पुलिस पर गाज, क्या नेता भी नपेंगे

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    उद्योगपति मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) की 28 मंजिला अट्टालिका ‘ऐंटीलिया के पास जिलेटिन छड़ों से भारी स्कार्पियो और फिर मनसुख हरेन(Mansukh Hiren)की लाश मिलने के बाद मुंबई पुलिस की संगव पर सवाल खड़ा हुआ है. हमेशा की तरह इस बार भी अफसरों पर गाज गिर जाती है. पहले सचिन वझे (Sachin Vaze) और फिर सीपी निशाने पर आ गए. क्या हर वक्त के समान इस समय भी नेता बच जाएंगे?

    परमवीर सिंह को हटाकर उनकी जगह हेमंत नगराले (Hemant Nagrale) को मुंबई का सीपी बना दिया गया  तेल की मामले के बाद वह दूसरा अवसर है जब मुंबई पुलिस की विश्वसनीयता पर संकट आया है. हमेशा की तरह संकट पैदा करने वाले कनिष्ठ स्तर के अधिकारी होते हैं. पुलिस की बड़ी मछलियां उन्हें संरक्षण देती आई हैं. फिर सवाल उठता है कि इन्हें निर्देश कौन देता हैं.यदि मगरमच्छ रूपी नेता इन्हें निर्देश देते हैं और बदले में सरक्षा की गारंटी लेते हैं तो फिर मनसुख हिरेन जैसे लोगों को बेमौत मरने से कौन बचा सकता था?

    सिस्टम को सुधारना है तो असली आपरेटरों तक पहुंचें

    यदि इस सिस्टम को सुधारना है तो इस बार कार्रवाई पुलिस तक सीमित न रखते हुए इन नेताओं पर भी कार्रवाई होनी चाहिए जो असली आपरेटर थे. प्यारो और मोहरों को चलाने वाले पोलिटिकल आपरेटर सिस्टम को दीमक की तरह चाट रहे हैं. बहुत आसानी से एपीआई,पीआई जैसी कनिष्ठ रैक के अधिकारी इनकी चपेट में आ जाते हैं. वैसे कुछ बड़े अधिकारी भी गाहे-बगाहे नेताओं की गुड बुक्स में आना पसंद करते हैं जिस कारण एंटीलिया जैसे प्रकरण को अंजाम दिया जाता है.

    तेलगी घोटाले के समय भी ऐसा ही हाल था

    तेलगी स्टैम्प घोटाले के समय भी आईपीएस अफसरों का गैंगवार अपन चरम पर था. इस बार भी अंदरखाने में इसी तरह की खिचड़ी पक रही है. उस समय भी कई नेता इस गैंगवार को भुना रहे थे और इस बार राजनीतिक दल इसे भुनाने में लगे हुए हैं. सीबीआई, एनआईए, एटीएस जैसी एजेंसियों को आपसी रंजिश का बदला लेने के लिए सुपारी दी जा रही है. सुशांतसिंह राजपूत, की मौत का मामला, कंगना रनौत का केस, अर्णब गोस्वामी का मामला हो या फिर पालघर के साधुओं की हत्या का प्रकरण, ऐसे सारे मामलों में केंद्र और राज्यों की नामचीन एजेंसियों के काबिल अफसर अपने-अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर नंगा नाच कर रहे हैं.