Arnab Goswami arrest case, government and BJP face to face

टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी को लेकर राजनीति शुरू हो गई है.

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टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी को लेकर राजनीति शुरू हो गई है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इसे सत्ता का दुरुपयोग तथा लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर बड़ा हमला करार दिया. बीजेपी का रुख इस मामले को लेकर काफी आक्रामक है. विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने प्रतिक्रिया व्यक्त की कि हिंसा भड़काने की कोशिश करने वालों का साथ दे रही कांग्रेस पार्टी की हर साजिश का भंडाफोड़ करने की कीमत अर्नब गोस्वामी को चुकानी पड़ रही है. टुकड़े-टुकड़े गैंग हो या पालघर के हत्यारे, इनको शरण देने वाले कौन हैं? महाराष्ट्र सरकार का रुख इस बारे में अलग है. राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि कानून से ऊपर कोई नहीं है. पुलिस कानून के मुताबिक उचित कार्रवाई कर रही है. गोस्वामी ने अलीबाग कोर्ट में आरोप लगाया कि पुलिस ने उन्हें, उनके बेटे और परिवारजनों से मारपीट की. उन्हें दवा लेने नहीं दी गई और चप्पल भी पहनने नहीं दिया.

2 वर्ष बाद मामला उठाया गया

सहज प्रश्न उठता है कि 2018 के अन्वय नाईक आत्महत्या प्रकरण की 2 वर्ष बाद पुलिस को कैसे याद आई? वह इतने समय तक निष्क्रिय क्यों बनी रही? अचानक उसे नाईक परिवार को न्याय देने की क्यों सूझी? बताया जाता है कि अलीबाग के आर्किटेक्ट अन्वय नाईक ने रिपब्लिक टीवी चैनल के स्टूडियो की इंटीरियर डिजाइनिंग का काम किया था. इस काम के लिए उसे अर्नब गोस्वामी से 5.40 करोड़ रुपए लेने थे किंतु बार-बार मांगने पर भी गोस्वामी ने उसे रकम नहीं दी, इसलिए मानसिक तनाव में आकर अन्वय नाईक ने अलीबाग के निकट कावीर गांव में आत्महत्या कर ली थी. इसके बाद उसकी मां ने भी खुदकुशी कर ली थी. अपने सुसाइड नोट में अन्वय ने लिखा था कि अर्नब ने बकाया रकम नहीं दी, इसलिए निराश होकर वह आत्महत्या कर रहा है. इस मामले में अन्वय की पत्नी अक्षता की शिकायत पर पुलिस ने मामला दर्ज किया परंतु 2 वर्ष तक कोई भी कार्रवाई नहीं हुई. अचानक सरकार के ध्यान में आया कि अर्नब गोस्वामी अपने टीवी चैनल पर उसकी तीखी आलोचना कर रहा है. सुशांतसिंह राजपूत आत्महत्या प्रकरण पर अर्नब का रुख काफी आक्रामक देखा गया था और मुंबई पुलिस की आलोचना में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी. अर्नब के जोर लगाने से ही वह मामला सीबीआई ने अपने हाथ में लिया था. इसलिए अन्वय नाईक आत्महत्या का मामला इतने समय बाद फिर उठाकर पुलिस सक्रिय हुई. 2 वर्ष पूर्व का मामला अपराध अन्वेषण शाखा को सौंपने का निर्णय गृहमंत्री ने घोषित किया और उसके बाद अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार किया गया. क्या इसे बदले की भावना से की गई कार्रवाई नहीं कहा जाएगा? सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने का नतीजा सामने आया है. यह एक प्रकार से चेतावनी भी है कि कोई सरकार के खिलाफ आवाज उठाने या आलोचना करने की हिम्मत न करे.

क्या असहमति बर्दाश्त नहीं

यह बात अपनी जगह है कि जोर-शोर से चिल्ला-चिल्ला कर अर्नब गोस्वामी जिस तरह बोलते हैं तथा बेखौफ होकर बड़े लोगों का उल्लेख करते हैं, उनका यह तरीका लोगों को शालीनता के खिलाफ लगता है. उन्हें अनुशासित करने की जिम्मेदारी टेलीकास्ट करने वाली न्यूज चैनलों की संस्था की है. इस तरह के बर्ताव के लिए अर्नब गोस्वामी को हिदायत दी जा सकती थी परंतु उनकी अचानक गिरफ्तारी हैरत में डालने वाली है और इससे यही संदेश जाता है कि अभिव्यक्ति की आवाज को दबाया जा रहा है. देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि यद्यपि 1977 में इमर्जेंसी खत्म हो गई लेकिन इस प्रकार की मानसिकता अभी भी कायम है. आपातकाल का समर्थन करने वाली शिवसेना और कांग्रेस जैसी पार्टियां असहमति की आवाज को वैसी ही अलोकतांत्रिक क्रूरता से कुचल रही हैं. यह बताना होगा कि 2018 के आत्महत्या मामले में कौन-सा नया सबूत सामने आया है कि गोस्वामी की गिरफ्तारी जरूरी हो गई? सरकार को यह धारणा दूर करनी होगी कि वह असहमति तथा अभिव्यक्ति की आजादी नापसंद करती है. बीजेपी ने राज्य सरकार की आलोचना की है परंतु क्या स्वयं बीजेपी शासित राज्यों में भी मीडिया के लोगों की देशद्रोह या अन्य आरोपों में गिरफ्तारी नहीं हुई? इस बारे में स्पष्ट नीति बननी चाहिए.