- तरबूज की भी यही स्थिति
अकोला. अकोला जिले में पिछले करीब बीस दिनों से प्याज की फसल निकलनी शुरू हो गयी है. लेकिन शहर तथा जिले में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए पिछले काफी लंबे समय से लाकडाउन शुरू था. इस कारण जिले के अनेक किसान अपना प्याज बाजारों में बेच नहीं सके. इस लाकडाउन के कारण उनकी स्थिति पूरी तरह से खराब होकर रह गई है.
खेतों में पड़ा है प्याज
जिले के अनेक प्याज उत्पादक किसानों के खेतों में अभी भी प्याज के ढेर लगे हुए हैं. उस पर हाल ही में आई आंधी और बारिश के कारण अनेक किसानों का प्याज खराब भी हो गया है. इस लगातार शुरू लाकडाउन के कारण किसानों की प्याज की फसल हाथ आने के बाद भी खराब हो गई है. अनेक किसान अपने खेतों से प्याज बोरों में भर कर शहरों के विविध मार्गों पर खड़े रहकर बेच रहे हैं. यहां रिटेल में प्याज 15 से 20 रू. किलो के अनुसार बिक रहा है. वहीं प्याज के 30 किलो के बोरे 250 से 300 रू. के अनुसार बिक रहे हैं.
इस तरह बहुत ही कम दामों में प्याज की बिक्री शुरू है. आज से लाकडाउन में दोपहर 2 बजे तक दूकानें खोलने की अनुमति दी गयी है. लेकिन अपने खेतों से यहां माल लाकर बेचने के लिए यह समय बहुत कम पड़ रहा है. अनेक किसानों का कहना है कि खेतों में काम करने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं. जो मजदूर मिल रहे हैं उनकी मजदूरी काफी बढ़ गई है. इस कारण भी बहुत से किसान अभी तक प्याज खेतों से उठा नहीं पाए हैं.
उत्पादन खर्च नहीं निकल रहा
प्याज उत्पादक किसानों का कहना है कि प्याज की फसल के लिए एक एकड़ जमीन पर करीब 50 से 55 हजार रू. खर्च होते हैं. उसके बाद नैसर्गिक तकलीफों का सामना करते हुए फसल निकालनी पड़ती है. इस तरह जितना खेतों का खर्च किया जाता है उस अनुसार फिलहाल उत्पादन खर्च भी नहीं निकल पा रहा है. इस कारण भी किसान वर्ग काफी परेशान देखा जा रहा है.
तरबूज की भी यही स्थिति
ठीक तरबूज की फसल निकलने के समय ही लाकडाउन लग गया था. इस कारण किसानों का तरबूज बाजारों में बिक नहीं सका. लाकडाउन बहुत दिनों तक चला जिसमें सुबह 11 बजे तक ही दूकानें खोलने की अनुमति थी. किसान खेतों से तरबूज लेकर शहर में आते थे लेकिन सुबह 11 बजे तक तरबूज बिक नहीं पाता था.
इस कारण किसानों को तरबूज बहुत ही सस्ते दामों में बेचना पड़ा. एक समय था जब करीब 3 किलो का तरबूज 40 से 60 रू. तक बिक जाता था. वर्तमान समय में वही तरबूज 20 से 30 रू. में बिक रहा है. तरबूज उत्पादक किसानों का भी कहना है कि उन्हें तरबूज की फसल का उत्पादन खर्च भी नहीं निकल पाया है.