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कुछ लोग हर वक्त अपना रोना रोते बैठते हैं कि भैया, पगार कम है, ऐसे में घर नहीं चलता! ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी ऐसे ही लोगों की जमात में शामिल हैं

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कुछ लोग हर वक्त अपना रोना रोते बैठते हैं कि भैया, पगार कम है, ऐसे में घर नहीं चलता! ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी ऐसे ही लोगों की जमात में शामिल हैं. हालांकि उन्हें प्रतिमाह 12,00,000 रुपए सैलरी मिल रही है, फिर भी वे संतुष्ट नहीं हैं. बोरिस को कौन समझाए कि उन्हें तो हर महीने इतनी सारी रकम मिल रही है, जबकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सालभर में 24 लाख रुपए ही मिलते हैं, यानी हर महीने सिर्फ 2 लाख! ब्रिटेन तो आकार में छोटा देश है, जबकि मोदी को इतने बड़े भारत का नेतृत्व संभालना पड़ता है. ब्रिटिश पीएम को समझना चाहिए कि वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को नहीं मिलता. व्यक्ति दुनिया में खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है, फिर धन का इतना मोह किस काम का! बोरिस को याद आते हैं वो दिन जब किसी अखबार के लिए कॉलम लिखने पर उन्हें 22 लाख रुपए प्रतिमाह मिलते थे. पीएम बनने से पहले 2 भाषण देकर ही उन्होंने डेढ़ करोड़ रुपए कमा लिए थे. उन्हें ठंडे दिल से सोचना चाहिए कि जो मोटी कमाई वाला अतीत था, वह तो व्यतीत हो चुका. कमाई का लालच था तो वही गोरखधंधा करते रहना था, पीएम क्यों बने, क्या हकीमजी ने कहा था? नियम से जितना वेतन तय है, उतना ही तो मिलेगा. नहीं जंचता तो फौरन इस्तीफा दे दो. किसी ने हाथ थोड़े ही पकड़ रखा है. कॉलम लिखो, दौलत कमाओ. भाषण दो, पैसा बटोरो लेकिन याद रखो कि पीएम पद का मान-सम्मान, ग्लैमर, विदेशी हस्तियों की सोहबत में बराबरी से बैठने का मौका फिर नहीं मिलेगा. बोरिस जॉनसन को इस बात का मलाल है कि सिंगापुर और हांगकांग के पीएम उनसे कई गुना ज्यादा सैलरी ले रहे हैं. ब्रिटिश पीएम हिंदी नहीं जानते अन्यथा उनसे कहा जा सकता था- रूखी-सूखी खाय के ठंडा पानी पी, देख पराई चोपड़ी क्यों ललचाए जी! उन्हें यह कहावत भी सुनाई जा सकती थी- गोधन, गजधन, बाजीधन और रतनधन खान, जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान! यदि फिर भी ब्रिटिश पीएम को पैसे की इतनी हाय-हाय है तो वे अपने पद को बाय-बाय करके सॉलिड कमाई वाला कोई पेशा अपना लें.