- अकोला मनपा को मिला दिलासा
अकोला. मनपा द्वारा बढाए गए संपत्ति कर वृद्धि के विरोध में दाखिल की गई जनहित याचिका के खिलाफ मनपा द्वारा दाखिल किए गए प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने नागपुर उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को फिलहाल स्थगित किए जाने से मनपा प्रशासन को दिलासा मिला है. इस बीच यह स्थगिती हटाए जाने तक मनपा द्वारा लागू की गई संपत्तिकर वृद्धि योग्य रहेगी, मनपा के बकाया संपत्ति कर की समस्या भी अब निपटाई जाएगी.
सन 2001 में अकोला मनपा की स्थापना हुई थी. नियमों के अनुसार प्रति 4 वर्ष बाद संपत्तियों का पुर्नमूल्यांकन कर कर वृद्धि करना आवश्यक है लेकिन मनपा प्रशासन ने सन 2017 तक किसी भी तरह की कर वृद्धि नहीं की. सन 2017 में संपत्तिकर में बढोतरी की गई. इसके विरोध में प्रारंभ में विविध पार्टियों ने लोकतंत्रीय रास्ते से आंदोलन किए और कुछ लोग न्यायालय में गए. कॉंग्रेस के पार्षद डा. जीशान हुसेन ने भी उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की.
इस प्रकरण में सुनवाई के बाद नागपुर उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 9 अक्टूबर 2019 को दिए निर्णय में मनपा द्वारा की गई संपत्ति कर वृद्धि रद्द कर नई कर आकारणी करने के आदेश मनपा को दिए. मनपा प्रशासन द्वारा किस आधार पर संपत्तिकर वृद्धि की गई इस संदर्भ में भी पुछताछ की गई. एक वर्ष के भितर नए करमूल्यांकन करने के आदेश उच्च न्यायालय ने दिए. इस निर्णय के खिलाफ मनपा ने रिव्ह्यू याचिका दाखिल की.
फलस्वरूप नागपुर उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने संपत्ति का पुर्नमूल्यांकन न करते हुए संपत्तिकर लगाने की सूचना दी तथा एक वर्ष में अंमल करने के आदेश दिए. इस निर्णय के खिलाफ मनपा ने उच्चतम न्यायालय में शरण ली. फरवरी 2020 में अकोला मनपा ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की उसके बाद कोरोना संकट के कारण सुनवाई नहीं हो सकी और अब सुनवाई हुई.
मनपा द्वारा अपना पक्ष न्यायालय में रखे जाने के बाद उच्चतम न्यायालय की त्रिसदस्यीय खंडपीठ के न्यायमूर्ती ए.एम.खानविलकर, बी.आर. गवई और कृष्णमूरारी की पीठ ने नागपुर खंडपीठ द्वारा दिए गए निर्णय पर स्थगनादेश दिया जिससे मनपा प्रशासन को दिलासा मिला है. मनपा की ओर से एड. अरविंद दातार ने अपना पक्ष रखा तथा दुसरे पक्ष की और से एड. धृव मेहता ने न्यायालयीन कामकाज किया.