मोदी का सगा -सौतेला, पूर्व PM से मोदी का अलग-अलग बर्ताव

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    क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रवैया देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों के प्रति समानतापूर्ण है? उनके बर्ताव से ऐसा बिल्कुल नहीं लगता. कोरोना संकट को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब मोदी को पत्र लिखा तो उसका जवाब खुद देने का सौजन्य न दिखाते हुए स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से दिलवाया. मृदुभाषी समझे जाने वाले हर्षवर्धन ने मनमोहन के पत्र पर बुरी प्रतिक्रिया देते हुए इस मुद्दे को राजनीतिक बनाने की कोशिश की. दूसरी ओर जब पूर्व प्रधानमंत्री व जदसे नेता एचडी देवगौड़ा ने कोरोना आपदा को लेकर मोदी को पत्र लिखा तो प्रधानमंत्री ने खुद फोन कर उन्हें जवाब दिया. सवाल उठता है कि मोदी ने अलग-अलग मानदंड क्यों अपनाए?

    मनमोहन की उपेक्षा क्यों

    मोदी भली भांति जानते हैं कि भारत में नई आर्थिक नीतियों का सूत्रपात करने में मनमोहन सिंह की प्रमुख भूमिका थी. जब 2008 में अमेरिका व यूरोप में भारी मंदी आई थी और लेहमैन संकट के चलते बैंक धड़ाधड़ बंद हो रहे थे तब अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने नामी अर्थशास्त्री के रूप में मनमोहन सिंह से सलाह मांगी थी कि ऐसी हालत में अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए क्या किया जाए? पीएम बनने के पूर्व मनमोहन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर, रिजर्व बैंक के गवर्नर और केंद्रीय वित्त मंत्री रह चुके थे. उनके सुझावों पर गौर करना तो दूर, जवाब देने की जहमत भी मोदी ने नहीं उठाई. मनमोहन ने 5 सार्थक सुझाव दिए थे लेकिन मोदी की बजाय हर्षवर्धन ने पत्र के जवाब में पलटवार करते हुए मनमोहन से कहा था कि इतिहास आपके लिए बेहतर होता यदि इस तरह के रचनात्मक सहयोग व कीमती सलाह पर आपकी पार्टी कांग्रेस ने काम किया होता. हर्षवर्धन ने मनमोहन सिंह पर तंज कसते हुए कहा था कि इस पत्र को तैयार करने वाले ने आपको शायद पूरी जानकारी नहीं दी. वैक्सीन के आयात के लिए जो सलाह दी गई, वह कदम पहले ही उठा लिए गए हैं.

    कांग्रेस से प्रतिशोध की भावना

    10 वर्ष तक देश के पीएम रहे मनमोहन के पत्र का जवाब देने का सौजन्य यदि मोदी ने नहीं दिखाया तो इससे उनकी कांग्रेस के प्रति नफरत, प्रतिशोध और उपेक्षा की भावना झलकती है. बीजेपी वालों को आक्रोश रहा है कि कांग्रेस इतने दशकों तक सत्ता में क्यों रही और देश की जनता पर गांधी-नेहरू का इतना प्रभाव क्यों बना रहा? कांग्रेस के वर्चस्व की वजह से ही बीजेपी सत्ता के लिए तरसती रही. यूं तो वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी थी लेकिन फिर 2004 में कांग्रेस सत्ता में आ गई और 2014 तक बनी रही. बीजेपी के अध्यक्ष रहते हुए अमित शाह ने कांग्रेस मुक्त भारत के लक्ष्य की बात की थी.

    देवगौड़ा को महत्व क्यों

    एचडी देवगौड़ा संयुक्त मोर्चा सरकार के प्रधानमंत्री बने थे. यह कठपुतली सरकार भी कांग्रेस के बाहरी समर्थन की वजह से बनी थी. देवगौड़ा हिंदी नहीं जानते थे और 15 अगस्त को लाल किले पर उनके कन्नड़ भाषण का हिंदी अनुवाद उनके एक मंत्री चांदमहल इब्राहिम ने किया था. देवगौड़ा कुछ ही समय पीएम रहे क्योंकि कांग्रेस के कहने पर उनकी जगह इंद्रकुमार गुजराल को प्रधानमंत्री बनाया गया था. देवगौड़ा की गणना भारत के प्रभावशाली प्रधानमंत्रियों में कभी नहीं की गई. वे ऐसे पीएम थे जो बाद में अपना स्तर घटाकर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बन गए थे. इतने पर भी पत्र का जवाब देने में मोदी ने देवगौड़ा को तरजीह दी.