लैपटॉप-मोबाइल के अभाव में 2.69 करोड़ बच्चे शिक्षा से वंचित यह सरकार की प्राथमिकता क्यों नहीं?

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    अच्छी शिक्षा किसी भी राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य की बुनियाद होती है. यह सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता रहनी चाहिए कि देश के हर बच्चे को पढ़ने-लिखने का अवसर मिले और कोई इससे वंचित न रहे. सरकार यह नहीं कह सकती कि उसके पास साधन नहीं है. जब वह 22,000 करोड़ की लागत से सेंट्रल विस्टा बनाने की महत्वाकांक्षी पहल कर सकती है, सांसदों को इतना वेतन और सुविधाएं दे सकती है तो क्यों शिक्षा के उद्देश्य से साधनहीन बच्चों को पढ़ाई के लिए मोबाइल और लैपटॉप नहीं उपलब्ध करा सकती? कोरोना आपदा व लॉकडाउन की वजह से बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई के लिए मजबूर हुए हैं. चौंकानेवाला तथ्य सामने आया है कि 26 राज्यों के 2.69 करोड़ बच्चों के पास लैपटॉप या मोबाइल नहीं है, जिस कारण वे पढ़ाई से दूर हो गए हैं. शिक्षा से वंचित बच्चों की तादाद इससे भी ज्यादा होगी क्योंकि 5 राज्यों यूपी, महाराष्ट्र, मणिपुर, अरुणाचल और गोवा के आंकड़े अभी केंद्र सरकार तक पहुंचे ही नहीं हैं.

    बिहार सबसे ज्यादा प्रभावित

    ऑनलाइन एजुकेशन में डिजिटल डिवाइस ही पढ़ाई का एकमात्र जरिया है लेकिन बेहद दुख का विषय है कि करोड़ों बच्चे इससे वंचित हैं. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में अपने लिखित जवाब में बताया कि इस मामले में बिहार की स्थिति सबसे खराब है. यहां 1.43 करोड़ छात्रों के पास लैपटॉप और मोबाइल नहीं है. इसी तरह झारखंड में 35.32 लाख, कर्नाटक में 31.31 लाख, असम में 31.06 लाख, उत्तराखंड में 21 लाख छात्रों के पास डिजिटल डिवाइस नहीं है. लॉकडाउन में बंद पड़े स्कूलों को समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसी स्थिति में इन छात्रों को ऑनलाइन कैसे पढ़ाएं! जिस देश में लोग बेरोजगारी और महंगाई से जूझ रहे हैं और गुजर-बसर करना मुश्किल है, वे अपने बच्चों के लिए मोबाइल और लैपटॉप कैसे खरीद पाएंगे?

    समस्या से कैसे निपटें

    केंद्र व राज्य सरकारों को स्कूली शिक्षा को प्राथमिकता देते हुए किसी न किसी तरह बच्चों को डिजिटल डिवाइस उपलब्ध कराना चाहिए. भारत 2024 तक 5 ट्रिलियन का लक्ष्य रखने वाली दक्षिण एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्था है. वह अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम, रक्षा क्षेत्र, विकास योजनाओं पर बड़ी रकम खर्च कर रहा है. शिक्षा क्षेत्र भी एक तरह का राष्ट्रीय निवेश है जो अगली पीढ़ी के डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, टेक्नोक्रेट, प्रशासक, अर्थशास्त्री तैयार करेगा. सरकार शिक्षा मंत्रालय के बजट, सांसद निधि तथा अन्य समाज कल्याण योजनाओं के लिए निर्धारित राशि से बच्चों को डिजिटल डिवाइस उपलब्ध कराए. क्या पेट्रोल-डीजल की बढ़ी एक्साइज ड्यूटी में से कुछ अंश इसके लिए नहीं निकाला जा सकता? कुछ सरकारी विभागों के अनावश्यक खर्च में कटौती कर इसके लिए रकम जुटाई जा सकती है. अमेरिका में हर बच्चों को मुफ्त लैपटॉप उपलब्ध कराया गया. भारत सरकार ठान ले तो यहां भी ऐसा हो सकता है.

    सामाजिक संस्था व स्कूल भी विचार करें

    विभिन्न सामाजिक संस्थाएं, चैरिटेबल ट्रस्ट, उद्योग घराने स्कूली बच्चों को डिजिटल डिवाइस उपलब्ध कराने में अपना योगदान दे सकते हैं. फिल्मोद्योग भी इसमें अपना योगदान दे सकता है. करोड़ों रुपए कमाने वाले प्रोड्यूसर, हीरो-हीरोइन सामाजिक सरोकार समझकर इसमें हाथ बंटाएं. उन प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधन को भी सोचना चाहिए जो स्कूल बंद रहने पर भी मोटी रकम फीस के रूप में वसूल करते रहे. जब उन्होंने शिक्षकों की वेतन कटौती की है, स्टाफ कम किया है तथा बिजली-पानी व मेंटनेंस का खर्च बचा है, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी बंद हैं तो क्या वे वंचित बच्चों के लिए डिजिटल डिवाइस देने में सहयोग नहीं कर सकते? यदि थोक में खरीदी की जाए तो डिजिटल डिवाइस निर्माता कंपनियां भी रियायती दर में लैपटॉप व मोबाइल दे सकती हैं. यह भी हो सकता है कि यह वस्तुएं दे दी जाएं और फिर किश्तों में थोड़ी-थोड़ी रकम वसूल की जाए. कम से कम पढ़ाई का नुकसान तो नहीं होगा.