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Published: Jul 03, 2020 12:01 PM IST

पारेख भुगतान रोककर्ज भुगतान पर रोक मामले में उच्चतम न्यायालय का रिजर्व बैंक से सवाल करना ‘दुर्भाग्यपूर्ण' :पारेख

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

नयी दिल्ली. वास ऋण कंपनी एचडीएफसी लि. के चेयरमैन दीपक पारेख ने उच्चतम न्यायालय द्वारा ऋण की किस्तों के भुगतान पर रोक के मामले में रिजर्व बैंक से सवाल पूछने को ‘वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया है। चर्चित बैंकर पारेख ने सवाल किया कि केंद्रीय बैंक को वित्तीय क्षेत्र के मूल सिद्धान्तों पर न्यायालय को क्यों जवाब देना चाहिए। एचडीएफसी के शेयरधारकों को लिखे वार्षिक पत्र में पारेख ने रीयल एस्टेट क्षेत्र के कर्ज को एकबारगी पुनर्गठित करने का भी सुझाव दिया है। इसके अलावा उन्होंने बाह्य वाणिज्यिक कर्ज नियमों को उदार करने और आवास ऋण की पूरी प्रक्रिया को ऑनलाइन क्रियान्वित करने की अनुमति देने का भी सुझाव दिया है। पारेख ने कहा कि देश की शीर्ष अदालत द्वारा किस्त के भुगतान पर रोक मामले में रिजर्व बैंक द्वारा सवाल पूछना दुर्भाग्यपूर्ण है।

‘‘कैसे एक केंद्रीय बैंक वित्तीय क्षेत्र के मूल सिद्धान्तों को लेकर न्यायालय को जवाब दे सकता है। ” बैंकिंग क्षेत्र के दिग्गज ने कहा कि कर्ज पर ब्याज का भुगतान अनुबंध की प्रतिबद्धता के तहत आता है। जब किसी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ है, तो इस मौके पर सभी प्रयास कानूनी अड़चनों में उलझने के बजाय आर्थिक सुधार पर केंद्रित होने चाहिए। उन्होंने कहा कि इन मुद्दों को सुगमता से सुलझाया जाना चाहिए। ‘मुझे पूरी उम्मीद है कि संबंधित अधिकारी शेयरधारकों के हितों के संरक्षण के लिए इनका समाधान ढूंढ पाएंगे।” उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने कहा था कि किस्त के भुगतान पर रोक की अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज लेने का कोई आधार नहीं है। कोरोना वायरस महामारी की वजह से केंद्रीय बैंक ने कर्ज लेने वाले लोगों को किस्त के भुगतान में छूट दी है।

रिजर्व बैंक ने 27 मार्च को इस बारे में सर्कुलर जारी किया था। इसके बाद 17 अप्रैल और 23 मई को रिजर्व बैंक ने इसमें संशोधन करते हुए सभी तरह के मियादी ऋण की किस्त के भुगतान पर रोक की अवधि तीन महीने के लिए और बढ़ाकर एक जून से 31 अगस्त तक कर दी थी। इसमें कृषि, खुदरा और फसल ऋण शामिल है। पत्र में पारेख ने इस संकट के दौर में रिजर्व बैंक द्वारा वित्तीय स्थिरता कायम रखने के लिए किए गए प्रयासों की भी सराहना की। उन्होंने कहा कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ जबकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मांग और आपूर्ति एक साथ समाप्त हो गई हो। इस महामारी से स्वास्थ्य प्रणाली तथा सामाजिक सुरक्षा की कमजोरियां भी सामने आई हैं।