असम-मिजोरम में खूनी टकराव, 2 राज्यों में हिंसक संघर्ष चिंताजनक

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    राज्यों के बीच सीमा विवाद या नदी जल विवाद होना कोई नई बात नहीं है परंतु यह विवाद उस हद तक नहीं जाना चाहिए जिसमें दोनों राज्यों की पुलिस व नागरिक एक दूसरे से भिड़ जाएं. सामंती युग में एक राजा अपने पड़ोसी राजा से युद्ध किया करता था और हमेशा अशांति मची रहती थी लेकिन अब तो लोकतंत्र है और सभी राज्य भारतीय गणतंत्र के अंग हैं. यदि उनके बीच कोई समस्या है तो उनके नेता आपस में मिल-बैठकर उसे हल कर सकते हैं या केंद्र से हस्तक्षेप की मांग कर सकते हैं. इसके अलावा अदालत का रास्ता भी खुला हुआ है.

    यह अत्यंत चिंता व खेद की बात है कि पूर्वोत्तर के 2 राज्यों असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद के मुद्दे ने हिंसक मोड़ ले लिया तथा दोनों राज्यों की पुलिस व नागरिकों के बीच जमकर झड़प हुई. पहले दोनों तरफ से लाठियां चलीं, जब मामला बढ़ा तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और फिर फायरिंग भी हुई. असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा का आरोप है कि मिजोरम पुलिस ने असम पुलिस पर लाइट मशीन गन (एलएमजी) से गोलियां चलाईं. यह अत्यंत अप्रत्याशित और निंदनीय है कि गोलीबारी में असम पुलिस के 6 जवान मारे गए तथा 50 पुलिसकर्मी जख्मी हो गए. असम के कछार जिले के पुलिस अधीक्षक वैभव चंद्रकांत निंबालकर के पैर में गोली लगी. ऐसा आरोप है कि असम पुलिस की 2 कंपनियों ने मिजोरम के भीतर घुसकर नागरिकों पर लाठी चार्ज किया. क्या ऐसी अराजकता को बर्दाश्त किया जाएगा? सीमा पर दुश्मन से युद्ध होना अलग बात है लेकिन देश के ही 2 राज्यों का एक दूसरे से शत्रुता करना हैरत में डालता है. असम और मिजोरम सीमा पर तनाव की स्थिति बनी हुई है.

    अतिक्रमण हटाने को लेकर विवाद

    जो तथ्य सामने आए हैं, उनके अनुसार असम पुलिस लैलापुर इलाके में राज्य की जमीन की अतिक्रमण से रक्षा के लिए तैनात है. जब असम पुलिस ने अपनी जमीन से अतिक्रमण हटाने का अभियान शुरू किया तो अज्ञात लोगों ने उस पर बमों से हमला किया. यदि उपद्रवियों को मिजोरम का समर्थन था तो यह बहुत ही गलत बात है. कानून हाथ में लेने का किसी को अधिकार नहीं है. यदि 2 राज्यों की पुलिस आपस में झगड़े तो यह कानून व्यवस्था और संवैधानिक ढांचे को गंभीर चुनौती है. इस बारे में केंद्र को चाहिए कि सख्त हिदायत दे.

    ब्रिटिश शासन की देन है सीमा विवाद

    दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद ब्रिटिश शासनकाल के समय की देन माना जाता है. पहले असम का क्षेत्रफल काफी बड़ा था. असम में अंग्रेजों के चाय बागान बराक घाटी तक फैले थे. उनके विस्तार से मिजोरमवासियों को समस्या हुई जो कि लुशाई पहाड़ी क्षेत्र में रहते थे. दोनों राज्यों के बीच 2 तरह की सीमाएं हैं. 1875 में असम गैजेट में असम की दक्षिणी सीमा कछार जिले को बसाया गया. इसके बाद 1933 में लुशाई हिल्स के त्रिकोण से मणिपुर की सीमा पुन: निर्धारित की गई. मिजोरम के लोग इस सीमा को नहीं मानते. उनका कहना है कि 1875 की सीमा उनके प्रमुखों से चर्चा कर निर्धारित की गई थी, उसे ही माना जाए. मिजोरम के 3 जिलों आइजोल, कोलासिब और मामित की 164.6 किलोमीटर लंबी सीमा असम के कछार, हेलाकांडी और करीमगंज जिलों से लगती है.

    इसमें दोनों प्रदेशों के निवासी एक दूसरे पर घुसपैठ का आरोप लगाते हैं. हाल के समय में यह झड़पें काफी बढ़ गई हैं. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक ली थी, जिसके दूसरे ही दिन यह घटना होना आश्चर्यजनक है. सीमा पर हिंसक झड़पों को लेकर असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा और मिजोरम के सीएम जोराम थांगा सोशल मीडिया पर आपस में भिड़ गए. बाद में अमित शाह ने दोनों से फोन पर बात कर शांति कायम रखने के लिए राजी किया. इसके बाद दोनों राज्यों के सुरक्षा बल विवादित स्थानों से पीछे हट गए. असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि मैं एक इंच जमीन भी किसी को नहीं दे सकता. अगर कल संसद एक कानून बना दे कि बराक वैली मिजोरम को दे दी जाए तो मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है परंतु जब तक संसद यह फैसला नहीं देती, मैं किसी व्यक्ति को असम की जमीन नहीं लेने दूंगा.