कोरोना से बुरा हाल मंत्रियों को नहीं सूझ रहा जवाब

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    केंद्र सरकार की लापरवाही और कुप्रबंधन की वजह से कोरोना संक्रमण इतना भयावह हो गया है. महामारी की दूसरी लहर कहर ढा रही है. न केवल मौत का आंकड़ा बढ़ रहा है, बल्कि 45 वर्ष से कम आयु के लोगों को भी जान से हाथ धोना पड़ रहा है. अप्रैल में ऑक्सीजन और बेड न मिलने से कितने ही लोग बेमौत मारे गए. ऐसी अराजकता देखी गई जिसमें एम्बुलेंस वाले हजारों रुपए किराया मांग रहे थे. मरीज एक से दूसरे अस्पताल की ओर भागने को विवश थे कि कहीं तो उन्हें दाखिल किया जाए! ऑक्सीजन के अभाव में रास्ते में ही कितने ही मरीजों ने दम तोड़ दिया. आंकड़े जाहिर न होने पाएं, इसलिए टेस्ट कम किए गए.

    मृतकों की सही संख्या नहीं बताई गई लेकिन श्मशान और कब्रिस्तान छोटे पड़ते चले गए. लापरवाह नौकरशाही किसी की सुनने को तैयार नहीं थी. केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर तमाम अव्यवस्था गिना दीं. उन्होंने लिखा कि अफसर फोन उठाते नहीं, अस्पताल में इस्तेमाल होने वाले उपकरण डेढ़ गुना दाम पर बेचे जा रहे हैं, अस्पतालों में मरीजों को रेफरल के नाम पर इधर-उधर घुमाया जा रहा है और भर्ती नहीं किया जा रहा है. मरीज लगातार यहां-वहां भटकने को विवश हैं. इस दौरान उनका ऑक्सीजन लेवल लगातार नीचे गिरता चला जाता है.

    बीजेपी-संघ बचाव की मुद्रा में

    पिछले 4-5 दिनों से देश में लगातार 4 लाख से ऊपर केस आ रहे हैं. मौत का आंकड़ा भी रोजाना 4000 के पार जा रहा है. कोरोना संक्रमण का डर हर परिवार महसूस कर रहा है. सत्ता पक्ष के कितने ही नेता नेतृत्व की गलती मानने से बच रहे हैं. कोई चर्चा नहीं करना चाहता कि केंद्र सरकार ने किस तरह स्थिति की गलत समीक्षा की. वास्तव में कोरोना की दूसरी लहर को लेकर सरकार सतर्क नहीं थी. जनता विश्वास के संकट से जूझ रही है. एक मंत्री ने कहा कि अचानक से कोरोना केस ऊंचाई पर पहुंच गए. ऐसी हालत में हर योजना कम पड़ रही है.

    कोविड टास्क फोर्स की बैठक तक नहीं हुई

    अप्रैल के पहले तक सरकार के कोविड टास्क फोर्स की कई महीने बैठक भी नहीं हुई थी. यूपी में यहां तक चेतावनी दी गई कि कोई ऑक्सीजन या बेड की मांग न करे, नहीं तो उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू कर दिया जाएगा. राज्यों से कोई भी चर्चा किए बगैर 18 वर्ष से 44 वर्ष वालों को वैक्सीन लगाने की घोषणा की गई. इससे भ्रम बढ़ा और सप्लाई खत्म हुई.

    वैक्सीन मैत्री महंगी पड़ी

    केंद्र सरकार ने यह मानते हुए कि भारत में हालात काबू में आ गए, 20 जनवरी से वैक्सीन मैत्री मुहिम शुरू की. विश्व के 93 देशों को 6.6 करोड़ से ज्यादा कोरोना वैक्सीन की डोजेस भेजी गईं. इससे दिल्ली व मुंबई की पूरी वयस्क आबादी का टीकाकरण हो सकता था. जिन देशों को भारत ने वैक्सीन भेजी, उनमें से 64 में भारत की तुलना में कम केसेस थे. मार्च में वैक्सीन मैत्री मुहिम स्थगित करनी पड़ी. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लोगों की जान बचाने पर जोर देते हुए कहा कि देश को पीएम आवास नहीं बल्कि सांस चाहिए. उन्होंने प्रधानमंत्री आवास के निर्माण की डेडलाइन तय करने पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब देश में लाखों लोगों की जान सरकार की लापरवाही से जा रही है, उस समय पीएम को अपने नए महल की चिंता है.

    ‘दि लेंसेट’ की तीखी टिप्पणी

    मेडिकल जर्नल ‘दि लेंसेट’ ने प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि उनकी सरकार कोरोना महामारी को नियंत्रित करने की बजाय टि्वटर पर हो रही आलोचना पर लगाम लगाने पर ज्यादा जोर दे रही है. कोरोना के सुपर स्प्रेडर नुकसान के बारे में चेतावनी के बावजूद सरकार ने कुंभ जैसे धार्मिक आयोजन और चुनावी रैलियां होने दीं. दूसरी लहर की बार-बार चेतावनी पर भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया. सरकार को गलतियों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए. निर्वाचित सरकारों के ढीलेपन की वजह से दिल्ली, मद्रास हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की तथा सुप्रीम कोर्ट ने 12 सदस्यीय नया राष्ट्रीय टास्क फोर्स गठित कर संकट से निपटने के तरीके खोजने को कहा.