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Published: Jan 15, 2021 02:28 PM IST

चिंतायार्न की भारी तेजी से वीवर्स चिंतित

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

मुंबई. घरेलू और निर्यात मांग के चलते कॉटन यार्न (Cotton Yarn) के साथ सिंथेटिक यार्न (Synthetic Yarn) में भी जोरदार तेजी आ रही है। सिंथेटिक यार्न में तेजी का सबसे बड़ा कारण रॉ मैटेरियल पॉलिएस्टर पीओवाई (Polyester POY) का महंगा होना है।

पीओवाई में तेजी की वजह क्रुड ऑयल (Crude Oil) का महंगा होना है। पिछले पांच महिनों में जहां पीओवाई 50% महंगा हो चुका है, वहीं इससे बने सिंथेटिक और पॉलिएस्टर यार्न के दाम 40 से 75% तक बढ़ गए हैं। यार्न महंगा होने से पॉलिएस्टर ग्रे फैब्रिक्स (Fabrics) की कीमतें भी 25 से 30% बढ़ी हैं। हालांकि ग्रे फैब्रिक्स के दाम इस अनुपात में नहीं बढ़े हैं। ऐसे में ग्रे फैब्रिक्स निर्माता वीवर (Weavers) चिंति‍त भी हैं। उन्हें ऊंचे स्तरों पर कीमतें टिक पाना मुश्किल लग रहा है।

5 ‍वर्षों की सबसे बड़ी तेजी

कपड़ा व्यापारियों का कहना है कि इतनी बड़ी तेजी पिछले 5 वर्षों में पहली बार आई है। अनलॉक के बाद जैसे ही देश भर में बाजार खुले और ठप पड़ा कारोबार पटरी पर आना शुरू हुआ तो पीओवाई और सिंथेटिक यार्न कीमतों में तेजी शुरू हो गई। जुलाई में रिलांयस का पॉलिएस्टर पीओवाई (पार्शली ओरिएंटेड यार्न) 60 रुपए था, जो अब 90 रुपए किलो हो गया है। इसमें 50% की भारी तेजी आ चुकी है। पीओवाई के महंगा होने से सिंथेटिक यार्न के दाम भी बढ़ गए हैं। सबसे अधिक प्रचलित 80 डेनियर रोटो यार्न (Roto Yarn) के दाम जून में 80 रुपए थे, जो अब 50% तेजी के साथ 115-120 रुपए प्रति किलो बिक रहा है। इसी तरह 40 पॉलि यार्न (Poly Yarn) 130 रुपए से बढ़कर 180 रुपए हो गया है। 30 पॉलि यार्न 110 से बढ़कर 150 रुपए बिक रहा है। जबकि 40 पॉलि विस्कोस यार्न (40PV Yarn)150 से बढ़कर 220 रुपए हो गया है। मैजिक यार्न तो 75% बढ़कर 210 रुपए हो गया है, जो लॉकडाउन के बाद नीचे में 120 रुपए तक गिरा था।

कॉटन और कॉटन यार्न भी महंगा

ग्लोबल मार्केट में कॉटन के दाम 80 डॉलर प्रति पाउंड पर पहुंच गए हैं, जो जून 2018 के बाद अब तक का सर्वोच्च स्तर है। इससे पहले जून 2018 में न्यूयार्क कॉटन एक्सचेंज में दाम 92 डॉलर तक पहुंचे थे। जबकि कोरोना महामारी का संकट पैदा होने पर मार्च 2020 में दाम 50 डॉलर के नीचे चले गए थे। तब से अब तक 9 महीनों में कॉटन में करीब 60% की भारी तेजी आ चुकी है। चीन, बंग्लादेश, पाकिस्तान और अन्य एशियाई देशों की भारी मांग के चलते वैश्विक बाजार में दाम बढ़ रहे हैं, लेकिन भारतीय बाजार में तेजी कम आई है। भारतीय बाजार में कपास (शंकर वैरायटी) के दाम मई 2020 में 32,000 रुपए प्रति कैंडी (356 किलो) तक गिर गए थे, जो अब 43,000 से 44000 रुपए प्रति कैंडी हो गए हैं। कपास (Cotton) के दाम बढ़ने से सूती धागों के दाम भी बढ़ रहे हैं। 30एस कोम्बेड कॉटन यार्न (30s Combed cotton Yarn) के दाम अब 260 रुपए किलो हो गए हैं, जो सितंबर में 190 रुपए और नवंबर में 225 रुपए प्रति किलो पर थे। इस तरह विगत पांच महिनों में ही 37% की तेजी आ चुकी है।

ऊंची कीमतों पर घटती मांग

हिंदुस्तान चेम्बर ऑफ कॉमर्स (Hindustan Chamber of Commerce) के अध्यक्ष हरीराम अग्रवाल ने कहा कि पीओवाई और यार्न कीमतों में कई वर्षों बाद बड़ी तेजी आई है। कोरोना संकट का असर कम होने के बाद यार्न और कपड़ों की मांग बढ़ी है, लेकिन जितनी तेजी आई है, उतनी ज्यादा मांग नहीं है। जितने पीओवाई और यार्न के दाम बढ़े हैं, उस अनुपात में कपड़ों के दाम नहीं बढ़े हैं। और अब कीमतें घटने का डर लग रहा है। क्योंकि इतने ऊंचे भावों पर मांग ज्यादा नहीं रहेगी तो फिर बाजार का टिके रहना कठिन लग रहा है।

वीवर्स को कीमतें गिरने का भय

भारत मर्चेंटस चैम्बर (Bharat Merchants Chamber) के ट्रस्टी श्रीप्रकाश केडिया ने कहा कि इतनी ज्यादा तेजी विगत 5 वर्षों में पहली बार आई है। पी‍ओवाई निर्माता और स्पिनिंग मिलें (Spinning Mills) सप्लाई शॉर्ट कर तेजी को हवा दे रहे हैं। पहले जब पीवोआई में तेजी आती थी तो चीन (China) और दूसरे देशों से आयात बढ़ जाता था। जिससे तेजी को ब्रेक लग जाया करता था, लेकिन इस बार कोविड महामारी के कारण आयात लगभग बंद है। चीन से आयात बंद होने से भी तेजी को सपोर्ट मिल रहा है, लेकिन अब ज्यादा तेजी की संभावना नहीं है। ऊंची कीमतों पर मांग कम होने से वीवर्स को कीमतें गिरने का भय सताने लगा है। क्योंकि कीमतें गिरती है तो सबसे ज्यादा नुकसान वीवर्स को ही होगा। उनके पास ऊंची लागत का फैब्रिक्स रह जाएगा।    

सरकार ने दी कपड़ा उद्योग को ‘संजीवनी’

चिरंजीलाल यार्न्स प्रा. लिमिटेड (Chiranjilal Yarns P.Ltd.) के निदेशक विकास परसरामपुरिया ने कहा कि इस बड़ी तेजी के तीन मुख्य कारण हैं। पहला, केंद्र और राज्य सरकार ने जुलाई-अगस्त में करोड़ों मीटर कपड़े के टेंडर निकाले, लेकिन कोरोना संकट में उत्पादन ठप हो गया था। श्रमिकों की कमी के कारण उत्पादन देरी से शुरू हुआ। अक्टूबर-नवंबर से उत्पादन सामान्य होने लगा। लिहाजा स्टॉक खत्म हो चला। तीसरे, सरकार की सख्ती और चीन विरोधी भावना पैदा होने से आयात नहीं हुआ। ऐसे में चौतरफा मांग रही। एक तरह से देखा जाए तो सरकार ने ही भारी खरीद कर कपड़ा उद्योग (Indian Textile Industry) को ‘संजीवनी’ दी है और कोरोना संकट से उबारा है।