Antibody test report takes only 20 minutes: study
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देश में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के 6 बड़े संस्थान दिन-रात वायरस के विभिन्न पहलुओं पर शोध कार्य कर रहे हैं।इस वायरस ने जैसे ही सक्रियता दिखानी शुरू की थी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने उच्चस्तरीय बैठक कर एक रणनीति तैयार कर ली थी कि इससे निपटने के लिए हमारे शोध की दिशा क्या होनी चाहिए।

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देश में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के 6 बड़े संस्थान दिन-रात वायरस के विभिन्न पहलुओं पर शोध कार्य कर रहे हैं।इस वायरस ने जैसे ही सक्रियता दिखानी शुरू की थी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने उच्चस्तरीय बैठक कर एक रणनीति तैयार कर ली थी कि इससे निपटने के लिए हमारे शोध की दिशा क्या होनी चाहिए। जैव प्रौद्योगिकी विभाग का मूल उद्देश्य व कार्य शुरुआत से ही जैव विविधता पर केंद्रित है। खेती से संबंधित हो, चाहे वन्यजीवों से या फिर इस तरह के वायरस या बैक्टीरिया से संदर्भित कोई भी प्रयोग तथा शोध हो, इस विभाग का बड़ा दायित्व इन्हीं से जुड़ा है।

विज्ञान एवं तकनीक मंत्रालय में तीन मुख्य विभाग जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं तकनीक विभाग तथा सीएसआईआर मिलकर कई तरह के शोधों व समाधानों पर काम कर रहे हैं। इसमें जैव विविधता विभाग की अग्रणी भूमिका है। इन संस्थानों की भागीदारी के लिए कोविड रिसर्च कंसोर्टियम की शुरुआत मार्च में ही कर दी गई थी, जब देश में इसके शुरुआती मामलों का पता चला था। वैक्सीन पर काम करने वाले 10 संस्थानों का चयन किया गया और उन्हें कोरोना वायरस पर शोध के लिए कहा गया।

6 बड़ी भारतीय कंपनियां निर्माण में जुटीं
भारत दुनिया में सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादन करने वाला देश है। कोविड-19 की वैक्सीन पर तेजी से कार्य चल रहा है। छह बड़ी भारतीय कंपनियां वैक्सीन के निर्माण में जुटी हैं। इनमें सीरम इंस्टीट्यूट, भारत बॉयोटेक, जायड्स, कैडिला, बॉयोलॉजिकल ई, इंडियन इम्नियोलॉजिकल्स व महेंद्रा एक्स शामिल हैं।

डीबीटी ने सीरम इंस्टीट्यूट को फेज-3 के वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के लिए सहायता दी है, ताकि वैक्सीन का सत्यापन हो सके। इसमें वैक्सीन के प्रभाव व साइड इफेक्ट शामिल हैं। इसी तरह कैडिला को डीएनए वाले हिस्से पर शोध कर वैक्सीन बनाने, भारत बॉयोटेक को सुरक्षा के हिस्से के लिए और एक कंपनी को इसके आरएनए वाले हिस्से पर शोध के लिए मदद दी जा रही है।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग सार्वजनिक क्षेत्र के इंडस इंडिया को साथ जोड़कर रिसर्च कंसोर्टियम के माध्यम से अन्य शोधों को बढ़ावा दे रहा है। जैसे ही क्लीनिकल टेस्ट के बाद वैक्सीन सामने आएगी, तुरंत स्टार्टअप के रूप में ऐसे साझीदारों को जोड़ा जाएगा, जिनकी बेहतर साख हो। इसके लिए नेशनल बॉयोलॉजिकल इंडिजेनाइजेशन ऑर्गनाइजेशन कंसोर्टियम भी बनाया जा रहा है।

16 शहरों में टेस्टिंग लैब
जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने एक और कंसोर्टियम की स्थापना की है, जो आंध्र प्रदेश में स्थित मैक्टेक जोन के साथ भागीदारी को लेकर है, ताकि स्थानीय स्तर पर दवाओं, वैक्सीन, पीपीपी किट्स और वेंटिलेटर का निर्माण संभव हो।

आज करीब 16 शहरों में 91 टेस्टिंग प्रयोगशालाएं जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से स्थापित की जा चुकी हैं। विभाग के द्वारा आज सॉर्स, कोविड-19 वायरस पर अध्ययन की भी शुरुआत की जा चुकी है। देश और दुनिया में इस बात की बड़ी चर्चा है कि ये वायरस लगातार अपना व्यवहार व स्वरूप बदल रहे हैं।

इस पर एक बड़ी योजना शुरू की जानी है, जहां अध्ययन किया जाएगा कि वायरस में रहे बदलाव में किस तरह के लक्षण होंगे और बीमारी का क्या स्वरूप होगा। कोविड-19 को लेकर के डीबीटी ने एक नियामक प्रणाली भी अपनाई है, ताकि विभिन्न शोधों पर बराबर की प्रगति पर चिंतन किया जा सके।

इसके अलावा इस बीमारी के फैलाव को समझते हुए लगातार इसकी प्रगति की रिपोर्ट ली जा सके और आगे काम किया जा सके। इस विभाग की स्थापना के समय ही यह तय हो गया था कि यदि देश में फसलों, पेड़-पौधों या मनुष्यों पर कभी जैविक हमले होंगे, तो उनके संबंध में शोध एवं अनुसंधान इसके अधीन ही होंगे।

जैव प्रौद्योगिकी विभाग व इससे जुड़े संस्थान अपने वैज्ञानिकों के साथ रात-दिन शोध में जुटे हुए हैं, ताकि आने वाले समय में लोगों तक कोविड-19 से संबंधित सही जानकारियां और समाधान पहुंचा सकें। यह विभाग कोविड-19 से लड़ाई में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है।