को  डिटेक्ट करने के लिए सेमीकंडक्टर जंक्शन का इस्तेमाल किया था और इस पद्धति में कई जरुरी माइक्रोवेव कंपोनेंट्स की खोज की थी। अपनी पढ़ाई पूरी करने की बाद जेसी बोस 1885 में भारत लौटे और भौतिकी के सहायक प्राध्यापक के रूप में प्रेसिडेंसी कॉलेज में शिक्षण कार्य भी प्रारंभ किया। वे वहां 1915 तक रहे।बाद में प्रेसिडेंसी कॉलेज से रिटायर होने के बाद 1917 ई। में इन्होंने बोस रिसर्च इंस्टिट्यूट, कलकत्ता की स्थापना की और 1937 तक इसके डायरेक्टर पद पर कार्यरत रहे।

    बोस ने किया साबित कि पेड़-पौधों को भी होता है दर्द 

    हालाँकि भौतिक विज्ञान की इतनी बड़ी खोज करने वाले जगदीश चंद्र बोस का असल में तो मन हमेशा ही जीव विज्ञान और वनस्पति विज्ञान व पुरातत्व में ही रमता था। वैसे भी इसमें तो उनकी रूचि थी ही। उन्होंने माइक्रोवेव के वनस्पति के टिश्यू पर होने वाले असर का भी गहन अध्ययन किया। वहीं पौधों पर बदलते हुए मौसम से होने वाले असर का भी एक व्यापक अध्ययन भी किया। इसके साथ ही रासायनिक इन्हिबिटर्स (inhibitors) का पौधों पर हो रहे असर का पुरजोर अध्ययन किया और बदलते हुए तापमान से होने वाले पौधों पर पड़ने वाले असर पर ही अध्ययन किया। 

    जगदीश चन्द्र बोस को मिले अनेक सम्मान

    इसके साथ ही तमाम सैम-विषम परिस्थितियों में सेल मेम्ब्रेन-पोटेंशियल के बदलावों के विश्लेषण के बाद वह इस बड़े निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि पौधे भी बहुत संवेदनशील होते हैं। इतना ही नहीं तमाम पेड़-पौधे ‘दर्द’ भी महसूस कर सकते हैं। वे ‘प्रेम’ का भी अनुभव कर सकते हैं। विज्ञान में अपने अभूतपूर्व खोजों के लिए बोस को 1917 में “नाइट” (Knight) की बड़ी उपाधि दी गई थी। हालाँकि इसके पहले उन्हें 1896 में लंदन विश्‍वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि भी मिली थी । वे 1920 में रॉयल सोसायटी के फेलो चुने गए थे। इसके साथ ही इन्स्ट्यिूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एण्ड इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियर्स ने जगदीष चन्द्र बोस को अपने ‘वायरलेस हॉल ऑफ फेम’ में भी सम्मिलित किया था।