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Published: Jan 17, 2024 06:22 PM ISTAyodhya Ram Mandirवो चेहरे जिनके नाम की चर्चा किए बिना राम मंदिर आंदोलन अधूरा
नवभारत डिजिटल डेस्क: 22 तारीख को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम (lord Ram) का उनके नव निर्मित घर यानी मंदिर (Ram Mandir) में प्राण प्रतिष्ठा (Lord Ram Pran Pratishtha) की जाएगी। इसको लेकर देशभर में बेहद उत्साह है। राम मंदिर के लिए दशकों तक की लड़ाई की गई। जिसमें हजारों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी। वहीं लाखों ने अपना जीवन खपा दिया। आज की स्टोरी में राम मंदिर आंदोलन के उन नामों पर बात करेंगे, जिसके कारण राम मंदिर आंदोलन (Ram Mandir movement) सफल हो पाया।
श्रीश चंद्र दीक्षित (Shrish Chandra Dikshit)
यूपी के रिटायर्ड डीजीपी श्रीश चंद्र दीक्षित ने राम मंदिर आंदोलन में कारसेवकों के लिए नायक की भूमिका अदा की थी। रायबरेली के सोतवा खेड़ा गांव में 3 जनवरी 1926 को जन्मे श्रीश चंद्र दीक्षित 1982 से लेकर 1984 तक वे उत्तर प्रदेश के डीजीपी रहे। रिटायर होने के बाद विश्व हिंदू परिषद से जुड़ गए और केंद्रीय उपाध्यक्ष बन गए। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा ने अपनी किताब में लिखा है कि पुलिस प्रशासन से नजरें बचाकर कारसेवकों को अयोध्या पहुंचाना हो या फिर कानून को धता बताकर कारसेवा करवाना। इन कामों में श्रीश चंद्र दीक्षित का ही तेज दिमाग चलता था।
1990 में कारसेवा के लिए साधु-संत अयोध्या कूच कर रहे थे। प्रशासन ने अयोध्या में कर्फ्यू लगा रखा था। पुलिस ने विवादित स्थल के 1।5 किलोमीटर के दायरे में बैरिकेडिंग कर रखी थी। 30 अक्टबूर, 1990 को कारसेवकों की भीड़ बेकाबू हो गई। इसके बाद पुलिस ने कारसेवकों पर गोली चला दी तो कारसेवकों के ढाल बनकर श्रीश चंद्र दीक्षित सामने आए थे। पूर्व डीजीपी को सामने देख पुलिस वालों ने गोली चलाना बंद कर दिया। इस तरह से उन्होंने कारसेवकों की जान बचाने में अहम भूमिका अदा की थी। इसी के एक साल बाद 1991 के लोकसभा चुनाव में श्रीश चंद्र दीक्षित काशी से सांसद बने थे।
केके नायर (KK Nair)
केरल के अलप्पी के रहने वाले केके नायर की भी राम मंदिर मामले में अहम भूमिका रही है। नायर 1 जून 1949 को फैजाबाद के कलेक्टर बने। 23 दिसंबर 1949 को विवादित स्थल पर राम की मूर्ति रखी गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और सूबे के सीएम रहे गोविंद बल्लभ पंत के कई बार कहने के बावजूद केके नायर ने मूर्ति को हटवाने के आदेश को नहीं माना। माना जाता है कि नायर का उस समय अयोध्या में मूर्ति रखने वालों को गुप्त समर्थन प्राप्त था। हिंदू समुदाय के तेवर को देखते हुए कांग्रेस सरकार पीछे हट गई थी।
डीएम नायर ने 1952 में नौकरी से सेवानिवृत्ति लेकर जनसंघ से जुड़ गए थे। नायर यूपी के अवध इलाके में हिंदुत्व के इतने बड़े प्रतीक बन गए थे और उत्तर प्रदेश की बहराइच सीट से जनसंघ के टिकट पर लोकसभा पहुंचे। केके नायर की पत्नी शकुंतला नायर भी कैसरगंज से तीन बार जनसंघ के टिकट पर संसद बनने में कामयाब रही हैं। केके नायर ने अयोध्या आंदोलन को जबरदस्त धार दी थी।
महंत रघुबर दास (Mahant Raghubar Das)
अंग्रेजों के दौर में अयोध्या में पहली बार 1853 में निर्मोही आखड़े ने दावा किया कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई गई। विवाद हुआ तो प्रशासन ने विवादित स्थल पर मुस्लिमों को अंदर इबादत और हिंदुओं को बाहर पूजा की अनुमति दे दी, लेकिन मामला शांत नहीं हुआ। 1885 में महंत रघुबर दास ने मामले को लेकर फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद के पास राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की। इस याचिका में महंत रघुबर दास ने राम चबूतरे को जन्मस्थान बताया था और इस राम चबूतरे पर एक मंडप बनाने की मांग की। इस दावे में ये बात नहीं थी कि जहां मस्जिद है, वहां पहले कोई मंदिर थी। ये अयोध्या विवाद से जुड़ा हुआ पहला केस था। हालांकि, जज हरिकिशन ने महंत रघुबर दास की अर्जी को खारिज कर दिया था।
अर्जी खारिज होने के एक साल बाद महंत रघुबर दास ने फिर अदालत का दरवाजा खटखटाया। वो 17 मार्च, 1886 को जिला जज फैजाबाद कर्नल एफईए कैमियर की कोर्ट में पहुंचे। जस्टिस कैमियर ने अपने फैसले में ये मान लिया कि मस्जिद हिंदुओं की जगह पर बनी है, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। इतने साल पुरानी गलती को अब सुधारना मुमकिन नहीं है, इसीलिए यथास्थिति बनाए रखें। और इस तरह से अयोध्या विवाद का पहला मुकदमा यथास्थित बनाए रखने के आदेश के साथ खारिज हो गया था।
सुरेश बघेल (Suresh Baghel)
30 साल पहले 1990 में राम मंदिर आंदोलन में शामिल होकर बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को गिराने की पहली और मजबूत कोशिश करने वाले वृंदावन के हिंदूवादी नेता सुरेश बघेल का नाम शायद ही आज किसी को याद है। उन्होंने मंदिर के लिए कोर्ट-कचहरी, गिरफ्तारियां, जेल, धमकियां, मुफलिसी और परिवार से दूरी सबकुछ झेला है। इस वक्त वो एक निजी कंपनी में 6000 रुपये प्रतिमाह पर काम करके गुजर-बसर कर रहे हैं। उन्होंने मंदिर आंदोलन में अपने योगदान को कभी सियासी तौर पर नहीं भुनाया। न ही किसी पार्टी के सामने हाथ फैलाया।
लाल कृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani)
राम मंदिर आंदोलन में लाल कृष्ण आडवाणी का योगदान किसी से भुलाया नहीं जा सकता है। आडवाणी ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने राम मंदिर का आंदोलन को देशव्यापी बनाया था। मंदिर निर्माण को लेकर भाजपा द्वारा आयोजित रथ यात्रा का नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी ने किया था, और इसमें संघ परिवार के हजारों स्वयंसेवक शामिल थे। सैकड़ों गांवों और शहरों से होकर गुजरी यात्रा 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ में शुरू हुई। इसने प्रतिदिन लगभग 300 किलोमीटर की यात्रा की, और आडवाणी अक्सर एक ही दिन में छह जनसभाओं को संबोधित करते थे। इस यात्रा ने हिंदुओं में धार्मिक और उग्रवादी दोनों भावनाओं को उभारा, और यह भारत के सबसे बड़े जन आंदोलनों में से एक बन गया।
कोठारी ब्रदर्स (Kothari Brothers)
कोठारी बंधू वो दो युवा जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन को अपने खून से सींचा। कोलकाता निवासी दो सगे भाई राम कोठारी (22) व शरद कोठारी (20) ने बढ़ृ-चढ़कर आंदोलन में हिस्सा लिया था। दोनों भाइयों ने विवादित मस्जिद पर सबसे पहले झंडा फहराया था। हालांकि, बाद में तत्कालीन मुलायम सिंह की सरकार ने जब गोली मारने का आदेश दिया तो दोनों भाई आंदोलन में शहीद हो गए।
महंत अवैद्यनाथ (Mahant Avaidyanath)
राम मंदिर आंदोलन में गोरक्षपीठ का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है। महंत दिग्विजयनाथ हो या महंत अवैद्यनाथ दोनों महान्तो ने राम लाल के लिए अपना पूरा जीवन खपा दिया। महंत अवैद्यनाथ ने राम मंदिर आंदोलन के लिए विश्वव्यापी संगठन खड़ा कर दिया था। उन्होंने देशभर के तमाम धर्माचार्यों को एक मंच पर लाने का काम किया। यही नहीं उन्होंने सात अक्टूबर 1984 को अवैद्यनाथ के नेतृत्व में अयोध्या से लखनऊ के लिए धर्मयात्रा निकाली गई। महल पार्क में हुए सम्मेलन में लगभग 10 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था।
साध्वी ऋतंभरा (Sadhvi Ritambhara)
साध्वी ऋतंभरा राम मंदिर आंदोलन का वह नाम है जिसने अपने भाषणों से आंदोलन को ऐसी धार की छोटा से लेका बड़ा था मंदिर के लिए सडको पर निकल पड़ा। साध्वी ऋतंभरा ने अपने भाषणों से आंदोलन में लाखो की संख्या में जोड़ा। जो भी उन्हें सुनता केवल सुनते रह जाता। रामकाज में जुटी साध्वी ऋतंभरा ने राम मंदिर आंदोलन के दौरान यातनाएं भी सहनी पड़ी।
अशोक सिंघल (Ashok Singhal)
मंदिर निर्माण आंदोलन की शुरुआत करने वाले और इसके लिए जरूरी जनसमर्थन जुटाने में सबसे बड़ा योगदान अशोक सिंघल का माना जाता है। उन्हें राम मंदिर आंदोलन का चीफ आर्किटेक्ट भी कहा जाता रहा। अशोक सिंघल विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष रहते सालों तक मंदिर आंदोलन को लेकर काम किया और हिन्दू समाज को एक किया।
गोपाल सिंह विशारद (Gopal Singh Visharad)
आजादी के बाद राम मंदिर के लिए पहला मुकदमा (नियमित वाद क्रमांक 2/1950) एक दर्शनार्थी भक्त गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 ई। को सिविल जज, फैजाबाद की अदालत में दायर किया था। वे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन जिला गोंडा के रहने वाले और हिंदू महासभा के जिला अध्यक्ष थे। गोपाल सिंह विशारद 14 जनवरी, 1950 को जब भगवान के दर्शन करने श्रीराम जन्मभूमि जा रहे थे, तब पुलिस ने उनको रोका। पुलिस अन्य दर्शनार्थियों को भी रोक रही थी।
सिंह विशारद ने जिला अदालत में जहूर अहमद और अन्य मुसलमानों के खिलाफ मुकदमा दायर कर कहा कि जन्मभूमि पर स्थापित श्री भगवान राम और अन्य मूर्तियों को हटाया न जाए और उन्हें दर्शन और पूजा के लिए जाने से रोका न जाए। साथ ही भगवान राम के दर्शन के लिए प्रवेशद्वार व अन्य आने-जाने के मार्ग बंद न करें और पूजा-दर्शन में किसी प्रकार की विघ्न-बाधा न डालें। इसके कुछ दिनों बाद दिगंबर अखाड़ा के महंत रामचंद्र परमहंस ने भी विशारद जैसा एक और सिविल केस दायर कर दिया। कानून अदालत में ले जाने में विशारद की अहम भूमिका रही है।