RSS
File Photo

क्या केंद्र की मोदी सरकार ने किसान बिल बनाने और श्रम कानूनों में बदलाव करने से पूर्व अपनी पार्टी बीजेपी के अभिभावक संगठन आरएसएस की राय नहीं ली थी?

Loading

क्या केंद्र की मोदी सरकार ने किसान बिल बनाने और श्रम कानूनों में बदलाव करने से पूर्व अपनी पार्टी बीजेपी के अभिभावक संगठन आरएसएस की राय नहीं ली थी? सरकार के इन कदमों का विपक्षी पार्टियां विरोध करें तो समझ में आता है लेकिन जब आरएसएस के 3 महत्वपूर्ण आनुषंगिक संगठन इनका तीव्र विरोध करने पर उतर आए हैं तो इसका साफ मतलब है कि दाल में काला है. भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस), भारतीय किसान संघ (बीकेएस) और स्वदेशी जागरण मंच ने केंद्र सरकार की नीतियों व कदमों पर कड़ी आपत्ति जताई है. देश में भड़के किसान आंदोलन और 10 बड़ी ट्रेड यूनियनों द्वारा पिछले दिनों किए गए भारत बंद के बाद अब आरएसएस के आनुषंगिक संगठनों ने भी विरोध का झंडा उठा लिया है. सरकार ने जल्दबाजी में और विपक्ष की उपेक्षा करते हुए किसान बिल पास करा लिए. इस संबंध में उसने संघ से भी परामर्श लेना जरूरी नहीं समझा.

पहले चेतावनी सप्ताह फिर देशव्यापी प्रदर्शन

संघ की विचारधारा से जुड़े किसान व मजदूर संगठनों को फिक्र है कि वे सरकार के कदमों से नाराज अपने अनुयायियों को कैसे मनाएं? मोदी सरकार अपने ही लोगों को इस बारे मे आश्वस्त नहीं करा पाई. बीएमएस ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए 3 नए लेबर कोड के जरिए दर्जनों श्रमिक कानूनों में बदलाव करने तथा नए श्रम कोड के प्रावधानों का विरोध करते हुए 10 से 16 अक्टूबर तक देशव्यापी चेतावनी सप्ताह कार्यक्रम आयोजित करने और इसके बाद 28 अक्टूबर को राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है. बीएमएस ने भाजपा शासित गुजरात सहित अन्य राज्यों में शुरू किए गए श्रम सुधारों को खत्म करने, श्रमिकों के पक्ष में सभी पेंशन योजनाओं की समीक्षा करने व प्रवासी मजदूरों की दिक्कतों को देखते हुए कानूनों में प्रभावी बदलाव की मांग की है.

एमएसपी की गारंटी वाला विधेयक लाने की मांग

भारतीय किसान संघ व स्वदेशी जागरण मंच ने मांग की है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने वाला नया विधेयक संसद में लेकर आए. अभी सबसे बड़ी चिंता यही है कि सरकार किसानों को देश में कहीं भी अपनी उपज बेचने की आजादी देने के नाम पर कार्पोरेट के भरोसे छोड़ रही है. ये कार्पोरेट शुरू में अच्छा दाम देने के बाद आगे चलकर किसानों का शोषण कर सकते हैं. उन्हें अपना बंधुआ गुलाम बना सकते हैं. यदि न्यूनतम समर्थन मूल्य का स्थायी कानूनी प्रावधान नहीं रखा गया तो किसानों को कोई सुरक्षा नहीं रह जाएगी. वे पूरी तरह लाचार हो जाएंगे. कार्पोरेट उन पर अपनी मर्जी लादेंगे और अपने फायदे के लिए कोई खास फसल उपजाने को बाध्य करेंगे. तब किसानों की मर्जी नहीं चल पाएगी? खेती कांट्रैक्ट फार्मिंग में बदल जाएगी. एमएसपी की बाध्यता नहीं रहने पर किसानों का बुरी तरह शोषण होगा और उनकी कोई सुनवाई नहीं होगी. यह भी तो हो सकता है कि सरकारी खरीदी केंद्र कुछ घंटों के लिए खुले और बंद हो जाए तथा इतने में कोई बड़ा व्यापारी ही वहां उपज बेचकर चला जाए और बाकी किसान मुंह ताकते रह जाएं! सरकार अब न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर गंभीर नहीं है. केरल सरकार कृषि कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने की संभावना तलाश रही है.

पहले भी विरोध जताते रहे हैं संघ से जुड़े नेता

अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार के समय नानाजी देशमुख और बीएमएस के नेता दत्तोपंत ठेंगड़ी ने केंद्र की स्वदेशी व श्रम विरोधी नीतियों की कड़ी आलोचना की थी. तब उन्होंने सरकार के विनिवेश नीति का विरोध किया था. अब मोदी सरकार को बताना होगा कि उनके अपने ही संघ से जुड़े किसान व श्रम संगठन उनकी नीतियों के खिलाफ क्यों उतर आए हैं? जब उन्हें यह मनमानी हजम नहीं हो रही तो बाकी भी इसे क्यों स्वीकार करेंगे? निवेश बढ़ाने और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए श्रम कानूनों को स्थगित किया गया है जिससे श्रमिक वर्ग असुरक्षित हो गया है. न तो वह संगठित रूप से मांग कर सकता है, न हड़ताल पर जा सकता है. नौकरी की भी कोई गारंटी नहीं है. इसलिए संघ की मजदूर शाखा भी लेबर कोड के खिलाफ है.