कोरोना महामारी व लॉकडाउन का असर भीषण संकट के दौर में अर्थव्यवस्था

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    कोरोना महामारी का न केवल जनस्वास्थ्य, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी अत्यंत विपरीत प्रभाव पड़ा है. लॉकडाउन लागू होने से कल-कारखाने व उद्योग बंद हो गए. आर्थिक गतिविधियां ठप हो गईं. व्यापार, होटल, संचार व परिवहन क्षेत्र में 15.5 फीसदी से भी अधिक की गिरावट आई. इससे बड़े पैमाने पर नौकरियां गईं. बेरोजगारी चरम पर जा पहुंची. आतिथ्य व यात्रा उद्योगों को भी कोरोना ने ठप करके रख दिया. निर्माण क्षेत्र में 46 फीसदी की गिरावट आई.

    अर्थव्यवस्था सिकुड़ती चली गई. निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) वर्ष 2020 के 123 लाख करोड़ रुपए से घटकर 2021 में 116 लाख करोड़ रुपए रह गया. लोगों के पास पैसा नहीं रहने से मांग कम हो गई. उपभोक्ता हाथ रोककर और सोच-समझकर खरीदारी करने लगा. उपभोग की मात्रा या खपत सीमित होती चली गई. जब मांग ही नहीं है तो उद्योगों को उत्पादन भी घटाना पड़ा या अपनी यूनिट बंद करनी पड़ी, जिससे उन्हें अपने कर्मियों की छंटनी करनी पड़ी और इसका नतीजा भारी बेरोजगारी के रूप में सामने आया. पिछली 2 तिमाहियों में आर्थिक गतिविधियां बंद होने से वित्त वर्ष 2021 में निजी खपत ही नहीं, पूंजी निवेश में भी गिरावट आई. वित्तीय, रियल इस्टेट और व्यावसायिक सेवाओं में भी शिथिलता बनी रही.

    जीडीपी विकास दर का अनुमान घटाया

    ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थितियों में स्वाभाविक था कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) भारत की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान घटाता. कोरोना संकट से पहले उसने 2021-22 के लिए देश की जीडीपी विकास दर 12.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था लेकिन अब उसने इस अनुमान को 3 फीसदी घटाकर 9.5 कर दिया है. वर्तमान स्थितियों को देखते हुए जिसमें कि उद्योग-व्यापार को आंशिक छूट दी गई, आईएमएफ ने कैलेंडर वर्ष (जनवरी से दिसंबर 2021) में वैश्विक अर्थव्यवस्था के अनुमान को 6 प्रतिशत पर बनाए रखा है. यद्यपि अमेरिका-यूरोप के विकसित देशों में ग्रोथ रेट अनुमान को बढ़ाया गया लेकिन इससे खास फर्क नहीं पड़ा क्योंकि कोरोना की तीसरी लहर का अंदेशा देखते हुए कई दूसरे देशों की इकोनॉमी की विकास दर का अनुमान घटाया भी गया है. जिन देशों में अधिकांश आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी हैं, उनकी हालत बेहतर है. आईएमएफ रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार को लेकर 2 तरह की तस्वीर दिख रही है. कोरोना की वैक्सीन ने दुनिया को 2 हिस्सों में बांट दिया है.

     16,500 से अधिक कंपनियां बंद

    बेरोजगारी का जबरदस्त आलम इसलिए है क्योंकि लॉकडाउन की वजह से देश भर की अधिकांश कंपनियों की वित्तीय हालत खस्ता है. उद्योगपति निरंतर घाटा उठाने और कर्मचारियों को बिठाकर खिलाने की स्थिति में नहीं हैं. मांग के अभाव में प्रोडक्शन कम करना पड़ा और लागत भी बढ़ती चली गई. इन स्थितियों में समूचे देश की 16,500 से ज्यादा कंपनियां बंद हो गईं. केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया कि अप्रैल 2020 से लेकर जून 2021 तक 16,527 कंपनियां सरकारी रिकार्ड से हटा दी गईं. रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के ध्यान में जब यह बात आती है कि कंपनी 2 वर्षों से कोई कारोबार नहीं कर रही है और उसने इस दौरान डॉरमेंट (सुप्त या निष्क्रिय) स्टेटस के लिए आवेदन भी नहीं किया तो कानूनी प्रक्रिया के बाद उसे बंद किया जा सकता है. तमिलनाडु में सर्वाधिक 1322 कंपनियां बंद हुईं. इसके बाद दूसरा नंबर महाराष्ट्र का रहा जहां 1,279 कंपनियों में ताले लग गए. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उद्योग-व्यापार पर कितना बुरा असर पड़ा और कितने लोग बेरोजगार हुए.