बंगाल में एड़ी-चोटी का जोर लगाती BJP

    Loading

    बम के धमाकों और हिंसा के बीच बंगाल का चुनाव सत्तारूढ़ (West Bengal Elections) तृणमूल और (Trinamool Congress) उसे कड़ी चुनौती दे रही बीजेपी के बीच रोमांचक रणक्षेत्र बना हुआ है. इस राज्य में शांतिपूर्ण चुनाव की कल्पना ही कठिन है. ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) ने बंगाल में 30 वर्ष तक राज करने वाले लेफ्ट को उसी के तरीके से हराया था लेकिन लेफ्ट के कमजोर हो जाने से वहां बीजेपी को पैर जमाने में मदद मिल रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा बंगाल विधानसभा में बीजेपी की जीत के लिए जमीन-आसमान एक कर रहे हैं.

    ममता बनर्जी के करीबी रहे तृणमूल के असंतुष्ट नेता शुवेंदु अधिकारी के अलावा कितने ही अन्य नेता बीजेपी में शामिल हो गए हैं. बीजेपी का उत्साह इसलिए बढ़ा हुआ है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने बंगाल से 19 सीटें जीती थी. अपनी उपस्थिति कायम रखने के साथ-साथ भाजपा के समक्ष दो विकल्प हैं. पहला, तृणमूल कांग्रेस के मतदाता समूह को तोड़ना होगा. इस बार के चुनाव में उसे पूर्वी तथा पश्चिमी मिदनापुर में अपनी ताकत दिखानी होगी. दूसरा कि भाजपा को यह प्रदर्शित करना पड़ेगा कि तृणमूल कांग्रेस अपनी ही समस्याओं से परेशान है. पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं की मौजूदगी 27 से 30 फीसदी है और यह किसी भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. भाजपा की हर कोशिश के बावजूद यह उसकी पहुंच से बाहर है.

    क्या ओवैसी मुस्लिम वोटों में सेंध लगाएंगे

    ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में कहा कि वह बंगाल में अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाएंगे और उसके बाद उन्होंने यहां के मुस्लिम नेताओं से मुलाकात करनी शुरू कर दी. मुस्लिम समुदाय बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में से 120 पर निर्णायक भूमिका अदा करता है. दूसरी तरफ राज्य में चुनाव से पूर्व भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस के मध्य एक नई नारेबाजी चल रही है, राष्ट्रवाद बनाम क्षेत्रवाद. भाजपा हर चुनाव में चाहे वह राष्ट्रीय हो या राज्य स्तरीय राष्ट्रवाद को हवा देती है, जबकि तृणमूल कांग्रेस क्षेत्रवाद के पत्ते फेंक रही है. बिहार के चुनाव में जैसे नीतीश कुमार ने बिहारी बनाम बाहरी  का नारा दिया, ठीक उसी तरह तृणमूल प्रयास में है.

    राष्ट्रवाद विरुद्ध क्षेत्रवाद

     मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कई बार भाजपा को बाहरी कहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि ‘राष्ट्रवाद बनाम क्षेत्रवाद’ का नारा 2021 के बंगाल के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. भाजपा हिंदुत्व और जय श्रीराम के नारे दे रही है, जोकि बंगाल के लिए नई बात है और यही कारण है कि बाहरी बनाम स्थानीय की बात उठ रही है. तृणमूल कांग्रेस ने ‘मां माटी मानुष’ का नारा दिया था, इसके जवाब में भाजपा कह रही है, ‘एइ बार बांग्ला, पारले तो सामला ’ यानी इस बार बंगाल रोक सको तो रोक लो. भाजपा पिछले एक साल या कह सकते हैं, उससे ज्यादा समय से ऐसे बंगाली चेहरे की तलाश में है, जो राज्य में हिंदुत्व की राजनीति को और ताकतवर बनाए. बीजेपी पूर्व क्रिकेट कतान सौरव गांगुली पर दांव लगाना चाहती थी लेकिन वे बीमार हो गए. अभी हाल ही में सरसंघनचालक मोहन भागवत ने अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती से भेंट की जिसे लेकर काफी चर्चा है. क्या मिथुन ममता के खिलाफ बीजेपी का चेहरा होंगे? पार्टी ने जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी प्रचार का जरिया बनाया है और बता रही है कि वे बंगाल के सपूत थे, जिन्होंने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया. यही नहीं, केंद्र सरकार ने 150 वर्ष पुराने कलकत्ता पोर्ट को श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट का नाम देने की मंजूरी दे दी है. भाजपा बंकिम चंद्र चटर्जी, स्वामी विवेकानंद और निर्मल चट्टोपाध्याय जैसी हिंदू विभूतियों का भी उल्लेख कर रही है.

    इन सबके बीच बंगाल में इन दिनों हिंसा की जो घटनाएं हो रही हैं, वे एक तरह से परिवर्तनकारी हैं. अभी जो हिंसक घटनाएं घट रही हैं, उन्हें सामाजिक आर्थिक संकट के रूप में देखा जाना चाहिए. बंगाल में जब-जब राजनीतिक विरोध की व्यापकता बढ़ी है, सत्ता में परिवर्तन हुआ है. अभी जो हिंसक घटनाएं हो रही हैं, वह आने वाले चुनाव की ओर संकेत कर रही हैं. शाक्त परंपरावाले राज्य में जहां कि जय दुर्गामाता का घोष होता है, ‘ जय श्री राम ‘ का प्रवेश एक तरह से विचारों के परिवर्तन के प्रयास का पहला कदम है. इसमें कोई शक नहीं आने वाले दिनों में हिंसा की घटनाएं और बढ़ेंगी.