Rahul Gandhi

आम तौर पर बहुत कम नेता खुलकर अपने दिल की बात कहते हैं। वे बहुत घुमा-फिराकर या गोल मोल तरीके से बयान देते हैं और इस तरह की गुंजाइश रखते हैं कि जरूरत पड़ने पर अपने बयान से पलटी मारी जा सके। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का तरीका बिल्कुल भिन्न है।

Loading

आम तौर पर बहुत कम नेता खुलकर अपने दिल की बात कहते हैं। वे बहुत घुमा-फिराकर या गोल मोल तरीके से बयान देते हैं और इस तरह की गुंजाइश रखते हैं कि जरूरत पड़ने पर अपने बयान से पलटी मारी जा सके। कांग्रेस नेता राहुल गांधी का तरीका बिल्कुल भिन्न है। वे जो सोचते हैं, वही कहते हैं। इसमें कोई लाग-लपेट नहीं करते। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि महाराष्ट्र सरकार को कांग्रेस सपोर्ट कर रही है। वहां बड़े फैसलों में पार्टी की भूमिका नहीं है। कांग्रेस महाराष्ट्र में डिसीजन मेकर नहीं है। जबकि हमारी पार्टी पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान पुडुचेरी में डिसीजन मेकर है। सरकार चलाने और सरकार का सपोर्ट करने में फर्क होता है। किसी बड़ी पार्टी के नेता ने आज तक इतना बोल्डली नहीं कहा, जैसा कि राहुल गांधी ने खुलकर कह दिया। राहुल का यह कथन एक प्रकार की स्वीकारोक्ति है कि कांग्रेस अब पहले के समान ताकतवर पार्टी नहीं रह गई बल्कि उसे कुछ राज्यों में पीछे रहकर अन्य पार्टियों से समझौता भी करना पड़ता है। वह हर जगह अपनी मर्जी नहीं लाद सकती और बड़े फैसले लेने का हक भी उसके पास नहीं रहता। कांग्रेस ऐसे ही लचीलेपन के साथ महाराष्ट्र व केरल में अपनी भूमिका निभा रही है। जब गठबंधन में पार्टी का संख्या बल कम रहेगा तो वह पीछे ही रहेगी। राहुल ने कांग्रेस के राष्ट्रीय पार्टी होने का जरा भी गुमान न करते हुए बता दिया कि महाराष्ट्र की महाशिव आघाड़ी सरकार से वह एक तरह से ‘बैक बेंचर’ है। शिवसेना व राकां की तुलना में महाराष्ट्र में उसका उतना महत्व नहीं रह गया। इससे यह बात साफ है कि महाराष्ट्र के किसी भी बड़े फैसले की जिम्मेदारी शिवसेना व राकां की है, कांग्रेस को उसमें सहभागी न माना जाए। उसका समर्थन सिर्फ सरकार टिकाए रखने तक सीमित है। बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस ने महाशिव आघाड़ी की सरकार को समर्थन या सपोर्ट दे रखा है।

किसी बड़ी पार्टी के नेता ने आज् तक इतना खुलकर नहीं कहा
राहुल गांधी के इस बयान से महाराष्ट्र के कांग्रेस नेताओं को हताशा हुई होगी क्योंकि वे हमेशा से मानते आए हैं कि कांग्रेस देश के 2 बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों में से एक हैं जबकि शिवसेना और राकां की ताकत सिर्फ एक राज्य महाराष्ट्र में ही केंद्रित है। कांग्रेस की नजरों में शिवसेना व राकां मूलत: क्षेत्रीय पार्टियां हैं। राहुल की स्पष्टवादिता कांग्रेस नेताओं के अहं को ठेस पहुंचाने वाली है जो केंद्र की सत्ता खो देने के 6 वर्ष बाद भी वैसे ही अकड़ते हैं। राहुल ने कांग्रेस की वास्तविकता को उजागर किया है कि अब वह टर्म डिस्टेंट करने वाली (शर्तें लादने वाली) पार्टी नहीं रह गई। किसी गठबंधन सरकार में यदि कांग्रेस का संख्याबल दूसरी पार्टियों से कम है तो वह सिर्फ समर्थन देने तक खुद को सीमित रखेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में रहुल ने देख लिया कि यूपी की 80 में से सिर्फ 1 सीट (रायबरेली) में सोनिया गांधी जीतीं। राहुल खुद अमेठी में हारे और केरल के वायनाड से निर्वाचित होकर लोकसभा में पहुंचे। बाद में चुनाव के बाद बनी मध्यप्रदेश की कमलनाथ के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार भी अल्पजीवी साबित हुई। इसलिए राहुल जानते हैं कि कांग्रेस कितने पानी में है। उन्होंने बढ़चढ़कर बातें करने या डींग हांकने की बजाय साफ बात कहना उचित समझा।

कांग्रेस की वास्तविकता
राहुल के सामने पार्टी की हकीकत है कि अभी भी ओलड गार्ड या पुराने नेता संगठन में हावी हैं। नया खून समने लाने की राहुल की कोशिशें अब नाकाम रहीं और उनकी पसंद के लोगों की उपेक्षा की गई तो राहुल ने अध्यक्ष पद छोड़ना ही बेहतर समझा था। वे ज्योतरादित्य सिंधिया जैसे अपने मित्र को भी बीजेपी में जाने से नहीं रोक पाए क्योंकि वे उनके लिए कुछ कर सकने की स्थिति में थे ही नहीं! सोनिया गांधी का भरोसा पुराने अनुभवी लोगों पर बना हुआ है इसीलिए अहमद पटेल, मोतीलाल वोरा, अंबिका सोनी, अशोक गहलोत उनकी पसंद है। राहुल ने यह भी समझ लिया कि कांग्रेस में सचिन पायलट या जितिन प्रसाद के आगे बढ़ने के अवसर सीमित हैं। राहुल ने अपने इस बयान से कि महाराष्ट्र के बड़े फैसलों में पार्टी की भूमिका नहीं है, बिल्कुल सटीक निशाना लगाया। उन्होंने वस्तु स्थिति बताते हुए पार्टी को आईना दिखाया है।