ग्राम कुरणखेड़ स्थित चंडिका देवी मंदिर में कोरोना संकट के कारण भीड़ कम

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अकोला. राजमार्ग क्र.6 पर अकोला से अमरावती मार्ग पर 15 कि.मी. दूरी पर स्थित ग्राम कुरणखेड़ में काटेपूर्णा नदी किनारे से दो कि.मी. की दूरी पर उंची टेकड़ी है जहां चंडिका देवी का मंदिर है. निसर्गरम्य वातावरण में यह मंदिर भक्तों के लिए आस्था का स्थान है. चंडिका देवी को कई लोग ढगा देवी के नाम से भी पहचानते है.

विदर्भ सहित महाराष्ट्र से बड़ी संख्या में भक्तगण चंडिका देवी का दर्शन करने के लिए प्रतिवर्ष नवरात्रि में आते हैं. लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट के कारण भक्तों की भीड़ कम दिखाई दे रही है. जो भी दर्शन के लिए आते हैं वे द्वार पर ही देवी का दर्शन कर बाहर पूजा अर्चना करते हैं. 

प्रतिवर्ष लगता है मेला

ग्राम कुरणखेड़ (काटेपूर्णा) स्थित चंडिका देवी मंदिर में प्रतिवर्ष नवरात्रि के दिनों में मेला लगता है. हजारों की संख्या में भक्तगण दर्शनार्थ आते हैं. राजमार्ग क्र.6 से मंदिर तक जाने के रास्ते पर पूजन सामग्री की दुकानों के साथ साथ अन्य दुकानें लगती है. प्रतिवर्ष मंदिर परिसर एक मेले के समान दिखाई देता है. लेकिन इस वर्ष कोरोना संकट के कारण मंदिर परिसर में भीड़ काफी कम है. 

जागृत देवस्थान

चंडिका देवी मंदिर यह एक जागृत देवस्थान है. माता के भक्त विविध गांवों से आते हैं. चंडिका माता के संदर्भ में कई कथाएं बतायी जाती है. प्राचीन काल में यह गांव कुचनपुर नाम से जाना जाता था. बादमें इसका नाम कुरणखेड़ बन गया. चंडिका माता यह भक्तों का संकट हरण करनेवाली माता है. यह स्थान एक जागृत देवस्थान के रुप में सर्वपरिचित है. 

कुचनपुर के राजा की भक्ति

कुचनपुर का राजा नरेश देवी का भक्त था. इस टेकड़ी पर घना जंगल होने के बावजूद वह यहां आकर जाता था. एक बार राजा नरेश सुबह के समय टेकड़ी पर पहुंचा. वहां उसे एक शेर अपनी पूंछ से वह जगह साफ करते हुए दिखाई दिया. राजा आश्चर्यचकित रहा. तब से चंडिका माता का मंदिर बनाने की इच्छा जागृत हुई. यह भक्तों का विश्वास है. मंदिर का इतिहास 200 वर्ष पुराना है. इसी तरह का मंदिर ओडिशा राज्य में भुवनेश्वर शहर में होने की जानकारी अभ्यासक देते हैं.

आद्य पुजारी व्यंकटेश कोंडोबा भोसले ने 30 वर्षों तक देवी मां की पूजा अर्चना कर सेवा की. सन 1992-93 में अकोला निवासी दिवंगत डैडी देशमुख और बोरगांव मंजू निवासी दिवंगत पुरुषोत्तम अग्रवाल ने मंदिर का जिर्णोद्धार किया. मंदिर परिसर में सभामंडप है. मंदिर के लिए किया गया निर्माण कार्य आकर्षित करता है. 

मंदिर परिसर का निसर्गरम्य वातावरण

अश्विन और चैत्र माह में प्रतिवर्ष नवरात्रि के दिनों में इस मंदिर में चंडिका माता के दर्शन करने हेतु हजारों की संख्या में भक्त आते हैं. विविध धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. मंदिर की उत्तर दिशा में 121 सीढ़ियां हैं. मंदिर के प्रवेश द्वार के समीप भैरवजी महाराज कुंड, गौरक्षण संस्था, आसरा माता मंदिर, संकटमोचन हनुमान मंदिर के भी भक्तगण दर्शन करते हैं.

इसी तरह मंदिर परिसर में दो मंजिला भक्त निवास के साथ साथ भोजन सभागृह भी है. मंदिर के नीचेवाले भाग में उत्तर दिशा की ओर बहनेवाली काटेपूर्णा नदी को देख भक्तगण रोमांचित होते हैं. नवरात्रि उत्सव में माता की आराधना की जाती है. 

कोरोना के कारण मंदिर परिसर में भीड़ कम

ग्राम कुरणखेड़ स्थित चंडिका माता मंदिर परिसर में इस वर्ष विशेष भीड़ नहीं है. कोरोना संकट के कारण यह मंदिर मार्च माह से बंद है जिससे भक्तों का आवागमन काफी कम हो गया है. इस बार मेला भी नहीं लगा है. इतिहास में यह प्रथम वर्ष है जो चंडिका माता मंदिर में सरल व सादगी से नवरात्रि उत्सव मनाया जा रहा है. मंदिर परिसर में सरकारी नियमों का पालन किया जा रहा है. 

पुलिस का बंदोबस्त

चंडिका माता मंदिर परिसर में इस वर्ष कोरोना संकट को देखते हुए पुलिस का बंदोबस्त लगाया गया है. कई भक्तगण है जो देवी दर्शन के लिए आते हैं. उन्हें सतर्क रहने के उद्देश्य से यह बंदोबस्त लगाया गया है. मंदिर के व्यवस्थापक भी भक्तों की आस्था को देखते हुए दूर से ही देवी दर्शन करने की सलाह दे रहे हैं.