पवार के फिर हसीन सपने, पहले भी कई बार कोशिश कर चुके हैं

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    महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार उन यशवंतराव चव्हाण के राजनीतिक शिष्य हैं जो उपप्रधानमंत्री पद तक तो पहुंचे लेकिन कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए. महाराष्ट्रवासी भी महसूस करते रहे हैं कि दक्षिणी राज्यों से पीवी नरसिंहराव और एचडी देवगौडा को पीएम बनने का मौका मिला लेकिन महाराष्ट्र इस अवसर से हमेशा वंचित रह गया. शरद पवार शुरू से महत्वाकांक्षी रहे हैं और राजनीतिक चतुराई भी उनमें कूट-कूट कर भरी है तभी तो सिर्फ 38 वर्ष की आयु में वसंत दादा पाटिल की सरकार गिराकर वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए थे. पवार केंद्र में भी रक्षामंत्री और कृषिमंत्री का पद संभाल चुके हैं.

    राजनीतिक अनुभव के मामले में अन्य नेताओं से बहुत आगे हैं. शरद पवार ऐसे नेता है जिनकी केंद्र में रहते हुए भी अपने राज्य महाराष्ट्र पर राजनीतिक मजबूत पकड़ बनी रही वे शुरू से ही क्षेत्रीय क्षत्रप रहे हैं. आज भी राज्य की महाराष्ट्र विकास आघाडी सरकार पवार के मार्गदर्शन में ही चलती है. 4 दशकों से ज्यादा समय से महाराष्ट्र की राजनीति पर उनका प्रभाव बना हुआ है.

    राजीव गांधी की लिट्टे द्वारा हत्या के बाद पीवी नरसिंहराव, अर्जुनसिंह और शरद पवार तीनों ही प्रधानमंत्री पद की होड़ में थे लेकिन तब नरसिंहराव ने बाजी मार ली थी. राव की कैबिनेट में पवार को रक्षामंत्री बनाया गया. बाद में विदेशी मूल के मुद्दे को लेकर सोनिया गांधी को उन्होंने चुनौती दी थी. इस मामले में उन्हें केवल पीए संगमा और तारिक अनवर का साथ मिला. कांग्रेस छोड़कर पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस बना ली. बाद में यूपीए बनने पर पवार और सोनिया गांधी में सामंजस्य हो गया लेकिन पवार की राष्ट्रवादी पार्टी महाराष्ट्र में मजबूती से कायम रही.

    महत्वाकांक्षा अब भी बरकरार

    पवार की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं अब भी बरकरार हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी को टक्कर देने के लिए जिन नेताओं का नाम सामने आता है उनमें ममता बनर्जी और शरद पवार का जिक्र होता है. ममता का बंगाल छोड़कर अन्यत्र प्रभाव नहीं है जबकि कुछ लोग मानते हैं कि पवार के साथ गैरबीजेपी व गैरकांग्रेसी दलों का समर्थन जुटाया जा सकता है. मुंबई में चुनावी राजनीति के चाणक्य कहे जानेवाले समझा जाता है कि इसमें राष्ट्रीय मोर्चा बनाने को लेकर चर्चा हुई. कांग्रेस किसी भी हालत में पवार या ममता में से किसी को सोनिया गांधी की जगह यूपीए अध्यक्ष बनाने को तैयार नहीं होगी. ऐसी हालत में प्रशांत किशोर को बगैर कांग्रेस के दूसरा यूपीए बनाने की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है.

    ऐसा इसलिए क्योंकि प्रशांत की पहुंच ममता और नीतीश कुमार के साथ दक्षिण भारत के नेताओं तक है. शिवसेना सांसद संजय राऊत कई बार शरद पवार को यूपीए अध्यक्ष बनाने की सिफारिश कर चुके हैं लेकिन कांग्रेस नेताओं ने राऊत को करारा जवाब दिया है कि राऊत अपनी पार्टी को देखें, उन्हें यूपीए के बारे में बोलने का कोई हक नहीं है. वैसे पवार स्वयं कोई पद न चाहें लेकिन वे अपनी बेटी सुप्रिया सुले को राष्ट्रीय राजनीति में मजबूती से स्थापित करने की इच्छा अवश्य रखते हैं.