कोरोना में सरकार की लापरवाही पर बहुत विलंब से भागवत की कड़ी टिप्पणी

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    आश्चर्य है कि बीजेपी का पितृ संगठन आरएसएस अब पहले के समान तत्परता से केंद्र की बीजेपी सरकार व नेताओं को गलती करने पर आड़े हाथ क्यों नहीं लेता? ऐसा ढीलापन किसलिए? एक समय था जब अटलबिहारी वाजपेयी सरकार की संघ नेताओं नानाजी देशमुख और दत्तोपंत ठेंगडी ने तीखी आलोचना की थी. थिंक टैंक कहलानेवाले गोविंदाचार्य भी वाजपेयी की आलोचना किया करते थे. आरएसएस का इतना रूआब था कि उसने रामजन्मभूमि आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभानेवाले लालकृष्ण आडवाणी को उसी समय पूरी तरह दरकिनार कर दिया जब खुद को सिक्यूलर दिखाने के चक्कर में आडवाणी ने कराची जाकर पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मजार पर उनकी खूब प्रशंसा की थी.

    इसके बाद आडवाणी पूरी तरह उपेक्षित हो गए. संघ और बीजेपी ने उन्हें नजरों से गिरा दिया. संघ की वैसी कोपदृष्टि अब कहां चली गई? इसी आरएसएस ने एक समय जनसंघ के अध्यक्ष पद से आचार्य रघुवीर और मौलिचंद्र शर्मा जैसे विचारकों को एक झटके में हटाया था. अब कोरोना पर सरकार की इतनी लापरवाही के बावजूद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कड़ी टिप्पणी तो की लेकिन वे बहुत लेट बोले. उन्होंने कहा कि कोरोना की पहली लहर के बाद सरकार लापरवाह हो गई थी. यदि भागवत समय पर सरकार के कान खींचते और खरी-खरी सुनाते तो उसका बेहतर असर होता!

    सोनिया के इशारे पर सरकार चलती थी

    यूपीए शासन के 10 वर्षों में सोनिया गांधी के संकेतों पर सरकार चला करती थी. उनकी मर्जी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता था. यह कहा जाता था कि मनमोहन सिंह तो सिर्फ डमी प्रधानमंत्री हैं, सारी महत्वपूर्ण फाइलें सीधे 10, जनपथ भेजी जाती थीं और वहीं फैसला होता था. मनमोहन सरकार के मंत्री भी पीएम से नहीं बल्कि सोनिया गांधी से डरते थे और उन्हीं की अप्रत्यक्ष कमान में काम करते थे. तब कहा जाता था कि सरकार का रिमोट कंट्रोल सोनिया गांधी के हाथों में है. इतना ही नहीं जब केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार थी तब भी कांग्रेस का दबदबा था. उस सरकार को बाहर से समर्थन देनेवाली कांग्रेस ने दबाव डालकर प्रधानमंत्री पद से एचडी देवगौड़ा को हटवा दिया था और उनकी जगह इंद्रकुमार गुजराल को पीएम बनवाया था.

    पहली बार केंद्र को कोसा

    संघ प्रमुख ने पहली बार गफलत और लापरवाही दिखानेवाली ढील पर मोदी सरकार को दो टूक सुनाई है और कहा है कि यश-अपयश का खेल चलता रहेगा. वर्तमान परिस्थितियों में तर्कहीन बयान देने से बचना होगा. अपनों के जाने का दुख और भविष्य में खड़ी होनेवाली समस्याओं की चिंता के दौरान परामर्श देने के बजाय सांत्वना देनी चाहिए. देर से जागे तो कोई बात नहीं. गुण-दोष की चर्चा छोड़कर सभी को मिलकर काम करना है. पहली लहर जाने के बाद हम जरा गफलत में आ गए थे. इसलिए यह संकट खड़ा हुआ. अब तीसरी लहर की चर्चा है. उससे लड़ने की तैयारी करने की जरूरत हैं.