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2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल से 19 सीटें जीतने के बाद बीजेपी के हौसले बढ़े हुए हैं.

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हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में कमाल दिखाने के बाद बीजेपी की महत्वाकांक्षा अब बंगाल विधानसभा चुनाव पर केंद्रित हो गई है. 2021 के उत्तरार्ध में होने वाले चुनाव के लिए यह अपनी पूरी ताकत झोंक देना चाहती है. चुनाव घोषित होने के पहले ही वह युद्धस्तर पर तैयारी दिखाने में लगी है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल से 19 सीटें जीतने के बाद बीजेपी के हौसले बढ़े हुए हैं. बंगाल में लेफ्ट बेहद कमजोर हो चुका है और बीजेपी ने ममता को उनके ही तौर-तरीकों से चुनौती देने की ठान ली है. बंगाल के सिलीगुड़ी में बीजेपी कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच संघर्ष हुआ जिसमें 1 बीजेपी कार्यकर्ता को जान गंवानी पड़ी. यह टकराव उस समय हुआ जब तृणमूल के कुशासन का विरोध करते हुए बीजेपी उत्तर बंगाल सचिवालय की ओर मोर्चा ले जा रही थी. बीजेपी मानती है कि ममता बनर्जी सरकार और तृणमूल कांग्रेस को वह जबरदस्त चुनौती दे सकती है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष लगातार इस अभियान में भिड़े हुए हैं. हाल ही में तृणमूल कांग्रेस के प्रभावशाली नेता सुवेंदु अधिकारी ने ममता मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इसे ममता को करारा झटका माना जा रहा है क्योंकि अधिकारी का वेस्ट मिदनापुर, बांकुड़ा, पुरुलिया और झरग्राम की कम से कम 40 विधानसभा सीटों पर अच्छा-खासा प्रभाव है. यदि बीजेपी उन्हें अपने साथ ले लेती है तो मध्यप्रदेश के सिंधिया प्रकरण की बंगाल में पुनरावृत्ति हो सकती है. वामदलों व कांग्रेस की हालत पहले ही पतली है इसलिए सीधा मुकाबला बीजेपी और ममता के बीच ही होगा. इसके अलावा एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी भी बंगाल विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारेंगे. इससे तृणमूल कांग्रेस के मुस्लिम वोटबैंक में दरार आ सकती है. बंगाल विधानसभा की 70 से 80 सीटों का नतीजा मुस्लिम मतदाताओं के हाथों में रहता है. ममता को बीजेपी के अलावा ओवैसी की पार्टी से भी चुनौती मिलेगी.