मेलघाट में माता और शिशुओं के मौत होने की घटना में कमी

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    • स्वास्थ्य विभाग को मिली सफलता
    • सरकारी योजनाओं को 
    • सख्ती से लागू करने का परिणाम 

    अकोला. मेलघाट में माता और शिशुओं की मृत्यु दर में पिछले एक दशक में काफी कमी आई है, यह जानकारी प्रभारी स्वास्थ्य उप संचालक डा.राजकुमार चौहान ने बातचीत के दौरान दी. मेलघाट में कुपोषण से माताओं और बच्चों की मौत राज्य सरकार के लिए चिंता का विषय बन गई है. कई संगठनों ने इस मुद्दे पर राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया है.

    उस पृष्ठभूमि के खिलाफ हाल ही में मातृ और बाल मृत्यु दर के आंकड़े बताते हैं कि स्वास्थ्य विभाग राज्य सरकार द्वारा लागू किए जा रहे कुपोषण के लिए विभिन्न योजनाओं को सख्ती से लागू करने में सक्रिय है. इस संबंध में अमरावती विभाग के स्वास्थ्य विभाग का मुख्यालय रहनेवाले अकोला के स्वास्थ्य उप संचालक कार्यालय ने राज्य सरकार को भेजी गई रिपोर्ट की जांच करने पर पिछले 10 वर्षों की समयावधि में मेलघाट की मातृ और बाल मृत्यु दर में धीरे-धीरे ही क्यों न हो लेकिन इसमें कमी आई है.

    आंकड़ों के अनुसार, 2007-08 में मेलघाट में कुल 6,018 बच्चे पैदा हुए थे. इनमें से 0 से 1 साल के 316 शिशुओं और 1 से 6 साल के 131 शिशुओं की मृत्यु हो गई थी. यानि इस अवधि के दौरान 0 से 6 वर्ष के बीच के कुल 447 शिशुओं की मृत्यु हुई थी, उस समय शिशु मृत्यु दर 53 प्रतिशत थी और शिशु मृत्यु दर 12.42 प्रतिशत थी. इसी अवधि के दौरान, 9 माताओं के गर्भपात के कारण मातृ मृत्यु दर 146 तक पहुंच गई थी. 2008 से 2010 के बीच मेलघाट में शिशु, बाल और मातृ मृत्यु दर सबसे अधिक थी. 2010-11 में पैदा हुए 6,951 शिशुओं में से 509 शिशु थे.

    इस अवधि में 20 मौतों के साथ मातृ मृत्यु दर बढ़कर 281 हो गई थी. इसे गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार ने मेलघाट में समग्र स्थिति पर नाराजगी व्यक्त की और कुपोषण को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न योजनाओं के सख्त कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया. इसका परिणाम संस्थागत प्रसव में क्रमिक वृद्धि और मातृ एवं बाल मृत्यु दर में कमी थी. 2011-12 में पैदा हुए 6,424 शिशुओं में से, कुल 419 शिशुओं और 15 माताओं की मौत हुई थी. यह संख्या 2010-11 की तुलना में कम थी.

    2015-16 में पैदा हुए 6,743 शिशुओं में से 0 से 6 वर्ष की आयु के कुल 283 शिशु कुपोषित थे जबकि मातृ मृत्यु दर 7 थी. जन्मजात मृत्यु की संख्या 2010 में 162 से बढ़कर 2015 में 141 हो गई. 2007 में जन्मजात मृत्यु दर 316 से घटकर 2019-20 में 196 हो गई है, जबकि शिशु मृत्यु दर 131 से घटकर 50 हो गई है. यानि 0 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों की मृत्यु की कुल संख्या 2007 में 447 से घटकर 2019-20 में 246 हो गई है. जन्मजात शिशु मृत्यु दर भी 53 से बढ़कर 30 और मातृ मृत्यु दर 146 से 124 हो गई. ये आंकड़े आदिवासी महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा कड़ाई से लागू की जा रही विभिन्न सरकारी योजनाओं का परिणाम हैं.

    जन जागरूकता पर विशेष जोर -डा.चौहान

    अकोला मंडल के प्रभारी स्वास्थ्य उप संचालक डा.राजकुमार चौहान ने बताया कि मेलघाट के आदिवासियों में अंधविश्वास के कारण आज तक स्वास्थ्य सेवा में बाधा आ रही है. लेकिन स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से सार्वजनिक जागरूकता और सरकारी योजनाओं को सख्ती से लागू करने से संस्थागत मर्यादाओं की संख्या में वृद्धि करके मातृ और बाल मृत्यु दर को कम करने में मदद मिली है. लाकडाउन के कारण शहर के बाहर काम करने वाले आदिवासी मजदूरों में जागरूकता बढ़ाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है.