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Published: Aug 11, 2021 07:19 PM IST

Exclusiveपायरेसी से सिनेमा को बड़ा नुकसान, ऐसे लीक होती हैं फिल्में और ये हैं रोकथाम के उपाय

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
(Photo Credits: Instagram)

मुंबई: हिंदी सिनेमा जगत की पायरेसी के साथ लंबी लड़ाई खत्म होने का नाम नहीं ले रही. सलमान खान की फिल्म ‘राधे: योर मोस्ट वॉन्टेड भाई’ के बाद हाल ही में रिलीज हुई कृति सैनन की फिल्म ‘मिमी’ इसका शिकार बनी. 30 जुलाई को रिलीज से ठीक 4 दिन पहले इसे ऑनलाइन लीक कर दिया गया जिसके बाद नुकसान से बचने जियो स्टूडियोज ने इसे तत्काल रिलीज किया. सलमान और कृति ही नहीं मालकी रजनीकांत अक्षय कुमार समेत कई बड़े अभिनेताओं की फिल्में पायरेसी की भेंट चढ़ चुकी हैं.

ऐसे लीक होती हैं फिल्में!

आईटी और हैकिंग एक्सपर्ट गौतम कुमावत ने बताया कि फिल्म की पोस्ट प्रोडक्शन पर काम कर रहे कर्मचारियों के फिल्म आसानी से लीक हो सकती है क्योंकि सारा कंटेंट उनके हाथ में होता है. इसके अलावा अगर एक हैक हुए कंप्यूटर पर फिल्म का काम (एडिटिंग, डबिंग और अन्य चीजें) किया जा रहा है तो लीक होने के आसार ज्यादा होते हैं.

रिलायंस एंटरटेनमेंट के सीईओ शिबाशीष सरकार ने बताया कि पहले सिनेमाघर में जाकर कैमरे से फिल्मों को रिकॉर्ड कर उसकी फिजिकल कॉपी की प्रिंट मार्केट में अवैध तरीके से बेची जाती थी. लेकिन अब पायरेसी मुख्यतौर पर ऑनलाइन की जा रही है.

पायरेसी से होता घाटा

शिबाशीष ने कहा, “मान लीजिये किसी फिल्म की रिपोर्ट उतनी बढ़िया नहीं है और वो रिलीज से एक दो दिन पहले लीक हो जाए तो वो पूरी तरह से बर्बाद हो सकती है. पायरेसी के चलते औसतन 20 से 50 प्रतिशत के बीच का नुकसान मेकर्स को होता है. मिमी के अलावा ‘ग्रेट ग्रैंड मस्ती’ इसका एक उदाहरण है जो रिलीज से तीन हफ्ते पहले लीक हो गई थी.”

कठिन है लड़ाई

वेटेरन फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक श्याम बेनेगल ने बताया कि पायरेसी से निपट पाना बेहद मुश्किल है. इस बाबत उन्होंने कहा, “पायरेसी के खिलाफ अगर फिल्म निर्माता और निर्देशक कानूनी रास्ता अपनाते भी हैं तो इसमें पैसे और समय दोनों खर्च होते हैं. इसलिए लीक होने से पहले ही सावधान रहने की जरूरत है.

कानूनी मजबूती की जरूरत

बेनेगल ने कहा, “फिल्म के पूरे कामकाज के दौरान मेकर्स को बेहद सतर्क रहना चाहिए. जिस तरह नोटों को छापने से लेकर उसके अन्य कामों में कामों में सुरक्षा का ख्याल रखा जाता है, उसी तरह की सावधानी फिल्मों के साथ भी बरतनी चाहिए. बदलती टेक्नोलॉजी के साथ कानून को भी समय-समय पर अपडेट करने की जरूरत है.” जब तक सरकार सख्त नियम बनाकर उसे लागू ने करे तब तक ये परेशानी खत्म नहीं होगी.”

रोकथाम के उपाय

शिबाशीष ने जानकारी दी कि एक निर्माता होने के नाते वें ध्यान देते हैं कि थिएटर में रिलीज होने तक फिल्म सुरक्षित रहे, इसके बाद अगर फिल्म की कॉपी ऑनलाइन आती है तो वें इसके लिए स्पेशल एजेंसियों को काम पर लगाते हैं जो इसे इंटरनेट से डिलीट कराते हैं. गौतम ने कहा कि समस्या ये है पायरेसी करने वाली साइट को ब्लॉक करके हम समझते हैं कि हमारा काम हो गया. लेकिन असल में फिल्मों को सर्वर पर सुरक्षित रखा जाता है जहां से नई यूआरएल (लिंक) के साथ उसे दोबारा ऑनलाइन उपलब्ध करा दिया जाता है. इन्हें रोकने के लिए हमें उनके सर्वर पर टारगेट करने की जरूरत है.