भारत के किसानों को एक समान न्यूनतम प्रीमियम देते हुए इस योजना को अधिक प्रभावी बनाया गया है.
कृषि प्रधान भारत में मानसून की अनियमितता से संपूर्ण फसल चक्र से अपेक्षित उपज का अनुमान लगाना लगभग असंभव हो जाता है. भारत की कृषि अर्थव्यवस्था के निरंतर विकास के लिए एवं कृषक समुदाय को आपदा के प्रभाव से बचाव के लिए फसल बीमा के रूप में जोखिम साधन देना अति आवश्यक है. 2014 में एनडीए सरकार आने के बाद किसानों को उच्च प्राथमिकता देते हुए उनकी फसल नुकसान से सुरक्षा हेतु और उस समय की फसल बीमा योजनाओं की विसंगतियों में सुधार कर किसान हितैषी ‘वन नेशन-वन स्कीम’ के स्वरूप प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) को 13 जनवरी 2016 को मंजूरी दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में योजना को अप्रैल 2016 में लागू कर दिया. भारत के किसानों को एक समान न्यूनतम प्रीमियम देते हुए इस योजना को अधिक प्रभावी बनाया गया है.
ब्लाक स्तर पर कार्यालय
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों का व्यापक हित ध्यान में रखते हुए लचीलापन लाते हुए निरंतर सुधार किया जा रहा है. अब योजना के अंतर्गत नामांकन सभी किसानों के लिए स्वैच्छिक है और बीमा कम्पनियों की अधिक जिम्मेदारी सुनिश्चित करते हुए राज्यों के साथ उनके क्रियान्वयन अवधि को 3 वर्षों के लिए अनिवार्य किया है. किसानों के साथ सतत संवाद स्थापित करने हेतु बीमा कंपनियां ब्लॉक स्तर पर कार्यालय खोल रही हैं. बीमा कम्पनियों द्वारा कुल प्रीमियम की 0.5% राशि को किसानों की व्यापक जागरूकता के लिए निर्धारित किया गया है. फसल नुकसान के अनुपात में दावों को सुनिश्चित करने के लिए बीमित राशि को फसल उत्पादन मूल्य के बराबर किया है. इस योजना के कार्यान्वयन को विकेन्द्रित करते हुए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को अतिरिक्त जोखिम कवर चुनने का विकल्प दिया है. पूर्वोत्तर राज्यों को इस योजना से जुड़ने के लिए उनका राज्यांश 50:50 से बढ़ाकर अब 90:10 कर दिया है.
44,000 जनसेवा केंद्र
देश के करोड़ों सीमान्त एवं लघु किसानों को इस योजना से जोड़ना, उनके सभी रिकॉर्ड्स को संभालना, ऐसे किसानों की समस्याओं का समाधान करना और योजना का संचालन करते समय सभी हितधारकों के क्रियाकलापों को समय से जोड़ना आदि काम एक पोर्टल के बिना नहीं हो सकते थे. इन्हीं चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए करोड़ों किसानों को 1.7 लाख से अधिक बैंक शाखाओं तथा 44 हजार से अधिक सीएससी (जनसेवा केंद्र) को राष्ट्रीय फसल बीमा पोर्टल पर एक साथ लाया गया है.
किसानों को नुकसान दावे के 86,000 करोड़ रु. मिले
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अधिक पारदर्शी कार्यान्वयन के लिए 2017 से आधार संख्या के माध्यम से पंजीकरण अनिवार्य करने से किसानों को सीधे उनके बैंक खाते में भुगतान किया जा रहा है. इस क्रांतिकारी पहल से फर्जी लाभार्थियों को हटाने में और आधार द्वारा सत्यापन से पात्र किसानों के दावों का भुगतान किया जा रहा है. खरीफ 2016 में योजना के शुभारंभ से खरीफ 2019 तक किसानों ने प्रीमियम के रूप में 16,000 करोड़ रुपए का भुगतान किया, जबकि फसलों के नुकसान के दावों के रूप में उन्हें 86,000 करोड़ रुपए मिल चुके हैं अर्थात किसानों को प्रीमियम राशि के मुकाबले 5 गुना से भी अधिक राशि दावों के रूप में मिली है. उदाहरण स्वरूप किसानों द्वारा प्रीमियम के रूप में भुगतान किए हर 100 रुपए के विरुद्ध उन्हें दावों के रूप में 537 रुपये प्राप्त हुए हैं. इस योजना के अंतर्गत पिछले पांच वर्षों में 29 करोड़ किसान आवेदन बीमित हो चुके हैं और हर वर्ष 5.5 करोड़ से अधिक किसान इस योजना से जुड़ रहे हैं. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के कारण किसानों को विशेष क्षतिपूर्ति का लाभ हुआ है. राजस्थान में टिड्डी हमला, कर्नाटक और तामिलनाडु में आई आपदा, महाराष्ट्र में बेमौसम वर्षा से फसल को हुए नुकसान में किसानों को उचित मुआवजा मिला है.
10 प्रादेशिक भाषाओं में सेवा
किसानों की सुविधा के लिए राष्ट्रीय फसल बीमा पोर्टल द्वारा अब 10 प्रादेशिक भाषाओं में सेवा दी जा रही है, जहां किसान सीधे नामांकन कर सकते हैं तथा प्रीमियम राशि एवं दावों के आकलन की स्थिति भी जान सकते हैं. यह पोर्टल फसल बीमा की प्रक्रिया की गति एवं दक्षता बढ़ाता है. इसके साथ क्रॉप इंश्योरेंस एप के माध्यम से किसान अब अपने आवेदन की स्थिति और कवरेज के विवरण को घर बैठे जान सकते हैं तथा फसल नुकसान की सूचना भी दे सकते हैं.
संकट में आत्मनिर्भरता
भविष्य में इस योजना के और बेहतर कार्यान्वयन के लिए सरकार वचनबद्ध है. सरकार द्वारा दावों की पारदर्शिता, किसानों की जागरूकता, बेहतर शिकायत निवारण प्रक्रिया एवं त्वरित दावा निपटान पर और अधिक ध्यान दिया जाएगा. फसल उपज के आकलन के लिए तकनीक का व्यापक उपयोग किया जाएगा तथा राष्ट्रीय फसल बीमा पोर्टल के साथ राज्यों की भूमि रिकॉर्ड को जोड़ने की प्रक्रिया तेज गति से की जाएगी. यह योजना प्राकृतिक आपदा की स्थिति में फसलों को होने वाले नुकसान की भरपाई के साधन के रूप में काम करती है, इसलिए सभी किसान भाई-बहन योजना के स्वैच्छिक होने के बावजूद भी इस योजना से अधिक संख्या में जुड़ें. इस योजना से जुड़ने का मतलब संकटकाल में आत्मनिर्भर होना है और सरकार का सपना भी हर अन्नदाता को पूर्ण आत्मनिर्भर बनाना है.