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फाइल फोटो

बजट की शुरुआत का प्रतीक है हलवा, जिसका जलवा बजट पेश होने के बाद नजर आता है. वित्त मंत्री के हाथों हलवा सेरेमनी होती है.

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हलवा ऐसी मीठी डिश है जो घर-घर में बनाई जाती है लेकिन गृहिणी से लेकर केंद्रीय वित्त मंत्री तक सभी को हलवा बनाने से लेकर खिलाने तक में काफी दिलचस्पी है. बजट की शुरुआत का प्रतीक है हलवा, जिसका जलवा बजट पेश होने के बाद नजर आता है. वित्त मंत्री के हाथों हलवा सेरेमनी होती है. बड़े से कड़ाह में बना मीठा व स्वादिष्ट मेवा पड़ा हुआ हलवा वित्त मंत्रालय के अधिकारियों व स्टाफ को वितरित किया जाता है. यह संकेत है कि हलवा खाओ और बजट बनाने के काम पर लगो.

हलवा बनाने की विधि गोपनीय नहीं है लेकिन इसे खाने के बाद बनाया जाने वाला बजट अत्यंत गोपनीय होता है.. इसे बनाने वालों को बजट जारी होने तक वहीं रहना पड़ता है. वे न तो अपने घर जा सकते हैं, न कहीं बाहर कदम रख सकते हैं. उनके पास कोई मोबाइल भी नहीं रहता कि किसी से बात कर लें. हलवा चट कर जाओ लेकिन चैट बिल्कुल मत करो!

हलवा उन्हें ऊर्जा देता है कि सरकार की नीति व निर्देशों के अनुरूप बजट बनाओ. हलवा हमेशा मीठा होता है जिसमें उदारता से घी-शक्कर डाला जाता है लेकिन बजट उदार या मीठा होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं रहती. हलवा इलायची की सुगंध तथा बादाम, काजू, किशमिश के साथ एक पोषक या रिच डाइट के रूप में सर्व किया जाता है लेकिन यह नही कह सकते कि बजट भी ऐसा ही जायकेदार होगा.

ऊंची दुकान फीके पकवान जैसी कहावत कहीं भी लागू हो जाती है. इन दिनों गाजर का मौसम है. गाजर का हलवा बनाते समय उसमें खोआ (मावा), कन्डेंस्ड मिल्क वगैरह डालकर उसे स्वादिष्ट बनाया जाता है. वित्त मंत्रालय को गाजर का हलवा बनाने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि सत्ताधारी खुद ही जनता को गाजर-मूली समझते हैं.

गाजर को कद्दूकस किया जाता है तो जनता को भी महंगाई की चक्की में पीसा जाता है. बजट को टॉप सीक्रेट रखा जाता है. हलवा बनाओ तो उसकी सुगंध फैल सकती है, बजट के स्वाद और सुगंध का कुछ भी पता नहीं चलता. जनता को सब अच्छा लगता है, चाहे हलवा हो या मीठी कैंडी, पर वह चाहती है कि बजट बनाया जाए पीपुल फ्रेंडली!