पाकिस्तानी मंत्री फिरदौस आशिक अवान ने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया कि भारत विरोध ही हम जैसे नेताओं की रोजी-रोटी है.
सच खुलकर सामने आ ही जाता है. पाकिस्तानी मंत्री फिरदौस आशिक अवान ने स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया कि भारत विरोध ही हम जैसे नेताओं की रोजी-रोटी है. हमारी आवाम (जनता) के जो एंटी-इंडिया सेंटीमेंट हैं, वो चूरन सबसे ज्यादा बिकता है. जो चीज सबसे ज्यादा बिकती हो, लोग उसी को सबसे ज्यादा बेचते भी हैं. यह केवल पाकिस्तान सरकार ही नहीं, बल्कि सभी लोग कर रहे हैं. पाकिस्तान की बुनियाद ही भारत के प्रति नफरत और द्वेष पर रखी गई थी. दुश्मनी और जलन की मानसिकता नेताओं ने खूब फैलाई. इसी का नतीजा आतंकवाद है. इसके पहले जब-जब पाकिस्तान को अमेरिका से हथियार मिले थे, तब-तब उसने भारत के खिलाफ युद्ध छोड़ा. 1965 और 1971 की लड़ाइयां इसका प्रमाण हैं. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना, ने भारत के विरुद्ध नफरत का बीज बोया. वहां के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खां सभाओं में घूंसा दिखाकर भारत को धमकाया करते थे. अयूब खान, याहया खान, परवेज मुशर्रफ जैसे फौजी जनरलों की हुकूमत में भारत से अकारण लड़ाइयां छेड़ी गईं. अपनी आर्थिक बदहाली, बेरोजगारी, शिक्षा का अभाव और भ्रष्टाचार से जनता का ध्यान बंटाने के लिए उसे भारत विरोधी चूरन दिया जाता है. मुशर्रफ हमेशा कहते थे कि कश्मीर हमारे खून में है. कश्मीर मुद्दे को लेकर वहां के नेता और फौज हमेशा पाकिस्तानियों को भड़काते रहे हैं. पाकिस्तानी मदरसों की किताबों में हिंदू और सिख की तस्वीर के साथ काफिर और जालिम शब्द लिखकर बच्चों के दिमाग में जहर घोला जाता है. पाक के भ्रष्ट और निकम्मे शासक अवाम को यह कहकर बहलाते हैं कि पाकिस्तान की सारी समस्याओं की जड़ भारत ही है. पाकिस्तान दशकों तक अमेरिकी खैरात पर पलता रहा, जिस वजह से उसने अपने यहां औद्योगिक विकास करना जरूरी नहीं समझा. अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी में फंसे लोगों को बहकाना बहुत आसान रहता है. पाकिस्तानी नेता यही करते आए. पाक पीएम इमरान खान का शायद ही कोई दिन बीतता होगा जब वे भारत के विरोध में कोई बयान न दें. कुछ माह पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा भी था कि हमने पाकिस्तान को अरबों डॉलर की मदद दी लेकिन आतंकवाद के मामले में वह हमें बेवकूफ बनाता रहा. पाकिस्तानी नेताओं का अस्तित्व ही भारत विरोधी दुष्प्रचार पर टिका हुआ है.