बंगाल चुनाव में मोदी ब्रांड फेल होने के कारण UP के चुनाव में दांव पर नहीं

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    बंगाल के चुनाव में बीजेपी की विफलता के बाद से ब्रांड मोदी पर भरोसा नहीं रह गया. दिल्ली में हुई आरएसएस की बैठक में निर्णय लिया गया कि उत्तर प्रदेश तथा अन्य 5 राज्यों में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों में अब प्रधानमंत्री मोदी चेहरा नहीं होंगे. संघ की सोच है कि क्षेत्रीय नेताओं के मुकाबले मोदी के चेहरे को सामने रखने से उनकी राष्ट्रीय छवि को नुकसान हुआ. विरोधी बेवजह ही उन्हें निशाना बनाते हैं. राजनीतिक विरोधियों को बार-बार मोदी पर हमला करने का मौका मिला.

    इससे उनकी इमेज को नुकसान होता है. संघ की बैठक में यूपी विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लड़ने का फैसला लिया गया. बीजेपी मानती है कि भगवा वेशधारी योगी हिंदूवादी राजनीति और विकास के संगम का प्रतिनिधित्व करते हैं. यदि बीजेपी को 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव जीतना है तो उसे ऊंची जातियों के हिंदू वोटों के अलावा सभी जातियों के ऐसे हिंदू वोट भी लेने होंगे जो हिंदुत्व की राजनीति का विरोध नहीं करते लेकिन आर्थिक प्रगति की विशेष चिंता करते हैं. कोरोना संकट के दौरान अर्थव्यवस्था पर जिस तरह से विपरीत प्रभाव पड़ा है, वह बीजेपी के लिए चिंता का विषय है. योगी ने हिंदू मतदाताओं का दिल जीता लेकिन राज्य में अर्थव्यवस्था का रिपोर्ट कार्ड औसत ही रहा.

    योगी के बढ़ते कद से आशंकित पार्टी उन्हें प्रदेश तक ही सीमित रखेगी

    योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी के हिंदूवादी मतदाताओं की आकांक्षा पूरी हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में फैसला दिया जबकि योगी सरकार ने कानून व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया. शातिर खूंखार अपराधियों को ठोक देने की छूट, लव जिहाद विरोधी कानून बनाने, एंटी रोमियो स्क्वाड बनाकर मनचलों के खिलाफ कार्रवाई करने जैसी बातों से योगी की लोकप्रियता बढ़ी. उन्होंने इलाहाबाद को प्रयागराज का प्राचीन नाम दिलवाया. उन्होंने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में सीएए विरोधी दंगों के मामले सख्ती से निपटाए और सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान करने वाले दंगाइयों पर जुर्माना लगाया. इन बातों से उन्हें बीजेपी के परंपरागत मतदाताओं की ओर से सराहना मिली. विकास कार्यों पर गौर करें तो सुपर हाईवे तथा डिफेंस कोरिडोर बनाने व राजधानी लखनऊ में इको सिस्टम शुरू करने में योगी सरकार ने पहल की, परंतु ये सभी कार्य अभी पूरे होने बाकी हैं. कुछ क्षेत्रों में सक्रियता के बावजूद आर्थिक मोर्चे पर सरकार की विशेष उपलब्धि नहीं है.

    इतने पर भी आदित्यनाथ ने राज्य में पार्टी के आधार को मजबूती दी है और मोदी व अमित शाह के बाद वे ही पार्टी के बड़े लोकप्रिय नेता हैं. 24 करोड़ लोगों की आबादी वाले यूपी में जहां प्रशासनिक क्षमता कमजोर है, वहां भी योगी ने कोरोना आपदा में यथाशक्ति बेहतर काम किया. कोरोना की पहली लहर के समय जब प्रवासी मजदूर यूपी के अपने गांवों में लौटे तो उन्हें अस्थायी काम तथा जीवन यापन के साधन उपलब्ध कराए गए. दूसरी लहर में शुरुआती ढीलेपन के बाद यूपी में टेस्टिंग बढ़ाई गई. कुछ दिनों में तो 3 लाख से ज्यादा टेस्ट कराए गए. अब काफी हद तक कोरोना पर नियंत्रण पा लिया गया है. कोरोना की तादाद 14,000 एक्टिव मामलों तक आ गई है. अब देखना होगा कि मार्च 2022 में होने वाले चुनाव तक 7-8 महीनों में योगी क्या करते हैं? कोरोना नियंत्रण और विकास के लिहाज से उनका कामकाज मतदाताओं की कसौटी पर होगा.

    राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा नहीं

    यह भी उल्लेखनीय है कि योगी के बढ़ते कद से आशंकित बीजेपी और संघ उन्हें यूपी तक ही सीमित रखने पर जोर देंगे. इस दौरान यह भी संकेत मिले कि योगी की राजनाथ सिंह व नितिन गडकरी से अच्छी पट रही है, जबकि योगी के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें बधाई भी नहीं दी. यूपी की राजनीति में तेज हलचल के बावजूद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उनकी कोई राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा नहीं है. वे ऐसे आम सैनिक हैं जो बीजेपी के विजन और विकास, सुरक्षा व समृद्धि के लिए पीएम मोदी के अभियान के अंतर्गत काम कर रहे हैं.