सिंधिया की राहुल को दो टूक हाईकमान वक्त पर नहीं चेतता

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    कांग्रेस (Congress) अपने कर्मों का फल भुगत रही है. वह अपने टूटते कुनबे को नहीं संभाल पातीं. जब उसके अच्छे और सामर्थ्यवान नेता हताश होकर पार्टी छोड़ देते हैं तो उसके कारणों की मीमांसा भी करना नहीं चाहती. वक्त पर नहीं चेतने की वजह से  उसे नुकसान उठाना पड़ता है. ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के मामले में यही हुआ. मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) विधानसभा चुनाव लड़ते समय कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम पर वोट मांगे लेकिन चुनाव जीतने के बाद कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया. ज्योतिरादित्य को उपमुख्यमंत्री या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए भी नहीं पूछा गया.

    बीजेपी (BJP) ने इसी संदर्भ में टिप्पणी की है कि चुनावों में कांग्रेस ने दूल्हा कोई और दिखाया लेकिन शादी किसी और से करा दी थी. कांग्रेस ने सचमुच अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी. कमलनाथ और दिग्विजयसिंह ने जिस तरह ज्यातिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा की उसमें पार्टी हाईकमान ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया. जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो सिंधिया को बगावत के लिए मजबूर होना पड़ा. उन्होंने अपने समर्थकों के साथ (जिनमें कमलनाथ सरकार के कुछ मंत्री भी थे) कांग्रेस छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए. नतीजा यह हुआ कि कमलनाथ सरकार अल्पमत से आकर गिर गई और शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी पुन: सत्ता में आ गई. कांग्रेस की गलती व अदूरदर्शिता से उसके हाथ से मध्यप्रदेश जैसा बड़ा राज्य निकल गया. उपचुनाव में भी सिंधिया समर्थक विधायक विजयी हुए.

    व्यर्थ की अकड़ और बैंक वेंचर का फिकरा

    राहुल गांधी यदि अपनी तरफ में जोर लगाते तो चुनाव के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्यप्रदेश का सीएम बनवा सकते थे लेकिन उन्होंने सिंधिया और सचिन पायलट दोनों के लिए कुछ नहीं किया. सोनिया गांधी ने युवा नेताओं की बजाय अनुभवी नेताओं को तरजीह दी और मध्यप्रदेश में कमलनाथ (Kamal Nath) व राजस्थान में अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को सीएम बनाया. राहुल गांधी अपने इन युवा साथियों के लिए कुछ नहीं कर पाए फिर वे कैसे उम्मीद रखते थे कि अपमान और उपेक्षा का कड़वा घूंट पीकर सिंधिया कांग्रेस में बने रहते! राहुल गांधी को इतने महीनों बाद सिंधिया की याद आई. उन्होंने कहा कि बीजेपी में सिंधिया बैकवेंचर हैं. इस पर सिंधिया ने कहा कि जितनी चिंता राहुल को अब है, काश उतनी चिंता तब होती जब में कांग्रेस में था. सच तो यह है कि राज्यसभा की समानता के लिए भी ज्योतिरादित्य से नहीं पूछा गया था. कांग्रेस कौन सा सिंधिया को फ्रंट बैचर बनाने वाली थी जो उन्हें बीजेपी का बैकवेंचर होने का ताना देती रही है. राहुल के बयान पर बीजेपी ने भी पलटवार किया. मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि वह राजस्थान में सचिन पायलट को सीएम बनाईं.

    राहुल की स्वीकार्यता ही कितनी है?

    कांग्रेस के 23 नेताओं का समूह सोनिया गांधी के नेतृत्व के प्रति निष्ठा दिखाता है किंतु राहुल को पसंद नहीं करता. राहुल ने कांग्रेस अध्यक्ष पर इसीलिए छोड़ा था क्योंकि उन्हें अपनी मर्जी से काम करने का मौका नहीं मिला था. वे संगठन चुनाव कराने तथा युवा कांग्रेस व एनएसयूआई जैसे छात्र संगठनों को मजबूत करना चाहते थे. सोनिया गांधी को बुजुर्ग नेताओं पर अधिक भरोसा हे.

    बीजेपी जाल डाल रही

    ज्योतिरादित्य के समान ही बीजेपी कांग्रेस के अन्य नेताओं पर भी अपना मोह जाल डाल रही है. गुलाम नबी आजाद के राज्यसभा से रिटायर होने पर प्रधानमंत्री मोदी ने उसकी प्रशंसा करते हुए जैसा भावुकतापूर्व लंबा भाषण दिया उसके पीछे कुछ संकेत है. जम्मू-कश्मीर को पुन: पूर्ण राज्य का दर्जा देकर विधानसभा चुनाव कराए जाते समय बीजेपी को सीएम पद के लिए चेहरा चाहिए और यह चेहरा गुलाम नबी आजाद हो सकते हैं. आजाद ने भी जम्मू में मोदी की तारीफ में भाषण दिया था. यह संकेत है कि कुछ खिचड़ी पक रही है.