water supply
प्रतिकात्मक तस्वीर

Loading

  • समस्या जहां थी वहीं है

अकोला. अभी तक पानी समस्या से मुक्त नहीं हो सके हैं खारे पानी के पट्टेवाले क्षेत्र. यहां तो वैसे ही पीने के पानी की समस्या बनी ही रहती है. गर्मी के मौसम में यह समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है. प्राप्त जानकारी के अनुसार यह खारे पानी के पट्टे वाला क्षेत्र तीन जिलों तक फैला हुआ है. यह क्षेत्र मुख्य रुप से अकोला, अमरावती और बुलढाना जिलों की 16 तहसीलों तक फैला है. अकोला जिले की अकोट, तेल्हारा, मुर्तिजापुर, बालापुर तहसीलों के कई गांव इस खारे पानी के पट्टे वाले क्षेत्र में आते हैं.

अमरावती जिले की अमरावती, भातकुलि, चांदुर बाजार, अंजनगांव सुर्जी, अचलपुर तथा दर्यापुर तहसील के कई गांव इस क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं. इसी तरह बुलढाना जिले की जलगांव जामोद, मलकापुर, नांदुरा, संग्रामपुर तथा शेगांव तहसील के कई गांवों का समावेश इस खारे पानी के पट्टे वाले क्षेत्र के अंतर्गत आता है.

सरकारी सूत्रों के अनुसार खारे पानी के पट्टे वाले क्षेत्र में अकोला, अमरावती तथा बुलढाना जिले के करीब करीब 834 गांवों का समावेश हैं. पूर्णा नदी के गाल की गहरायी 30 मीटर से 425 मीटर तक बतायी जाती है. यह पानी क्षार युक्त होने से पीने के लायक बिलकुल नहीं है. किसानों के लिए सिंचाई के साधन नहीं हैं. किसान पूरी तरह से मानसून की बारिश पर निर्भर हैं. सिंचाई के लिए तथा पीने के पानी के लिए कुएं तथा हैन्ड पम्प भी उपयोगी नहीं हैं.

जमीन मुरुमवाली तथा कड़ी सख्त न होने के कारण कोल्हापुरी बांध, पुल, पाझर तालाब आदि के निर्माण में अन्य क्षेत्रों की तुलना में इस क्षेत्र में खर्च अधिक आता है. यह खर्च शासकीय मापदंड में नहीं बैठता है. जिसके कारण खारे पानी के पट्टे वाले क्षेत्र में निर्माण कार्य तथा विकास कार्य नहीं हो पाते हैं. दि.11 अप्रैल सन 2000 में महाराष्ट्र सरकार ने खारे पानी पट्टा उच्चाधिकार समिति की स्थापना की थी. इस समिति ने खारे पानी के पट्टे की समस्याओं को हल करने की दृष्टि से तथा इस क्षेत्र का विकास करने की दृष्टि से एक अहवाल तैयार कर के 11 दिसंबर 2001 को राज्य सरकार को सौंपा था.

इस अहवाल को सरकार ने सन 2003 में तत्वत: मान्यता भी प्रदान की थी. इस उच्चाधिकार समिति द्वारा जो सिफारिश की गयी थी, उसमें मुख्य रुप से पीने के पानी की पूर्ति हेतु विशेष रुप से इस क्षेत्र को 10 प्रतिशत लोक वर्गणी से अलग रखा जाए, यह कहा गया था. इसी तरह पीने के पानी की योजना पूर्ण होने पर उसे आत्मनिर्भर होने पर दुरुस्ती तथा देखभाल का खर्च सरकार की ओर से मिलना चाहिए. इसी तरह विविध योजनाओं के लिए इस क्षेत्र के किसानों को सरकार की ओर से सबसीडी मिलनी चाहिए.

इसी तरह खारे पानी के पट्टे वाले क्षेत्र को लोड़शेडिंग से पूरी तरह से मुक्त रखा जाना चाहिए. क्यों कि लोड़शेडिंग के कारण जलापूर्ति योजनाएं हमेशा प्रभावित होती रहती हैं. इसी तरह खारे पानी के पट्टे वाले क्षेत्र में विकास योजनाओं के सरकारी मापदंड, सरकारी नियम भी शिथिल किए जाने चाहिए, जिससे खारे पानी के पट्टे वाले क्षेत्र का समुचित विकास हो सके. इसी तरह इस क्षेत्र के किसानों तथा खेतिहर मजदूरों को पूरक धंधे शुरु करने के लिए अनुदान दिया जाना चाहिए.

उस समय उच्चाधिकार समिति द्वारा की गयी सिफारिश के अनुसार 1936 करोड़ की विकास निधि इस क्षेत्र के लिए उपलब्ध करवाने के लिए कहा गया था. जो निधि आज के समय में तो दोगुनी से भी अधिक बढ़ गयी होगी. लेकिन सरकार अभी भी सरकार का ध्यान इस ओर नहीं है. पिछले करीब पांच दशकों से अधिक समय से लोग खारे पानी के पट्टे वाले क्षेत्र की समस्याओं को हल करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हो सका है.