Millions of people struggling with hunger and malnutrition

दो-तिहाई लोगों ने माना कि पोषण गुणवत्ता खराब हो गई है और लॉकडाउन से पहले की तुलना में भोजन की मात्रा भी घट गई है.

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‘राइट टु फूड’ कैंपेन द्वारा 11 राज्यों में कराए गए एक त्वरित सर्वेक्षण में हंगर वॉच का यही निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि पूरे देश में भूख की स्थिति बहुत विकट है. दो-तिहाई लोगों ने माना कि पोषण गुणवत्ता खराब हो गई है और लॉकडाउन से पहले की तुलना में भोजन की मात्रा भी घट गई है. हंगर वॉच के इस सर्वे में 11 राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, दिल्ली, तेलंगाना, तमिलनाडु और बंगाल) के 3,994 प्रतिभागियों में से 2,286 ग्रामीण क्षेत्रों से और 1,808 शहरी क्षेत्रों से थे. 

इनमें से 79 फीसदी प्रतिभागियों की मासिक आय लॉकडाउन से पहले 7,000 रुपये से कम थी, जबकि इनमें से 41 फीसदी लोग लॉकडाउन से पहले प्रतिमाह 3,000 रुपये से कम कमाते थे. इनमें से 59 फीसदी प्रतिभागी दलित/आदिवासी, 23 फीसदी प्रतिभागी अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) से और करीब 4 फीसदी विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (पीवीटीजी) से थे. लगभग आधी प्रतिभागी (55 फीसदी) महिलाएं थीं, 48 फीसदी झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले, 14 फीसदी अकेले घर संभालने वाली महिलाएं थीं और 7 फीसदी प्रतिभागी दिव्यांग थे, जो घर संभालते थे. करीब 45 फीसदी दिहाड़ी मजदूर, तो 18 फीसदी किसान थे. 

हंगर वॉच के प्रारंभिक परिणाम बताते हैं कि लॉकडाउन समाप्त होने के पांच महीने बाद भी भूख की स्थिति काफी गंभीर है. बड़ी संख्या में घरों (62 फीसदी) में आय घटी है, अनाज (53 फीसदी), दालें (64 फीसदी), सब्जियां (73 फीसदी) और अंडे/मांसाहारी पदार्थों (71 फीसदी), पोषण गुणवत्ता की मात्रा (71 फीसदी) में कमी आई है, और 45 प्रतिशत घरों में भोजन खरीदने के लिए पैसे उधार लेने की जरूरत बढ़ी है. 

इस दौरान मुफ्त राशन के रूप में, सूखे राशन तथा/या नकद हस्तांतरण के रूप में तथा स्कूल और आंगनवाड़ी में भोजन के विकल्प के रूप में सरकारी मदद आधे से अधिक लोगों तक पहुंची. बेशक यह सरकारी मदद महत्वपूर्ण रही है, लेकिन हंगर वॉच सर्वेक्षण द्वारा जारी भूख के भयानक आंकड़े हमें बताते हैं कि ये पर्याप्त नहीं हैं तथा अभी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है. परेशानी यह है कि लाखों लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दायरे से बाहर हैं, जिस पर तुरंत ध्यान दिए जाने की जरूरत है. 

ऐसे देश में, जहां बाल कुपोषण सहित कुपोषण महामारी से पहले भी आम बात थी, यह मामला गंभीर है और स्वास्थ्य और जीवन की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है. भोजन का अधिकार कार्यकर्ताओं ने कई मांगें की हैं. उनमें एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली की मांग है, जिनमें हर व्यक्ति को कम से कम अगले 6 महीने (जून 2021 तक) के लिए 10 किलो अनाज, 1.5 किलो दाल और 800 ग्राम खाना पकाने के तेल के साथ स्वच्छता से संबंधित सभी सुरक्षा उपायों के अनुपालन के साथ आंगनवाड़ी केंद्र और स्कूल के मध्याह्न भोजन के माध्यम से, पकाए भोजन के वितरण की मांग भी शामिल है.