भारत जैसे उदार और सहिष्णु देश में कुछ लोग बेखौफ गद्दारी की जुबान बोलते हैं. ऐसा करने वाले अपनी असलियत उजागर करते हैं कि उनकी सोच कितनी गिरी हुई और विश्वासघाती हैं.
भारत जैसे उदार और सहिष्णु देश में कुछ लोग बेखौफ गद्दारी की जुबान बोलते हैं. ऐसा करने वाले अपनी असलियत उजागर करते हैं कि उनकी सोच कितनी गिरी हुई और विश्वासघाती हैं. देश की जनता ऐसे तत्वों को कदापि बर्दाश्त नहीं करेगी जो जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री व नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला की यह कहने की हिम्मत कैसे हुई कि उन्हें उम्मीद है कि चीन के समर्थन से जम्मू-कश्मीर में फिर से अनुच्छेद 370 लागू किया जाएगा? फारूक ने यह भी नहीं सोचा कि भारत की संप्रभुता में कोई बाहरी देश कैसे हस्तक्षेप कर सकता है? हमारा संविधान और संसद हर देशवासी के लिए सर्वोच्च है. भारत की संसद ने प्रस्ताव पारित कर अनुच्छेद 370 को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया. यह अनुच्छेद एक अस्थायी प्रावधान था जिसने शेष भारत और जम्मू-कश्मीर के बीच अलगाव पैदा कर रखा था. विशेष दर्जे के नाम पर इतने वर्षों तक वहां अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवारों की मनमानी चलती रही और आल इंडिया हुर्रियत कांफ्रेंस जैसी भारत विरोधी ताकतें पनपती रहीं. अनुच्छेद 370 एक ऐसा बदनुमा दाग था जिसे मिटा दिया गया. इसके हटने के बाद ही अब जम्मू-कश्मीर को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाना संभव हो पाया है.
अनुच्छेद 370 ने बढ़ाया अलगाव और आतंक
सर्वविदित है कि जब तक अनुच्छेद 370 लागू था, भारत के किसी भी राज्य का व्यक्ति न तो जम्मू-कश्मीर में बस सकता था, न वहां उद्योग-धंधा खोल सकता था. वहां वह कोई संपत्ति या जमीन भी नहीं खरीद सकता था, सिर्फ पर्यटक के रूप में जा सकता था. इस वजह से वहां न तो कोई निवेश हो सका, न उद्योगों का विकास. फिर लोगों को रोजगार कैसे मिलता? शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, व्यापार, बुनियादी ढांचे के विकास सभी बातों में कश्मीर पिछड़ा रह गया. केंद्र से दी जाने वाली मोटी रकम वहां के नेता हड़पते रहे और जनता बेबस बनी रही. अलगाव पैदा करने वाले अनुच्छेद 370 के जारी रहते ही लाखों हिंदुओं (कश्मीरी पंडितों) को घाटी से खदेड़ा गया. वे अपना पुश्तैनी घर बार, संपत्ति छोड़कर पलायन करने और जम्मू व दिल्ली के शरणार्थी कैम्पों में रहने को मजबूर हुए थे. इस अनुच्छेद ने ऐसे जख्म दिए जिनकी भरपाई मुश्किल है. इस अलगाववादी धारा की छत्रछाया में कश्मीर में आतंकवाद पनपता रहा और देशद्रोही ताकतें खुलकर खेलती रहीं.
स्वार्थी सियासत की बेड़ियों से मुक्ति
अब जम्मू-कश्मीर स्वार्थी सियासत की बेड़ियों से मुक्त है. अब्दुल्ला खानदान की 3 पीढ़ियों (शेख मोहम्मद अब्दुल्ला, फारुक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला ने वहां हुकूमत की. मुफ्ती मोहम्मद सईद के अलावा उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने भी सत्तासुख भोगा. ये सभी नेता जनता की भलाई करने की बजाय केंद्र सरकार को ब्लैकमेल करते हुए राजनीति की रोटियां सेंकते रहे. मुफ्ती मोहम्मद सईद ने तो हद कर दी थी. वीपी सिंह की सरकार में केंद्रीय गृहमंत्री बनाए जाने के 4 दिन बाद मुफ्ती की बेटी रूबिया सईद का नाटकीय अपहरण कांड हुआ. रूबिया को छुड़ाने के बदले कई खूंखार आतंकवादियों को जेल से रिहा किया गया था. कश्मीर में आतंक के शोले भड़कते रहे लेकिन फारूक अब्दुल्ला महीनों लंदन में रहकर ऐश करते रहे. इन नेताओं की पाकिस्तान परस्ती समय-समय पर इनके बयानों से सामने आती रही. फारूक, उमर, मुफ्ती सईद या महबूबा के सत्ता में रहते कश्मीर में तिरंगा फहराना संभव नहीं था. श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में कड़ी सुरक्षा के बीच ध्वजारोहण कर उसे तुरंत उतार लिया जाता था. धारा 370 के लागू रहते वहां यह स्थिति थी.
बर्दाश्त नहीं होगी गद्दारी
अब केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर का तेजी से विकास हो रहा है. वहां सड़क और सुरंग मार्ग बन रहे हैं. उन परिवारों की राजनीति खत्म हो गई जो जम्मू-कश्मीर को देश के अन्य राज्यों के संपर्क से दूर रखने के एकसूत्री एजेंडे पर चल रहे थे और अपने मतलब के लिए आतंकवाद और अलगाववाद का पोषण कर रहे थे. फारूक अब्दुल्ला जिस तरह की बकवास कर रहे हैं, उसके लिए उन्हें या तो जेल भेजा जाए या किसी मानसिक चिकित्सालय! वे मूर्खों के स्वर्ग (फूल्स पैराडाइज) में रह रहे हैं. चीन कौन होता है जो भारत पर अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए दबाव डाले! फारूक अब्दुल्ला को पाकिस्तान या चीन से इतना ही प्रेम है तो वहां चले जाएं. जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. मोदी सरकार वहां का सर्वांगीण विकास कर फारूक जैसे लोगों को आईना दिखा सकती है.