हिंदी में राष्ट्रभाषा बनने के सारे गुण हैं, सभी भाषाओं का सम्मान जरुरी

  • कोई भी भाषा आत्मघाती नहीं होती

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अकोला. अ.भा. मराठी साहित्य महामंडल के अध्यक्ष कौतिकराव ठाले पाटिल ने अपने एक बयान में कहा है कि हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा के रुप में मान्यता देना आत्मघाती कदम होगा. इस बारे में अकोला के साहित्यकारों और जनप्रतिनिधियों, गणमान्यों ने कहा कि सभी भाषाओं का सम्मान जरुरी है. कोई भी भाषा आत्मघाती नहीं होती है. प्रस्तुत है साहित्यकरों और गणमान्यों के विचार.

प्रा. अजहर हुसैन
पूर्व मंत्री प्रा. अजहर हुसैन ने इस बारे में कहा कि हमारी मातृभाषा और राज्य भाषा के साथ साथ एक जनसंपर्क भाषा भी जरुरी है. हिंदी हमारी संपर्क भाषा है जिसका उपयोग पूरे देश में किया जाता है. इसी तरह हमें सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए. कोई भी भाषा आत्मघाती नहीं होती. 

गोवर्धन शर्मा
अकोला के वरिष्ठ विधायक गोवर्धन शर्मा ने कहा कि हिंदी भाषा एक सरल भाषा है. शायद इसी कारण देशभर में इसका उपयोग जनसंपर्क भाषा के रुप में किया जाता है. हिंदी के साथ साथ हमें सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए. किसी भी भाषा को आत्मघाती कहना उचित नहीं है. सभी का समुचित सम्मान जरुरी है. 

गोपीकिसन बाजोरिया
वरिष्ठ विधायक गोपीकिसन बाजोरिया ने कहा कि देशभर में संपर्क करने के लिए, लोगों से बातचीत करने के लिए हम हिंदी भाषा का उपयोग करते हैं. हिंदी हमारी जनसंपर्क भाषा है. इसी के साथ साथ हमें सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए. भाषा कोई भी हो वह हमारे विचारों को प्रकट करने का सशक्त माध्यम रहती है. इस बात का ध्यान रखते हुए हमें मातृभाषा, राज्य भाषा और जनसंपर्क भाषा सभी का सम्मान करना चाहिए.

डा.सुरेश कुमार केसवानी
स्थानीय सीताबाई कला महाविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डा. सुरेश कुमार केसवानी ने कहा कि यद्यपि भारत देश में अनेक भाषाएं बोली, लिखी और समझी जाती हैं. तथापि हिंदी ही देश की सच्ची राष्ट्रभाषा है. हिंदी को राष्ट्रभाषा का गौरव इसीलिए प्राप्त है क्योंकि वह पूरे देश में समझी जाती है. त्रिभाषा सूत्र में प्रदेश की भाषा को ही महत्व प्राप्त है. 

डा.रामप्रकाश वर्मा
हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकारों डा. रामप्रकाश वर्मा ने कहा कि हिंदी को महात्मा गांधी द्वारा राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया था. अहिंदी भाषी क्षेत्रों ने ही हिंदी को राष्ट्रभाषा हेतु समर्थन दिया था. लोकमान्य तिलक ने भी इस समर्थन में आवाज बुलंद की थी. सभी राज्यों में हिंदी बोली और समझी जाती है इसलिए हम हिंदी को राष्ट्रभाषा मानते हैं. इसी के साथ साथ सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं और सभी भाषाओं का सम्मान किया जाना चाहिए.

घनश्याम अग्रवाल
हिंदी के वरिष्ठ हास्य, व्यंग्य कवि घनश्याम अग्रवाल ने कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा मानना चाहिए या नहीं, यह एक तकनीकी बात है, जिसकी न तो मुझे वैज्ञानिक व संसदीय जानकारी है और न ही मैं इसकी जरूरत महसूस करता हूँ. एक लेखक व कवि के नाते मुझे हर उस भाषा से प्यार है जो एक -दूसरे की भावनाएं समझे, उस भावनाओं के ईद-गिर्द वह लिखता रहे, पढ़ता रहे. भाषा अपने आप अपने उस मुकाम पर पहुंच जायेंगी. उसे राज्यभाषा कहो, राष्ट्रभाषा कहो, या जो भी नाम दो. बाकी सब बातें है और बातों का क्या? धन्यवाद सभी भाषाओं सहित हिंदी को प्रणाम.

डा.पूनम मानकर पिसे
हिंदी की प्राध्यापिका डा.पूनम मानकर पिसे ने कहा कि हिंदी में राष्ट्रभाषा बनने के सारे ही गुण मौजूद हैं. अधिकांश लोगों द्वारा बोली, समझे जाने की बात हो अथवा समृद्ध साहित्य की. हिंदी ने सभी भाषाओं के शब्दों को अपनाते हुए सर्वधर्म तथा भाषाई समभाव की समृद्ध परंपरा को साथ लिए विश्व पटल पर अपना स्थान अंकित किया है. मराठी मेरी मातृभाषा है जिसपर मुझे नाज़ है. परंतु राष्ट्रभाषा के अभाव में राष्ट्र गूंगा है ऐसे मे हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में एकमत से खड़े होकर राष्ट्रहित का परिचय देना होगा.

एड.गिरीश गोखले
मनपा पार्षद एड.गिरीश गोखले ने कहा कि देश की आजादी की लड़ाई में हिंदी ही हमारी संपर्क भाषा रही है. हिंदी तो काश्मीर से कन्याकुमारी तक बोली जाती है. हम उसे हमारी राष्ट्रभाषा मानते हैं. इसी के साथ साथ अपनी मातृभाषा और राज्य भाषा के साथ साथ सभी भाषाओं का समुचित सम्मान किया जाना चाहिए. भाषा ही तो हमारे विचारों को प्रकट करती है.