BJP हो जाए सावधान बजी खतरे की घंटी, पंचायत के परिणाम में दिखे नाराज ‘किसान’

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राष्ट्र की राजनीति को राह दिखाने वाले महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Politics) ने सोमवार को कुछ ऐसे संकेत दिये जिससे देश में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) को सावधान हो जाना चाहिये. महाराष्ट्र में 14 हजार से ज्यादा ग्राम पंचायतों के चुनाव परिणामों का जो ट्रेन्ड सोमवार की शाम तक देखने को मिला है, उसमें साफ संकेत है कि बीजेपी के खिलाफ ग्रामीण क्षेत्रों में नाराजगी बढ़ती ही जा रही है. देर शाम तक महाराष्ट्र में सत्तारुढ़ आघाड़ी ने ग्राम पंचायत चुनाव में अच्छी खासी बढ़त बना ली थी. ज्यादा हैरत की बात यह है कि जिस शिवसेना (Shiv Sena) को बीजेपी अकेला मानकर कमजोर साबित करने में लगी हुई थी उसने ग्रामीण में सबसे ज्यादा पंचायतें जीतकर इठलाने का एक और मौका दे दिया. कांग्रेस की हालत में सुधार और राकां की अपने गढ़ में मजबूती भी यह संकेत दे रहा है कि आघाड़ी के दल भले ही अलग-अलग लड़े हों, लेकिन बंद मुट्ठी लाख की वाली कहावत को अपनाते हुए वे राज्य की सरकार को आराम से 5 साल तक चला सकेंगे.

बीजेपी के कई गढ़ ध्वस्त

वास्तव में पंचायत चुनाव को लेकर होने वाली दावेदारी पर बहुत लोग भरोसा नहीं करते. बगैर कोई अधिकृत चुनाव चिन्ह के होने वाले इन चुनावों में पैनल के रूप में लड़ाई होती है. लेकिन परिणामों के बाद राजनीतिक दल खुद ही जीत की दावेदारी कर लेते हैं. सोमवार को आये परिणामों को लेकर जब बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत दादा पाटिल (Chandrakant Dada Patil) ने प्रेस कान्फ्रेन्स की तो उन्होंने दावा किया कि राज्य में 14,000 में से करीब 2012 पंचायतों पर बीजेपी का वर्चस्व है. बीजेपी के इस दावे में ही परिणाम का असली सार निहित है. खुद पाटिल के गांव खानापुर में बीजेपी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ है. वहां शिवसेना ने 16 में से 15 सीटें ने जीत हासिल की है. पाटिल के अनुसार मंगलवार दोपहर तक असली पिक्चर सामने आएगा, लेकिन जनता को जो सीन दिखाना था, वह उसने दिखा दिया. किसान आंदोलन को लेकर बीजेपी नेताओं द्वारा हेकड़ी का जवाब इन चुनाव के माध्यम से मिला है. पाटिल के 2012 पंचायतों के दावे का दूसरा मतलब यह भी होता है कि महाराष्ट्र में करीब 10,000 से ज्यादा पंचायतों में उसका वर्चस्व नहीं रहा. इसका मतलब साफ है और जैसा कि कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष बाला थोरात ने दावा किया कि राज्य की सत्तारुढ़ महाविकास आघाड़ी ने 80 फीसदी पंचायतों पर कब्जा किया है. आंकड़े भी ऐसा ही कुछ बता रहे हैं. कांग्रेस ने खुद 4000 से ज्यादा पंचायतों (Maharashtra Panchayat Election Results 2021) पर जीत का दावा किया है, यह कितना सच है यह भी मंगलवार को ही पता चल सकेगा, लेकिन विदर्भ के अपने पुराने गढ़ मे कांग्रेस पार्टी ने बहुत ही बड़ी जीत हासिल की है. जिस नागपुर जिले में पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस, केन्द्रीय मंत्री नितिन गड़करी और चंद्रशेखर बावनकुले जैसे दमदार नेताओं का निवास है, वहां की 129 में से कांग्रेस ने 83 पंचायतों पर जीत हासिल की है. राकां और शिवसेना मिलाकर कुल 102 सीटों पर आघाड़ी जीती है. बीजेपी को सिर्फ 25 पंचायतों पर समाधान करना पड़ा है.

क्या अब भी किसान आंदोलन की खिल्ली उड़ाएंगे

पंचायत परिणामों के बाद बीजेपी को सोचना होगा कि क्या दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन की खिल्ली उड़ाना वह अब भी जारी रखेगी. कभी खालिस्तानी तो कभी नक्सली, कभी कांग्रेस-लेफ्ट का आंदोलन तो कभी विदेशी फंडिंग से अस्थिरता फैलाने वालों का जमावड़ा कहकर बीजेपी अपने कैडर और सोशल मीडिया कैडर के द्वारा किसानों को बदनाम करने पर तुली हुई है. किसान जो अमूमन चुपचाप अपना काम करता है, उसने इस बार महाराष्ट्र के माध्यम से मोदी-शाह की सरकार को जगाने का काम किया है. बीजेपी को चाहिये कि किसानों के इस संदेश को समझे और जो किसानों के व्यापक हित में हो, वह काम करे. 

शिवसेना की असली परीक्षा आगे

पंचायत चुनाव में भले ही शिवसेना देर रात तक नंबर वन पार्टी बनी रही, लेकिन उसकी असली अग्निपरीक्षा अगले 12 महीनों में होने वाली है. राज्य में जल्दी ही होने वाले 5 महानगरपालिका और अगले वर्ष के प्रारंभ में मुंबई-नागपुर सहित 10 मनपा के चुनावों में उसे इसी तरह का प्रदर्शन बरकरार रखने की चुनौती होगी. उद्धव ठाकरे को तो बीएमसी में शिवसेना का भगवा झंडा फहराये रखने की भी बहुत बड़ी चुनौती रहेगी. ऐसे में मुख्यमंत्री को आघाड़ी का सामंज्स्य और बढ़ाना पड़ेगा साथ ही जनहित के फैसले लेने में और तेजी लानी होगी. 

कांग्रेस के अच्छे दिन, राकां की बल्ले-बल्ले

पंचायत चुनाव ने पहली बार कांग्रेस को उसके पुराने दिनों की ओर ले जाने का काम किया है. भले ही वह आंकड़ों में चौथे नंबर की पार्टी बनी है, लेकिन 2014 से जो उसकी दुर्गति शुरु हुई थी, उसकी तुलना में काफी सुधार हुआ है. सबसे बड़ा कमाल उसने विदर्भ में दिखाया है, जिसकी बदौलत 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहर होना पड़ा था. हाल के विधान परिषद चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस ने नागपुर की स्नातक निर्वाचन सीट पर कब्जा मारकर बीजेपी को खून के आंसू रुला दिया था, उसी तरह अब वह धीरे-धीरे विदर्भ के अपने गढ़ में पुराना वैभव वापस लाने में जुट गई है. शरद पवार और अजीत पवार के बाद अब रोहित पवार भी राकां को मजबूती प्रदान करने में लगे हुए हैं. ऐसे में राकां के भी बल्ले-बल्ले है. बारामती में सभी 49 पंचायतों पर राकां ने जीत हासिल कर यह बता दिया है कि पवार का महाराष्ट्र से पावर कम नहीं होने वाला. मनसे की राज ठाकरे का इंजिन बहुत स्पीड से नहीं दोड़ पाया, लेकिन लातुर और नागपुर के रामटेक में और यवतमाल के वणी में अरविंद केजरीवाल की एन्ट्री ने बहुत सारे राजनीतिक पंडितों को चौंका जरूर दिया है.