Punjab in crisis due to farmers strike

केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब में लगभग 2 माह से जारी किसान आंदोलन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच रहा है.

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केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब में लगभग 2 माह से जारी किसान आंदोलन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच रहा है. न केंद्र सरकार झुकने को तैयार है, न किसान संगठन टस से मस हो रहे हैं. दोनों के अड़े रहने से भारी नुकसान हो रहा है. किसानों के आंदोलन की वजह से 1986 यात्री ट्रेन और 3,090 मालगाड़ियां रद्द हो चुकी हैं. इससे रेलवे को प्रतिदिन लगभग 36 करोड़ रुपए मालभाड़े का नुकसान हो रहा है. अब तक आमदनी में 1670 करोड़ रुपए की क्षति का अनुमान है. पंजाब के किसान संगठनों ने केंद्र के अड़ियल रुख की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार को पहले मालगाड़ियों का परिचालन शुरू करना चाहिए, इसके बाद ही यात्री ट्रेनों के संचालन पर विचार किया जाएगा. रेलवे ने प्रदर्शनकारी किसानों के केवल मालगाड़ियां शुरू करने के प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया. रेलवे का कहना है कि राज्य में यदि चलाना है तो यात्री ट्रेन और मालगाड़ी दोनों ही चलेंगी. किसानों ने मालगाड़ी चलाने की मांग को लेकर रेल पटरी खाली कर दी थी और हटाई गई फिश प्लेंटे पुन: जोड़ दी थीं. मालगाड़ी नहीं चलने से माल की आवाजाही नहीं हो रही है. कृषि उपज की बरबादी जारी है.

अमरिंदर ने हताशा जताई

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसान संगठनों के रेल रोको आंदोलन को पूरी तरह खत्म नहीं करने पर हताशा जताई और कहा कि इस आंदोलन की वजह से पंजाब की प्रगति रुक गई है. परेशानियां काफी बढ़ी हैं और जबरदस्त घाटा हो रहा है. सामान्य जनजीवन और अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा है. किसान संगठनों को समझना चाहिए कि कोई भी कदम इस तरह लगातार जारी नहीं रह सकता. यदि रेल यातायात आगे भी स्थगित रहा तो राज्य गहरे संकट में फंस जाएगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि पंजाब के हित में इस मुद्दे पर राज्य सरकार के मजबूत समर्थन और कृषि कानूनों के मुद्दे पर केंद्र सरकार की तरफ से किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत कर रास्ता खोलने से यूनियनें अपनी जिद से पीछे हटेंगी.

असंतोष की वजह क्या है

यह बात अपनी जगह है कि संविधान में कृषि समवर्ती सूची में आती है और इस लिहाज से केंद्र व राज्य दोनों का विषय है. इस दृष्टिकोण से भी केंद्र सरकार को विचार करना चाहिए. पंजाब में आंदोलन के तूल पकड़ने की वजह यह है कि वहां देश का लगभग आधा गेहूं पैदा होता है. न्यूनतम खरीदी मूल्य (एमएसपी) की केंद्रीय कृषि कानूनों में कोई गारंटी नहीं दी गई है और किसानों को कारपोरेट के भरोसे छोड़ दिया गया है. यदि कारपोरेट ने उचित दाम पर फसल नहीं खरीदी तो किसानों की फजीहत हो जाएगी. केंद्र की राय में किसानों का दृष्टिकोण यदि गलत है तो केंद्रीय मंत्री किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से चर्चा क्यों नहीं करते? जब इन प्रतिनिधियों को दिल्ली बुलाया गया तो केवल अधिकारियों ने चर्चा की तैयारी दर्शाई और कोई मंत्री सामने नहीं आया. यदि प्रधानमंत्री या कृषि मंत्री चर्चा करते व ठोस आश्वासन देते तो आंदोलन इतना आगे नहीं बढ़ता और कोई रास्ता निकल सकता था.

सीमा पर रसद पहुंचने में दिक्कत

पंजाब में मालगाड़ियों का चलना बंद होने से पश्चिमी सीमा पर जवानों के लिए भेजी जाने वाली रसद में बाधा आ रही है. यद्यपि ट्रकों से सप्लाई भेजी जा रही है परंतु यह मालगाड़ी की बराबरी नहीं कर सकता. जब किसान मालगाड़ी जाने देने के लिए तैयार हैं तो कम से कम उतना तो किया ही जा सकता है. रेलवे की जिद है कि सिर्फ मालगाड़ी नहीं, यात्री ट्रेनें भी चलने दी जाएं. इस तरह गतिरोध बना हुआ है. 3 केंद्रीय कानूनों और बिजली बिल के खिलाफ 26-27 नवंबर को दिल्ली कूच की तैयारी करने वाले 200 से अधिक किसान संगठनों को केंद्र व दिल्ली सरकार ने कोरोना संक्रमण की वजह से रामलीला मैदान या जंतर मंतर कहीं भी धरना देने की अनुमति नहीं दी है. दिल्ली की हालत देखते हुए यह ठीक भी है. यह टकराव जितनी जल्दी खत्म हो, उतना ही अच्छा. किसानों ने अपनी ताकत दिखा दी, अब केंद्र भी कुछ लचीला रुख अपनाए तो उपयुक्त होगा.