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    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले के बाद अयोध्या में रामजन्म भूमि पर भगवान राम (Ram Mandir) का भव्य मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया. इसी प्रकार देश के जन-जन की आकांक्षा मथुरा में कृष्ण जन्मस्थल एवं वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर को भी उस अतिक्रमण से मुक्त कराने की है जहां मुगल शासन के समय मस्जिद बना दी गई थी. अब वाराणसी के सिविल कोर्ट के जज आशुतोष तिवारी (Ashutosh Tiwari) ने आदेश जारी किया है कि काशी विश्वनाथ मंदिर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराया जाए.

    कोर्ट के आदेशानुसार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) Archaeological Survey of India (ASI) पता लगाएगा कि विवादित स्थल पर मंदिर तो नहीं था? वहां की मूल संरचना में किसी तरह का बदलाव तो नहीं किया गया? कोर्ट ने उत्तरप्रदेश सरकार को इस सर्वेक्षण का खर्च उठाने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने केंद्र व यूपी सरकार को पत्र लिखकर इस मामले में एएसआई के महानिदेशक को 5 सदस्यीय समिति बनाकर समूचे परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया. ये सदस्य पुरातत्व विज्ञान (आर्कियोलॉजी) के विशेषज्ञ होंगे. इसके अलावा एक पर्यवेक्षक भी नियुक्त किया जाएगा जो किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय का शिक्षाविद तथा पुरातत्व का जानकार होगा. इस समिति को विवादित स्थल के हर कोने में जाने का अधिकार होगा.

    औरंगजेब ने मंदिर तोड़ा था

    स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से वकील विजयशंकर रस्तोगी ने इस सर्वेक्षण की मांग करते हुए याचिका दायर की थी. उनका दावा है कि ज्ञानवापी मस्जिद हिंदुओं की जमीन पर बनी है. कोर्ट हिंदुओं को वहां पूजा करने और मंदिर का पुनर्निर्माण करने का अधिकार दे. याचिकाकर्ता का कहना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को नष्ट कर वहां मस्जिद बनाई गई थी. याचिका में कहा गया कि 1664 में मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त किया था और मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल कर मस्जिद बनवाई थी.

    रडार तकनीक से सर्वेक्षण

    1991 से लंबित मुकदमे में आवेदन किया गया था कि ज्ञानवापी परिसर की जमीन का रडार तकनीक से सर्वेक्षण कर यह बताया जाए कि जो जमीन है, वह मंदिर का अवशेष है या नहीं. साथ ही विवादित ढांचे का फर्श तोड़कर देखा जाए कि वहां स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ मौजूद हैं या नहीं. दीवारें भी प्राचीन मंदिर की हैं या नहीं? रस्तोगी की दलील है कि 14वीं सदी के मंदिर में प्रथम तल में ढांचा और भूतल में तहखाना है जहां 100 फुट ऊंचा शिवलिंग है. यह बात खुदाई में स्पष्ट हो जाएगी. पुरातात्विक सर्वेक्षण के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि विवादित स्थल कोई मस्जिद नहीं, बल्कि आदि विश्वेश्वर महादेव का मंदिर है.

    मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का विरोध

    अदालत के आदेश पर आपत्ति जताते हुए आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कार्यकारी सदस्य जफरयाब जिलानी ने कहा कि कोर्ट का आदेश 1991 के कानून के खिलाफ है. उसमें साफ लिखा है कि बाबरी के अलावा किसी भी मस्जिद या इबादतगाह की 15 अगस्त 1947 की हैसियत को बदला नहीं जा सकता. जज को यह अधिकार नहीं था कि वे 1991 के कानून के खिलाफ आदेश देते.

    डा. स्वामी की याचिका

    बीजेपी नेता व सांसद डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है जिसमें मांग की गई है कि 1991 का कानून रद्द किया जाए. उनके मुताबिक पूजा स्थल अधिनियम 1991 न केवल असंवैधानिक है, बल्कि संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ भी है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ इस पर सुनवाई कर रही है. उसने केंद्र सरकार व अन्य पक्षों से इस पर जवाब मांगा है.

    याचिकाकर्ता ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. एएस आल्तेकर की पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ बनारस’ का हवाला दिया. इस किताब में चीनी यात्री व्हेनसांग द्वारा किए गए काशी विश्वनाथ मंदिर के शिवलिंग का उल्लेख है. पुस्तक में कहा गया कि शिवलिंग 100 फीट ऊंचा था और उसके ऊपर लगातार गंगा की धारा गिरती थी. ज्ञानवापी मस्जिद के बाहर विशालकाय नंदी है जिसका मुख मस्जिद की ओर है. इसके अलावा मस्जिद की दीवारों पर नक्काशियों से देवी-देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं. मंदिर का निर्माण महाराजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने किया था.