Chief Minister Uddhav Thackeray appealed to Prime Minister Modi, said 'help us'

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    आम तौर पर कहा जाता है कि साझे की खेती में नुकसान ही होता है. देश ने केंद्र में लड़ाखड़ाती साझा सरकारों का हाल देखा है. जहां विचारों या महत्वाकांक्षा का टकराव हुआ, ऐसी सरकार अस्थिरता के भंवर में फंस जाती है. केंद्र की मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार,  वीपी सिंह की जनता दल सरकार और देवगौड़ा-गुजरात की संयुक्त मोर्चा सरकार को क्या हश्र हुआ, सभी जानते हैं. कुछ गठबंधन चुनाव के पहले बनते हैं तो कुछ चुनाव के बाद. जब किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिलता तो साझा सरकार बनाने की नौबत आ जाती है. वैसे गठबंधन की राजनीति के हिमावती इसे गलत नहीं मानते लेकिन जनता को तब विचित्र लगता है जब परस्पर विरोधी विचारधारा की पार्टियां चुनाव के बाद सत्ता हासिल करने के उद्देश्य से बेमेल गठबंधन कर लेती हैं. कहने को तो दावा किया जाता है कि समान न्यूनतम कार्यक्रम के आधार पर सरकार काम करेगी परंतु ऐसा नहीं हो पाता. बार-बार विरोधाभाष देखा जाता है फिर भी सरकार चलती रहती है क्योंकि पॉवर कोई भी नहीं छोड़ना चाहता.

    महाराष्ट्र में 3 पार्टियों की महाविकास आघाड़ी सरकार शिवसेना की महत्वाकांक्षा और एनसीपी के सहयोग की वजह से सत्ता में आई. बीजेपी को राज्य की सत्ता से दूर रखने के लिए एनसीपी और कांग्रेस ने शिवसेना को आगे रखकर महाविकास आघाड़ी बनाई. सत्ता की इस साझेदारी में शिवसेना के कट्टर हिंदुत्व और एनसीपी कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष सोच को लेकर टकराव यदि नहीं हुआ तो इसकी वजह महाराष्ट्र के दिग्गज व अनुभवी नेता शरद पवार का मार्गदर्शन है. राज्य में चुनाव के बाद युति सरकार नहीं बना पाना बीजेपी को बुरी तरह अखर गया. यद्यपि देवेंद्र फडणवीस ने अजीत पवार को साथ लेकर तड़के शपथ ली थी लेकिन सीनियर पवार ने कुछ ही घंटों में पासा पलट दिया और अजीत ने यूटर्न ले लिया था. इसके बाद आघाड़ी सरकार बन गई.

    क्या सरकार अपना टर्म पूरा कर पाएगी

    अब प्रश्न उठ रहा है कि क्या आघाड़ी सरकार पूरे 5 वर्ष चल पाएगी? एनसीपी का तो यही दावा है कि सरकार अपना टर्म पूरा करेगी. दूसरी ओर शिवसेना ने यह कहकर चौका दिया कि सरकार बचाना हमारी जिम्मेदारी नहीं है. जहां तक कांग्रेस का सवाल है, वह एनसीपी के दबाव से परेशान रहती है. एक अवसर पर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कह दिया था कि हम महाराष्ट्र में उस प्रकार से निर्णय नहीं ले सकते जैसा हम राजस्थान और पंजाब में करते हैं. यह स्पष्ट संकेत था कि महाराष्ट्र की सरकार में जूनियर पार्टनर होने की वजह से कांग्रेस मजबूर बनी हुई है. इतने पर भी वह सत्ता में अपना सहभाग छोड़ना नहीं चाहती. दलील यह कि ऐसा करने से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ेगी और बीजेपी को इसका लाभ मिलेगा.

    पवार ने बाल ठाकरे का वादा याद दिलाया

    इस समय जो हलचल देखी जा रही है, वह दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व महाराष्ट्र के सीएम व शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बीच बंद कमरे में हुई बैठक की वजह से है. इससे बीजेपी और शिवसेना के बीच बढ़ी नजदीकियों की अटकलें लगाई जा रही हैं. कुछ को फिक्र है कि क्या फिर से बीजेपी-शिवसेना युति बनने जा रही है? अचानक ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि शरद पवार ने शिवसेना को वादे की पक्की पार्टी बताया! उन्होंने याद दिलाया कि इमरजेंसी के समय जब पूरा देश इंदिरा गांधी के खिलाफ था तो उस समय शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने कांग्रेस को दिया वादा निभाया था. इस वादे के अनुसार बाल ठाकरे ने कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार खड़े नहीं किए थे. शिवसेना भरोसेमंद पार्टी है जो कभी वादाखिलाफी नहीं करती. यह उद्धव ठाकरे को संदेश है कि यदि वे भविष्य में बीजेपी से हाथ मिलाने की सोच रहे हैं तो उन्हें ऐसी योजना नहीं बनानी चाहिए. पवार ने कहा कि अगर कोई महाराष्ट्र में सरकार गिराने की सोच रहा है तो उसे ऐसे सपने नहीं देखने चाहिए.

    असहज महसूस कर रहे हैं सीएम

    चूंकि पश्चिम महाराष्ट्र में अच्छा खासा प्रभाव रखने वाली एनसीपी के अनुभावी और प्रभावशाली मंत्री हैं इसलिए उनकी सरकार में ज्यादा चलती है. उद्धव ठाकरे सीएम बनने से पहले कभी मंत्री नहीं रहे इसलिए वे कहीं न कहीं असहज महसूस करते हैं. यह धारण बन गई है कि अप्रत्यक्ष रूप से यह सरकार शरद पवार ही चला रहे हैं.