महिलाओं के साथ भेदभाव, सुप्रीम कोर्ट की आर्मी को कड़ी चेतावनी

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    एक महत्वपूर्ण व्यवस्था (रूलिंग) के तहत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि सेवा में महिलाओं को स्थायी कमीशन पाने के लिए जो शर्तें रखी गई हैं वे मनमानी, पक्षपातपूर्ण और अव्यवहारिक हैं. देश की सबसे बड़ी अदालत ने सेवा में महिलाओं के लिए स्थायी कमीशन का समर्थन कर रही 80 महिला अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई की. कोर्ट ने सेना का 1 महीने के भीतर इस मामले पर विचार करने को कहा है. अदालत ने महिलाओं के लिए सेवाकाल की परवाह के बगैर सभी के लिए स्थायी कमीशन देने की बात कही. सके पूर्व गत वर्ष फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने सेना में महिला अधिकारियों (Army Women Officers) को पुरुषों के बराबर कमांड पदों के लिए पात्र होने की अनुमति दी थी. उस समय भी कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सरकार की दलीलों को भेदभावपूर्ण, परेशान करने वाली और रूढ़िवादी बताया था.

    आर्मी चीफ से प्रशंसा पत्र के बाद भी स्थायी कमीशन नहीं दिया

    सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति डी वाय चंद्रचूड़ (Justices D Y Chandrachud) व स्था. एम आर शाह (M R Shah concluded) की पीठ ने कहा कि यह आश्चर्य व खेद की बात है जिन महिला सैन्य अधिकारियों को चीफ आफ आर्मी स्टाफ से प्रतिष्ठासूचक प्रशंसा पत्र मिला है, उन्हें भी स्थायी कमीशन नहीं दिया गया. लेफ्टिनेंट कर्नल शिखा यादव तथा अन्य कई महिला सैन्य अधिकारियों को आर्मी चीफ का कमेंड्रेशन लेटर मिलने के बाद भी उन्हें परमानेंट कमीशन से वंचित रखा गया. विशिष्ट सेवा पदक प्राप्त लेफ्टिनेंट कर्नल ताशी थमलियाल के साथ भी ऐसा ही बर्ताव किया गया. मेजर मल्लवी शर्मा का राष्ट्रीय शूटिंग चेम्पियनशिप में शानदार रिकार्ड होते हुए भी उनकी उपेक्षा की गई. यूएन मिशन  में उच्च स्तर की सेवा देने वाली महिला सैन्य अधिकारियों को भी स्थायी कमीशन से वंचित रखा गया.

    याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने महिलाओं के लिए अनिवार्य मेडिकल फिटनेस को मनमाना और तर्कहीन बताया और कहा कि सेना की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में एसीआर आकलन व मेडिकल फिटनेस मापदंडो का देर से लागू होना महिला अधिकारियों के  लिए भेदभावपूर्ण है. इससे महिला अधिकारियों को आर्थिक और मानसिक रूप से नुकसान उठाना पड़ता है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में महिला सैन्य अधिकारियों की उपलब्धियों से जुड़ी बड़ी सूची भी शामिल की है. शार्ट सर्विस कमीशन वाली 86 महिला अधिकारियों ने सेना में स्थायी कमीशन को लेकर बराबरी की मांग की थी. खंडपीठ ने स्वीकार किया कि भारत में भी न्याय शास्त्र (जूरिसप्रुडेंस) अप्रत्यक्ष रूप से भेदभाव करता है. आर्मी बोर्ड 5 से 10 वर्ष की सेवा के बाद महिलाओं को नहीं रखना चाहता था. इसे सुप्रीम कोर्ट ने भेदभावपूर्ण बताया.

    एयर फोर्स व नेवी में पहले ही परमानेंट कमीशन

    सुप्रीम कोर्ट द्वारा आर्मी में महिलाओं को स्थयी कमीशन देने का निर्देश देने से पहले ही भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया जा चुका है. कुछ के लड़ाकू (काम्सेटेंट) भूमिका भी दी गई है.