अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व भारतीय हित खतरे में पड़े

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    अफगानिस्तान से अमेरिकी व नाटो फौजों के लौट जाने के बाद यह देश पुन: तालिबान के कब्जे में जा रहा है. देश के 407 जिलों में से 204 पर तालिबान का कब्जा हो चुका है. अफगानिस्तान की सरकारी फौज पर तालिबान भारी पड़ रहे हैं और लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं. भारत के लिए यह स्थिति चिंता का विषय है क्योंकि अफगानिस्तान की सरकार से अब तक हमारे देश के जो मैत्री व सहयोगपूर्ण संबंध रहे हैं, वे तालिबान के आने से चौपट हो जाएंगे. भारत ने अफगानिस्तान में 3 अरब डॉलर का निवेश कर रखा है जिसकी सुरक्षा कर पाना मुश्किल होगा. वहां जलापूर्ति के लिए भारत ने बांध परियोजना का निर्माण किया था, जिसे तालिबान ने हाल ही में निशाना बनाया है. भारत ने अफगानिस्तान के जरिए सामरिक व व्यापार संबंधों के उद्देश्य से मध्य एशिया तक पहुंचने की योजना बनाई थी, जो संकट में आ गई.

    दूतावास खाली करना पड़ा

    तालिबान के बढ़ते वर्चस्व और गृहयुद्ध जैसी स्थितियों को देखते हुए भारत ने कंधार स्थित अपना दूतावास खाली कर दिया और वहां से 50 डिप्लोमैट व कर्मचारी भारतीय वायुसेना के विशेष विमान से स्वदेश लौट आए. कंधार में तालिबानी घुस आए हैं और सरकारी फौजें हारती व पीछे हटती जा रही हैं. तालिबानी उनके हथियारों को अपने कब्जे में ले रहे हैं. कंधार के बाद तालिबान का निशाना उत्तरी अफगानिस्तान में स्थित मजार-ए-शरीफ हो सकता है जहां भारतीय कांसुलेट (महावाणिज्य दूत कार्यालय) है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि दूतावास खाली करना एक अस्थायी कदम है, उसे बंद नहीं किया गया है. काबुल स्थित भारतीय दूतावास ने अफगानिस्तान में रहने वाले या घूमने गए भारतीयों से अपनी सुरक्षा का अधिकतम ध्यान रखने को कहा है. वहां की बिगड़ती स्थिति पर भारत सरकार का ध्यान है.

    पाक विदेश मंत्री से चर्चा होगी

    विदेश मंत्री एस जयशंकर और पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ताजिकिस्तान की राजधानी दुशानबे में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने जा रहे हैं. वहां दोनों के बीच अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर चर्चा हो सकती है. तालिबान को पाकिस्तान की फौज व खुफिया एजेंसी ने ही प्रशिक्षण दिया था. सऊदी अरब की वित्तीय मदद इसके पीछे थी. तालिबान ने ही 1999 के दिसंबर में काठमांडू से भारतीय यात्री विमान का अपहरण किया था और उसे कंधार ले जाया गया था. यह ऐसा कट्टरपंथी संगठन है जो लड़कियों और महिलाओं को अकेले घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं देता. महिला घर के किसी व्यक्ति के साथ बाहर जाए तो उसे पूरी तरह सिर से पैर तक बुर्का पहनना पड़ता है. पुरुषों को दाढ़ी बढ़ानी पड़ती है जिसमें जरा भी कांट-छांट पाई गई तो कोड़े मारे जाते हैं. पढ़ना-लिखना, संगीत सुनना, सिनेमा-टीवी देखना मना है. इन तालिबानों ने बालिका शिक्षा के लिए लड़ रही मलाला यूसुफजई के सिर में गोली मार दी थी, जिसे बड़ी मुश्किल से बचाया जा सका.

    चीन से दोस्ती जता रहा

    तालिबान चीन से दोस्ती जता रहा है और उसका सहयोग चाहता है. तालिबान का कहना है कि वह चीन में रहने वाले उइगर मुस्लिमों से कोई ताल्लुक नहीं रखेगा. भारत ने अफगानिस्तान के हालात को लेकर ईरान और रूस से भी चर्चा की है और अपनी चिंता जताई है. ईरान शिया मुल्क है, जबकि तालिबान कट्टर सुन्नी है. उनके आपसी संबंध नहीं बन पाएंगे. अफगानिस्तान नेशनल आर्मी तालिबान के मुकाबले कमजोर पड़ रही है. राष्ट्रपति अशरफ गनी अपने मुल्क को नहीं बचा पाएंगे. 11 सितंबर तक बची-खुची अमेरिकी और नाटो फौजें वहां से वापस चली जाएंगी.