कुंभ की भीड़ एवं बंगाल की चुनावी रैलियों में कोरोना से लोग बेपरवाह

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    यह देखकर हैरत होती है कि कोरोना जैसी जानलेवा महामारी हरिद्वार के कुंभ मेले (Kumbh Mela) की अपार भीड़ और बंगाल की चुनावी (Bengal Election Rally) रैलियों में बेअसर सी हो उठी है. वहां लोगों का लापरवाह रवैया साफ नजर आता है. न तो नाक-मुंह पर मास्क है, न कोई दो गज की दूरी! न जाने कितने लोग इनमें संक्रमित होंगे और दूसरों को संक्रमित (Coronavirus) कर रहे होंगे. ईश्वर न करे कि कुछ समय बाद इन क्षेत्रों में कोरोना आपदा का महाविस्फोट हो! यदि बहुत बड़े पैमाने पर कोरोना फैला तो बेड, ऑक्सीजन और दवा कहां से उपलब्ध होंगे? एक ओर तो महाराष्ट्र सहित देश के अनेक राज्यों में धर्मस्थल बंद हैं लेकिन कुंभ में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ है.

    28 लाख श्रद्धालुओं ने दूसरे शाही स्नान में डुबकी लगाई. पूरे एक माह तक यही नजारा रहेगा. खासतौर पर पुण्य पर्वों पर तो गंगा के घाट (हर की पौड़ी) पर डुबकी लगाने वालों का अपार जनसमुदाय देखा जाएगा. धार्मिक आस्था अपनी जगह है लेकिन कोरोना का खतरा भी तो बहुत अधिक है. जान बची रहे तो जीवन में धर्म-कर्म करने व पुण्य कमाने के और भी अवसर मिल सकते हैं. कोरोना संकट के समय लोग यह क्यों नहीं समझते कि मन चंगा तो कठौती में गंगा! कोरोना महामारी के चरम पर रहते हुए भी क्या लोगों ने अपने विवेक को तिलांजलि दे दी है जो इतनी भीड़ कर रहे हैं!

    पीएम की अपील पर ध्यान नहीं

    राजनीतिक सभाएं व चुनाव लोकतंत्र का अनिवार्य अंग है. स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने नारा दिया है- ‘दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी.’ चुनाव प्रचार के दौरान इस नारे की धज्जियां उड़ रही हैं. बार-बार कोरोना से बचने के लिए सुरक्षा उपाय अपनाने की अपील की गई लेकिन जनता व नेताओं ने उसकी लगातार अनसुनी की. गत सप्ताह चुनाव आयोग ने कड़े शब्दों में सभी मान्यताप्राप्त पार्टियों को पत्र लिखा, जिसमें कहा गया कि आयोग के ध्यान में ऐसी चुनावी सभाएं व अभियान सामने आए हैं जिनमें सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने के नियमों का उल्लंघन किया गया. ऐसा करके पार्टियां, उम्मीदवार और सभाओं में मौजूद जनता खुद को कोरोना संक्रमण के भीषण खतरे में डाल रहे हैं. आयोग ने कहा कि राजनीतिक दल, नेता, उम्मीदवार, चुनाव प्रचारक सभी से उम्मीद की जाती है कि वे स्वयं मास्क पहन सोशल डिस्टेंसिंग रखकर व कोरोना प्रोटोकाल का पालन कर जनता के सामने अनुकरणीय मिसाल पेश करेंगे. परंतु खेद की बात है कि वे ऐसा नहीं कर रहे हैं.

    दूसरी लहर ज्यादा खतरनाक 

    कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा खतरनाक है. लोगों ने यह सोचकर कि अब महामारी का असर कम हो गया, पिछले वर्ष की अंतिम छमाही में लापरवाही शुरू कर दी. मास्क लगाने के प्रति गंभीर नहीं रहे और मिलना-जुलना शुरू कर दिया. सामान्य सामाजिक जिंदगी बिताने की उनकी चाह समझ में आती है परंतु कोराना वायरस की भयावहता को भी समझना होगा. मास्क व 2 गज की दूरी लंबे समय तक जीवन का अंग बने रहेंगे. वैक्सीन लेने के बाद भी इन नियमों का पालन जरूरी है. चिकित्सा विशेषज्ञ कोरोना वायरस के बदलते रूप या नए स्ट्रेन के बारे में चेतावनी दे चुके हैं परंतु लोगों का इसे गंभीरता से न लेना आश्चर्यजनक है. जनता को स्वयं बाजार, मॉल, सार्वजनिक परिवहन में भीड़ नहीं करनी चाहिए. एक बार कोरोना हुआ तो इलाज में लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं, फिर भी गारंटी नहीं रहती कि जान बचेगी या नहीं. इसलिए सुरक्षा नियमों के पालन में ही समझदारी है.