Now cotton clothes have gone out of the budget of common people

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अकोला. एक समय था जब चाहे आर्थिक रुप से संपन्न लोग हों या आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के लोग, सभी लोग सूती कपड़े पहना करते थे. उन्नीसवी शताब्दी से पहले हमारे देश में जितने कपड़े की जरुरत होती थी उतना कपड़ा हमारे देश में ही बनाया जाता था. हर छोटे छोटे गांवों में कपड़ा बुनने वाले जुलाहे वहां लोगों को जितनी आवश्यकता होती ती उतना कपड़ा बनाकर उन्हें बेच दिया करते थे. एक समय ऐसा था जब आर्थिक रुप से संपन्न वर्ग के लोगों के लिए ढाका की मलमल और बनारस का रेशमी कपड़ा, इसी तरह महाराष्ट्र में पैठण और नागपुर का कपड़ा उपयोग में लाया जाता था. वैसे अधिकतर लोग सूती कपड़े का ही उपयोग किया करते थे.

अकोला से लेकर नागपुर तक कपास की पैदावार बहुत होती थी. अकोला को तो कॉटन सिटी के नाम से आज भी जाना जाता है. यह अलग बात है कि आज तमाम कपड़ों की मिलें बंद हो चुकी हैं लेकिन कपास की पैदावार शुरु है. धीरे धीरे परिवर्तन होता चला गया. सन 1940 से 1945 के बीच टेरेलीन कपड़े का हमारे देश में आगमन हुआ. फिर टेरीकाट और टेरीन के कपड़े भी आए. उसके बाद फिर पॉलिस्टर कपड़ा आया. यह अलग बात है कि उस जमाने में टेरीकाट का कपड़ा खरीदना आम आदमी के बजट के बाहर हुआ करता था.

नायलान और टेरीन की भी यही स्थिति थी. फिर गैबर्डीन का कपड़ा भी आया, फिर सिन्थेटिक कपड़े भी आ गए और इन कपड़ों के प्रति लोगों का रुझान धीरे धीरे बढ़ता गया. उस जमाने में भी यह परिस्थिति थी कि सूती कपड़ों में प्रेस करनी पड़ती थी और टेरीकाट, टेरीलीन तथा अन्य सिन्थेटिक कपड़ों को धोकर, सुखाकर, बिना प्रेस किए भी पहना जा सकता था. तब भी अधिकतर लोग सूती कपड़े ही पहनते थे. समय बदलता रहा, परिवर्तन होते रहे लेकिन सूती कपड़ों की तरफ लोगों का आकर्षण कम नहीं हुआ.

अंदरुनी वस्त्रों में 90 से 95 प्रतिशत सूती वस्त्र ही उपयोग किए जाते रहे हैं. लेकिन अब तो यह परिस्थिति है कि लोग अब सूती कपड़ों के उपयोग को ही प्राथमिकता दे रहे हैं. यदि लोगों को कपड़े सिलवाने हों या रेडीमेड कपड़े खरीदने हों लोग कपड़ों की दुकान में जाते ही यह कहते हैं कि काटन में ही दिखाइए. यह बात भी सही है कि कपास का उत्पादन भारतवर्ष के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्ध है. सूती वस्त्रों का उपयोग करने के कारण हम कई प्रकार के चर्म रोगों से बचे हुए हैं. चाहे गर्मी का मौसम हो या सर्दी का मौसम हो आपका हर मौसम में सूती कपड़े ही पूरी तरह से राहत प्रदान करते हैं.

इसी तरह शरीर के तापमान को मौसम के अनुसार स्थित और सामान्य रखने का कार्य भी सूती कपड़े ही करते हैं. सूती कपड़ों को पहनने से जो सूकून, शांति, सुविधा और ठंडक मिलती है वह सिन्थेटिक कपड़ों से बिलकुल नहीं मिल पाती है. धीरे धीरे यह बात लोगों की समझ में आने लगी है. इसलिए पहनने से लेकर ओढने, बिछाने हेतु भी इसी तरह फूल पैन्ट, शर्ट, जीन्स और अंदरुनी वस्त्र, इसी प्रकार साड़ियां, सलवार सूट और छोटे बच्चों के कपड़े सभी के लिए सूती कपड़ों की मांग बढ़ी है और शायद यही कारण है कि अच्छे सूती कपड़ों की कीमतें आसमान छूने लगी हैं. कुछ प्रकार के सूती कपड़ें तो आम आदमी के बजट से जैसे बाहर ही होते जा रहे हैं. लेकिन कुछ भी हो सूती कपड़ों को पहनने का एक अपना अलग ही आनंद है, इस बात को नकारा नहीं जा सकता है.