NDA सरकार के 7 वर्ष पूरे होने पर जश्न मनाने लायक है भी क्या?

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    बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सभी बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर निर्देश दिया है कि कोई भी केंद्र की एनडीए सरकार के 7 वर्ष पूरे होने पर 30 मई को जश्न न मनाएं. नड्डा का परामर्श अपनी जगह है लेकिन सवाल उठता है कि 7 साल पूरे होने पर जश्न मनाने लायक है भी क्या? ऐसी कौन सी ठोस उपलब्धियां हैं जिनके आधार पर कोई जश्न मनाने की सोचे? कोरोना महामारी और बड़े पैमाने पर मौतों में देश दहल गया है. लॉकडाउन जैसी स्थितियों से व्यापार-व्यवसाय, काम-धंधा चौपट है. अर्थव्यवस्था गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है. मनमानी नीतियों से जनता में असंतोष है. सुशासन और जवाबदेही का पूरी तरह अभाव है. देशहित को ताक पर रखकर नेतृत्व ने अपनी विश्वस्तरीय छवि बनाने की कोशिश की. बीजेपी के अभिभावक संगठन आरएसएस ने भी कोरोना संकट के लिए केंद्र सरकार के गाफिल रवैये और जनता की लापरवाही दोनों पर उंगली उठाई है.

    2014 में जब बीजेपी ने जीत हासिल की थी तो उसके पीछे अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की बुनियाद थी. यूपीए सरकार को 2जी घोटाला व कोयला घोटाला ले डूबा. मतदाता ने बदलाव का वोट देना चाहा और जनता की उम्मीदों पर सवार होकर मोदी सरकार सत्ता में आ गई. मोदी की वाकपटुता का बीजेपी की सफलता में बहुत योगदान रहा लेकिन उसमें भी जुमलेबाजी कम नहीं थी. प्रधानमंत्री का मिनिमम गवर्नमेंट एंड मैक्सिमम गवर्नेंस (न्यूनतम सरकार अधिकतम सुशासन) का नारा कहीं चरितार्थ होता दिखाई नहीं दिया. सरकार का हस्तक्षेप लगातार बढ़ता चला गया. जनमत को जानने या विपक्ष की राय सुनने की जरूरत ही किसे थी! जो मन में आया, करते चले गए. अधिनायकवादी प्रवृत्तियों के बुलडोजर ने लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को कुचलने में कोई कसर बाकी नहीं रखी.

    मनमाने निर्णय होते रहे

    नोटबंदी, जीएसटी जैसे अचानक लिए गए निर्णयों से जनता को भारी असुविधा हुई. कितने ही लघु-मध्यम उद्योग व निर्माण क्षेत्र नोटबंदी की वजह से बंद हो गए. बीजेपी का समर्थक व्यापारी वर्ग भी इससे परेशान रहा. किसान आंदोलन भड़कने की यही वजह रही कि सरकार ने 3 कृषि कानून आपाधापी में पारित कर लागू कर दिए. इसके लिए न किसान संगठनों की राय ली गई, न संसद में चर्चा कराई गई. चयन समिति के पास भी बिल नहीं भेजे गए. मनमानी नीतियां लागू करने की यह भी वजह थी कि विपक्ष कमजोर होने से सरकार के हौसले लगातार बढ़ते चले गए. आर्थिक अपराधी घोटाले करके विदेश भागते रहे लेकिन माल्या, नीरव मोदी व मेहुल चोकसी को वापस लाने में सरकार कामयाब नहीं हो पाई.

    एकपक्षीय संवाद ही सब कुछ

    लोकतंत्र में परस्पर संवाद, चर्चा और बहस जरूरी है. सरकार से असहमति जताने को राष्ट्रद्रोह मानने की असहिष्णु प्रवृत्ति बढ़ती चली गई. पीएम सिर्फ अपने ‘मन की बात’ करते आए हैं. वे प्रेस कांफ्रेंस या इंटरव्यू से दूर रहते हैं. इससे उन्हें जन मन की थाह नहीं मिल पाती. विपक्ष के प्रश्नों व शंकाओं का सही-सही जवाब नहीं दिया जाता. जवाबदेही का भारी अभाव है.

    अंतरराष्ट्रीय छवि की फिक्र

    प्रधानमंत्री मोदी ने जनवरी 2021 की दावोस बैठक में घोषित किया कि भारत उन सफलतम देशों में है जिसने महामारी से लोगों की जान बचाई है. भारत ने वैक्सीन मैत्री के तहत 95 देशों को 35.7 मिलियन वैक्सीन का निर्यात किया तथा बांग्लादेश, नेपाल, भूटान के अलावा अफगानिस्तान, ओमान, बहरीन, मंगोलिया, फिलीपीन्स, मालदीव, मारीशस आदि देशों को उपहार स्वरूप वैक्सीन भेजी. जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो भारत वैक्सीन की कमी से जूझता नजर आया. कोरोना से बड़े पैमाने पर हुई मौतों से हर कोई विचलित है. भारत की अर्थव्यवस्था ऐसे दौर में है कि अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां उसे नकारात्मक रेटिंग दे सकती हैं.

    लोकप्रियता में गिरावट

    बंगाल व तमिलनाडु के चुनावी नतीजों ने बीजेपी को बुरी तरह हताश किया. कोरोना संकट के दौर में भी सेंट्रल विस्टा का निर्माण जोर-शोर से जारी रखने से सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई. उसकी प्राथमिकता पर सवाल उठाए जाने लगे. 2019 के चुनाव के बाद बीजेपी का प्रभाव और मोदी की लोकप्रियता को पहले के समान नहीं माना जा सकता. ऐसे में बीजेपी आखिर किस उपलब्धि के आधार पर अपनी सरकार की 7वीं वर्षगांठ का जश्न मनाए? नड्डा ने सही कहा कि जश्न मनाने की बजाय बीजेपी शासित राज्य कोरोना से अनाथ हुए बच्चों के कल्याण की योजना बनाएं.