चीन (China) के साथ भारत की सीमा बहुत लंबी है और वह हमेशा घुसपैठ तथा भारतीय क्षेत्र पर कब्जा करने की फिराक में रहता है. लद्दाख में गलवान घाटी (Galwan Valley) में चीन की घुसपैठ और भारतीय सेना के साथ उसकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की खूनी झड़प गत वर्ष सुर्खियों में रही. लद्दाख की स्थिति लगातार तनावपूर्ण बनी रही. कितनी ही बार कमांडर स्तर पर घंटों चर्चा हुई लेकिन चीन का अड़ियल रवैया कायम रहा. भारत ने भी लद्दाख में दबाव बनाए रखा और भीषण सर्दी में भी अपनी सेना को तैनात रखा.
बीच में चीन की फौज भारी ठंड से घबराकर कुछ पीछे हट गई जबकि सियाचिन और कारगिल की उंचाइयों पर तैनाती का अनुभव रखने वाली हमारी सेना मजबूती से टिकी रही. लद्दाख में भारत का दबाव बढ़ता देखकर चीन ने चालाकी दिखाई तथा अरुणाचल प्रदेश की सीमा के साढ़े चार किलोमीटर अंदर घुसपैठ कर एक गांव बसा लिया और किसी को भनक तक नहीं लगी. यह गांव अगस्त 2019 तक अस्तित्व में नहीं था लेकिन नवंबर 2020 में सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों में इस गांव और वहां चीन द्वारा बनाए गए मकानों की पुष्टि हो गई. चीन ने अरुणाचल के सुबनसिरी जिले में इस गांव का निर्माण ऐसे समय किया जब पश्चिमी सेक्टर के लद्दाख में भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने हैं. कोई नहीं जानता कि क्या इस गांव में चीन ने अपने सैनिकों को बसा रखा है?
पहले पता क्यों नहीं चला
जब सैटेलाइट से चप्पे-चप्पे की तस्वीर खींच सकते हैं तो उस समय क्यों नहीं पता चल पाया जब चीन यह गांव बसाने और वहां पक्के मकान बनवाने में लगा था? क्या उस समय सैटेलाइट से निरीक्षण नहीं हो रहा था? यह कैसी गफलत है, चीन हमारे क्षेत्र में गांव बसाता रहा और गुप्तचर एजेंसियों को भनक तक नहीं लगी! अब बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने यह मामला उठाते हुए कहा कि वे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से इस बारे में बातचीत करेंगे. चीन अरुणाचल को तवांग कहता है और उस पर अपना दावा करता आया है. वहां के नागरिकों को वह अपना बताते हुए कहता है कि उन्हें चीन आने के लिए वीजा लेने की जरूरत नहीं है.
दगाबाज और विस्तारवादी देश
चीन अत्यंत धूर्त और दबागाज पड़ोसी देश है जो अपनी विस्तारवादी नीतियों से बाज नहीं आता. इसकी इन हरकतों से रूस और मंगोलिया जैसे देश भी परेशान हैं. 1957 में चीन ने तिब्बत हड़प लिया और वहां के शासक व धर्मगुरु दलाई लामा को जान बचाकर भारत आना पड़ा. सदियों से तिब्बत की भूमिका भारत और चीन के बीच बफर स्टेट की थी लेकिन चीन ने तिब्बत पर कब्जा करने के बाद 1962 में भारत पर हमला किया और हमारी 22000 वर्ग मील जमीन हथिया ली. यह अप्रत्याशित था क्योंकि चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई (Prime Minister Chou En Lai) ने दिल्ली आकर जवाहरलाल नेहरू के साथ एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करने वाले पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और तब हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगे थे. नेहरू एशिया के 2 बड़े देशों चीन और भारत की मित्रता व एकजुटता का स्वप्न देख रहे थे लेकिन चीन ने खुद को बिग ब्रदर साबित करने और नेहरू का विश्व बिरादरी में कद घटाने के लिए नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (नेफा) पर हमला किया. हमारा पवित्र तीर्थस्थल कैलाश मानसरोवर भी तभी से चीन के कब्जे में है. चीन के इस विश्वासघात से नेहरू को इतना आघात लगा कि 27 मई 1964 को उनका देहावसान हो गया था.
सीमा रेखा मानने को तैयार नहीं
अंग्रेज शासकों ने चीन और भारत के बीच ‘मैकमोहन लाइन’ नामक सीमा रेखा निर्धारित की थी लेकिन चीन इसे मानने से इनकार करता है. भारत की इतनी भूमि हड़पने के बाद भी वह नए क्षेत्रों पर दावा करता है. हमारे अरुणाचल राज्य को वह दक्षिणी तिब्बत बताकर उस पर अपना हक जताता है और उस पर गिद्ध दृष्टि लगाए हुए है. अरुणाचल के बीजेपी सांसद तापिर गाओ ने कहा कि चीन 80 के दशक से जमीन पर कब्जा किए बैठा है. आर्मी इंटेलिजेंस ने उस समय की भारत सरकार को रिपोर्ट अवश्य दी होगी. अरुणाचल प्रदेश में चीन ने सिर्फ गांव ही नहीं, बल्कि मिलिट्री बेस व हाइड्रोपावर स्टेशन भी बनाए हैं. केंद्रीय मंत्री किरण रिजुजू अरुणाचल के ही हैं जो समय-समय पर चीन की हरकतों का विरोध करते रहते हैं. इतने दशक बीत गए लेकिन चीन से सीमा विवाद अब तक हल नहीं हो पाया है. एक हमलावर अतिक्रमणकारी देश से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह सीमा पर शांति बनाए रखेगा. हमारी उत्तरी सीमा पर निरंतर खतरा बना हुआ है.