हिमंत बिस्व सरमा को CM पद, असम में BJP दो फाड़

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    आखिर असम में नेतृत्व की गुत्थी सुलझ गई. बीजेपी आलाकमान ने असम में राजनीतिक स्थायित्व तथा अपनी पकड़ को और मजबूत करने के लिहाज से लोकप्रिय नेता हिमंत बिस्व सरमा को ही राज्य का नया मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर लिया. सरमा ने विधानसभा चुनाव में पार्टी का धुआंधार प्रचार किया था. यह निर्णय अबतक पीएम रहे सर्बानंद सोनोवाल के समर्थकों को पसंद नहीं आया. इसलिए असम में बीजेपी दो फाड़ होने के आसार बढ़ गए हैं. सोनोवाल समर्थकों को लगता है कि उनके नेता के मुंह से कौर छीन लिया गया है.

    राज्य में पहले भी गुटबाजी रही है. असम में चुनाव नतीजे आने के बाद दोनों नेताओं के बीच सीएम पद को लेकर होड़ तेज हो गई. राज्य में बीजेपी को 75 और कांग्रेस को 50 सीटें मिलीं. दोनों नेताओं के बीच कश्मकश होती देखकर पार्टी आलाकमान ने हिमंत बिस्व सरमा और सर्बानंद सोनेवाल को दिल्ली बुलाया. दोनों से अलग-अलग और फिर साथ बैठकर बातचीत की गई. यद्यपि बीजेपी की पहली पसंद पार्टी निर्देशों का पालन करते हुए अनुशासन में रहनेवाले सर्बानंद सोनोवाल ही थे लेकिन असम में हिमंत बिस्व सरमा की लोकप्रियता और व्यापक जनाधार ने बीजेपी पर दबाव बना दिया. यही वजह है कि 2 मई को चुनावी नतीजे आने के बाद भी इतने दिनों तक बीजेपी मुख्यमंत्री का नाम फाइनल नहीं कर पाई थी.

    केंद्रीय नेतृत्व का फैसला

    दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन सचिव बीएल संतोष ने दोनों नेताओं से बातचीत की और पार्टी के हित में एकता व सहयोग बनाए रखने को कहा. सोनोवाल से कहा गया कि वे 5 वर्ष तक सीएम रह चुके हैं इसलिए अब वे हिमंत बिस्व सरमा को मौका देने के लिए पीछे हट जाएं. सोनोवाल को यह भी समझाया गया कि हिमंत को मुख्यमंत्री बनाने से ही पार्टी राज्य में मजबूत बनी रह सकती है. हिमंत समर्थकों ने पहले ही संकेत दे दिया था कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो राज्य में बीजेपी की सरकार बहुत दिन तक नहीं चल पाएगी.

    राहुल से नाराज होकर छोड़ी थी कांग्रेस

    हिमंत बिस्व सरमा जब कांग्रेस में थे तो कांग्रेस आलाकमान से असम के अहम मुद्दों पर बातचीत करना चाहते थे लेकिन दिल्ली जाने पर 2 दिन उन्हें मिलने का समय नहीं दिया गया बाद में जब वे राहुल गांधी से मिलने पहुंचे तो राहुल उनकी बातों पर ध्यान देने की बजाय अपने कुत्ते को बिस्किट खिलाते रहे. राहुल का यह रवैया हिमंत को बिल्कुल पसंद नहीं आया और उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. राहुल इस बात को समझ नहीं पाए कि तरूण गोगोई के बाद असम में कांग्रेस का क्या होगा.

    जनता में गहरी पैठ

    हिमंत बिस्व सरमा छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे. वे पहले आल असम स्टुडेंट यूनियन (आसू) की गुवाहाटी इकाई के महासचिव थे. फिर वे कांग्रेस में शामिल हो गए व 2001 में जालुकबारी से विधानसभा चुनाव लड़ा. वे इस सीट से 5 बार विधायक चुने गए. वे वकालत से सियासत में आए. 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई से विवाद के बाद उन्होंने कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया और पूर्वोत्तर में बीजेपी की बड़ी ताकत बन गए. उन्होंने पूर्वोत्तर के कई राज्यों में बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाने का काम किया. उनकी संगठन कुशलता व नेतृत्व क्षमता पार्टी भली भांति जानती है. इसलिए पार्टी ने सोनोवाल की बजाय सरमा को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया.