बदरीनाथ-केदारनाथ की लाइव पूजा दिखाने का मुद्दा, शास्त्रों से नहीं, कानून से चलता है देश

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    जब राजतंत्र था, तब शास्त्रों से शासन चला करता था. राजा अपने राजपुरोहित से सलाह लेता था कि किस मुद्दे पर शास्त्रों की क्या राय है? वह ऐसा युग था जब मनुस्मृति, पाराशर स्मृति व याज्ञवल्क्य स्मृति जैसे ग्रंथों व प्रचलित रूढ़ियों के आधार पर निर्णय लिया जाता था. उस समय राजा शासन करने के साथ न्यायदान की जिम्मेदारी भी संभालता था. यूरोप में भी धर्म पर आधारित राज व्यवस्था होने से पोप के पास असीमित शक्तियां थीं. गैलीलियो जैसे वैज्ञानिक को इसीलिए प्राणदंड दिया गया था क्योंकि वह अपनी वैज्ञानिक खोजों से परंपरागत मान्यताओं को ध्वस्त कर रहा था. गैलीलियो ने कहा था कि पृथ्वी तश्तरी के समान चपटी नहीं, बल्कि गेंद के समान गोल है तथा सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करता, बल्कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है. ऐसी बातें पोप को अखर गई थीं, जिसकी कीमत गैलीलियो को जान देकर चुकानी पड़ी. बाद में सिद्ध हो गया कि गैलीलियो ही सही था.

    संविधान ही सर्वोपरि

    लोकतांत्रिक प्रणाली में संविधान ही सर्वोपरि है. उसी के प्रावधानों के अनुसार शासनतंत्र एवं व्यवस्था का संचालन होता है. जो रूढ़ियां एवं परंपराएं कानून और संविधान के अनुरूप नहीं हैं, उन्हें मान्यता नहीं दी जाती. शास्त्रों का सम्मान किया जा सकता है लेकिन उनका अंधानुकरण वर्तमान समय में संभव नहीं है क्योंकि परिस्थितियां और संदर्भ बदल गए हैं. अब ऐसी तकनीक आ गई है जिसकी पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य के एडवोकेट जनरल एसएन बाबुलकर की उस दलील को ठुकरा दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि मंदिर में पूजा-पाठ के लाइव प्रसारण को शास्त्र अनुमति नहीं देते. चीफ जस्टिस आरएस चौहान और जस्टिस आलोककुमार वर्मा की बेंच ने एडवोकेट जनरल से कहा कि वे ऐसा धार्मिक तर्क न दें जिसका कोई कानूनी आधार नहीं है. अगर कोई ऐसा आईटी एक्ट (सूचना तकनीक कानून) है तो कृपया हमें दिखाएं जो कहता हो कि मंदिर में होनेवाली पूजा-अनुष्ठान की लाइव स्ट्रीमिंग नहीं की जा सकती. हाईकोर्ट ने कहा कि भारत लोकतांत्रिक देश है जहां कानून का शासन है, शास्त्रों का नहीं! कुछ दिनों पहले हाईकोर्ट ने कोरोना संक्रमण की वजह से चारधाम यात्रा पर रोक लगाते हुए गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ के पूजा-अनुष्ठानों का लाइव प्रसारण करने को कहा था.

    महाधिवक्ता की दलील

    एजी (महाधिवक्ता) ने कहा कि मंदिरों में पूजा-पाठ की लाइव स्ट्रीमिंग का फैसला देवस्थानम बोर्ड को लेने की अनुमति दी जाए. साथ ही उन्होंने कहा कि कुछ पुजारियों का कहना है कि हिंदू शास्त्र इन विधि-विधानों के लाइव प्रसारण की अनुमति नहीं देते हैं. इस पर एतराज जताते हुए कोर्ट ने कहा कि शास्त्र इस देश को कंट्रोल नहीं करते. इस देश का नियंत्रण और इसके भविष्य का मार्गदर्शन भारत के संविधान के जरिए होता है. हम संविधान और कानून के परे नहीं जा सकते.

    कितने ही मंदिरों का लाइव प्रसारण होता है

    कृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा के मंदिरों से टीवी पर सीधा लाइव प्रसारण होता है. इसी प्रकार तिरुपति देवस्थान, मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर, शिर्डी साई मंदिर की पूजा व आरती का लाइव प्रसारण होता है. यह तकनीक उस युग में थी ही नहीं जब शास्त्रों की रचना हुई, इसलिए कोई शास्त्र इसके लिए मना कैसे करेगा? लाइव दर्शन से भक्तों को सहूलियत होती है. वे घर बैठे थर्मस्थलों का दर्शन कर वहां की लाइव पूजा देख सकते हैं. शास्त्रों के नाम पर इसमें व्यर्थ का अड़ंगा डालना अनुचित है.