सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद मुफ्त वैक्सीन, रोज बदलती हैं सरकारी नीतियां

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    यह तो अच्छा है कि लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक न्यायपालिका सजग और सतर्क रहते हुए जनहित में सरकार को उसकी कमियों के लिए रोकती-टोकती और जरूरत पड़ने पर फटकार भी सुनाती है. सरकार की नीतियों व फैसलों की वैधता का निर्धारण न्यायपालिका की कसौटी पर होता है. यदि उसका अंकुश न हो तो सरकार अपने क्रियाकलापों में पूरी तरह स्वच्छंद हो जाए. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार से सीधा सवाल पूछा था कि आम बजट में कोरोना वैक्सीन की खरीद के लिए रखे गए 35,000 करोड़ रुपए कहां गए? सरकार से इस रकम का पूरा हिसाब पेश करने को कहा गया.

    इसके साथ ही देश की सबसे बड़ी अदालत ने तीखा सवाल किया कि इस रकम का इस्तेमाल 18 से 44 वर्ष आयुवर्ग के लोगों के मुफ्त टीकाकरण के लिए क्यों नहीं किया जा सकता? सुप्रीम कोर्ट ने टीका खरीद तथा वैक्सीन की कीमत के बारे में भी सरकार से सवाल किए, जैसे कि वैक्सीन के घरेलू व अंतराष्ट्रीय स्तर पर दाम क्या हैं? वैक्सीन कंपनियों ने केंद्र और राज्य के लिए अलग-अलग कीमतें क्यों रखी हैं, एक ही कीमत क्यों नहीं? खरीद नीति में किस तरह पहले से तय कीमत को अमल में लाया गया? कितने प्रतिशत ग्रामीण आबादी को टीका लगा है?

    सुप्रीम कोर्ट की इस फटकार से सरकार का हड़बड़ाना स्वाभाविक था. इसकी प्रतिक्रिया हुई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए 2 बड़ी घोषणाएं कीं. एक तो यह कि सभी राज्यों को अब केंद्र की ओर से मुफ्त वैक्सीन दी जाएगी, राज्यों को अब इसके लिए कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ेगा. 21 जून से 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों के लिए केंद्र सरकार मुफ्त टीका उपलब्ध कराएगी. दूसरी घोषणा पीएम ने यह भी की कि देश के 80 करोड़ गरीब लोगों को नवंबर अर्थात दिवाली तक मुफ्त राशन दिया जाएगा.

    कुछ सवालों के जवाब अनुत्तरित

    प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में यह नहीं बताया कि क्या सरकार 31 दिसंबर 2021 तक देश में सभी को वैक्सीन लगा पाएगी? इस बारे में वे एक शब्द भी नहीं बोले. उन्होंने यह भी नहीं बताया कि जब तक नई गाइडलाइन नहीं आती, तब तक राज्यों की क्या भूमिका रहेगी? देश में अभी तक 3 प्रतिशत से भी कम टीकाकरण हो पाया है तो सभी को 6 माह के भीतर टीका कैसे लग पाएगा? इस बारे में सरकार को अपनी भूमिका व एक्शन प्लान सामने रखना चाहिए. पीएम ने स्पष्ट किया कि खुले बाजार से 25 प्रतिशत वैक्सीन निजी अस्पताल ले सकेंगे, मगर वे जनता से टीके की कीमत के अलावा 150 रुपए ही सर्विस चार्ज ले सकते हैं. वैक्सीन कंपनियों को 75 फीसदी वैक्सीन केंद्र को बेचना है. यदि केंद्र को रियायती दर पर वैक्सीन देनी पड़े तो वैक्सीन कंपनियां निजी अस्पतालों के लिए दरों में बढ़ोतरी कर सकती हैं. ऐसे में सर्विस चार्ज की कैपिंग के बावजूद निजी अस्पतालों में वैक्सीन लगाना महंगा पड़ सकता है.

    आखिर पॉलिसी क्या है

    यह बात समझ से परे है कि केंद्र सरकार लगातार अपनी नीतियों में बदलाव क्यों करती है? हर बार नीति परिवर्तित करने के लिए कौन उन्हें सुझाव देता है? विपक्ष सरकार को बार-बार बताता आया था कि कोरोना की दूसरी लहर आ सकती है लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी का सीधा सवाल है कि जब वैक्सीन सभी के लिए फ्री है तो निजी अस्पतालों में इसके लिए पैसा क्यों देना होगा? विपक्ष लगातार कहता रहा कि कोरोना की दूसरी और तीसरी लहर आने से पहले सभी देशवासियों को टीका लगा दें. आखिर क्या वजह है कि पीएम इतनी देर से जागे हैं?

    अनिच्छा से उठाया कदम 

    विपक्षी पार्टियों ने सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने यह कदम सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उठाया. यह उनकी इच्छा वाला संबोधन नहीं था. इसके पहले केंद्र ने कहा था कि राज्य अपनी जरूरत के मुताबिक वैक्सीन विदेश से सीधे खरीद सकते हैं, जबकि यह बिलकुल भी व्यावहारिक नहीं था. प्रधानमंत्री पहले ही जनहित में कदम उठाते तो कितनी ही जानें बच जातीं.