राज्यों को खुद वैक्सीन खरीदने का फरमान, केंद्र क्यों जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है

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    यह केंद्र सरकार का कैसा रवैया है कि संकट की घड़ी में वह अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रही है और कह रही है कि वह विदेश से वैक्सीन का आयात नहीं करेगी. केंद्र चाहता है कि अब राज्य सरकारें और कंपनियां वैक्सीन का आयात करें. केंद्र के इस फैसले से वैक्सीनेशन मुहिम की रफ्तार धीमी पड़ सकती है. अब तक 135 करोड़ की आबादी में से 14 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुका है जबकि 11.8 करोड़ लोगों को केवल अब तक वैक्सीन का पहला शॉट लग पाया है. इस समय रोज कोरोना के 3.5 लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. यह केंद्र का कर्तव्य है कि राज्यों को देशव्यापी कोरोना संकट से निपटने में सहयोग दे. पिछले 3 महीनों में 30 करोड़ हाई रिस्क आबादी में से सिर्फ 40 फीसदी को टीका लगाया गया है. 

    4 राज्यों की मुश्किलें

    कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ व झारखंड ने 1 मई से 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों का टीकाकरण करने में यह कहकर असमर्थता जताई है कि उनके पास वैक्सीन नहीं है, इसलिए निर्धारित तारीख से वे वैक्सीनेशन शुरू नहीं कर पाएंगे. राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने कहा कि हमसे कहा गया है कि वैक्सीनेशन को लेकर सीरम इंस्टीट्यूट से सीधे बात करें. इस इंस्टीट्यूट का कहना है कि केंद्र सरकार से उसे जो आर्डर मिले हैं, उसकी आपूर्ति के लिए उसे 15 मई तक का समय चाहिए, इसलिए वह हमें वैक्सीन देने में फिलहाल असमर्थ है. सवाल है कि यदि कंपनियों को पहले केंद्र सरकार को सप्लाई करनी है तो वो सीधे खरीदी करनेवाली राज्य सरकारों को कैसे आपूर्ति करेंगी? इस वजह से इन 4 राज्य सरकारों ने 1 मई से टीकाकरण को लेकर चिंता जाहिर की है.

    वैक्सीन मैत्री महंगी पड़ी

    केंद्र सरकार ने वैक्सीनेशन में भारतीयों को पहले प्राथमिकता देने की बजाय 6 करोड़ 60 लाख वैक्सीन विश्व के 80 से ज्यादा देशों को निर्यात कर दी थी. निश्चित रूप से नेपाल, बांग्लादेश व श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों को वैक्सीन देना अच्छी बात थी क्योंकि उन देशों से हमारी सीमा लगी हुई है और लोगों का आवागमन होता रहता है. इसके बावजूद दूरदराज के देशों को वैक्सीन का एक्सपोर्ट करना अदूरदर्शिता थी. ये देश भारत पर निर्भर नहीं थे. तब केंद्र सरकार मानकर चल रही थी कि उसने काफी हद तक कोरोना महामारी पर काबू पा लिया है. हम ‘फार्मसी आफ द वर्ल्ड’ बन गए थे और 80 से ज्यादा देशों को उदारतापूर्वक वैक्सीन एक्सपोर्ट कर रहे थे. कुछ को तो उपहार के रूप में भी दे रहे थे.

    अमेरिका का अनुदार रुख

    क्वाड देशों के सम्मेलन में आस्ट्रेलिया, भारत, जापान व अमेरिका के नेताओं ने भारत व प्रशांत क्षेत्र में वैक्सीन उपलब्धता में सहयोग करने और उसे सशक्त बनाने का संकल्प किया था लेकिन इस सम्मेलन के कुछ सप्ताह बाद ही अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि हमारे ही नहीं, विश्व के हित में है कि पहले अमेरिकियों का टीकाकरण किया जाए. इस दौरान भारत के सीरम इंस्टीट्यूट को अमेरिका से वैक्सीन बनाने के लिए कच्चा माल मिलना बंद हो गया. इससे दिक्कतें आने लगीं. यह कैसी रणनीतिक साझेदारी थी जिसमें अमेरिका ने कच्चा माल देना रोक दिया था? अब बताया जा रहा है कि अमेरिका व भारत के एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों) की बैठक हुई जिसमें अजीत डोभाल के प्रयत्नों को सफलता मिली.

    अमेरिका ने कहा कि वह भारत को तेजी से अतिरिक्त सहयोग देने जा रहा है. अमेरिकी मीडिया के अनुसार, अमेरिका के पास 4 करोड़ एस्ट्राजेनेका (कोविशील्ड) वैक्सीन का स्टाक है जिसका यहां इस्तेमाल होने की संभावना नहीं है. बाइडन प्रशासन से कहा गया है कि वह इस वैक्सीन को जरूरतमंद देशों को दे सकता है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंथोनी ब्लिंकेन ने इस मामले में पहल की लेकिन इसमें विलंब हुआ. पिछले एक सप्ताह में कोरोना संकट भारत के लिए काफी विकराल हो गया था. अमेरिका अभी भी रणनीतिक साझेदारी समझौतों को लेकर भारत से और सवाल कर रहा है. तुलना करें तो ट्रम्प प्रशासन के समय अमेरिका ने भारत को वेंटिलेटर दिए थे और हमने उसके मांगने पर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा दी थी.