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Published: Dec 09, 2021 03:51 PM IST

Birth Anniversary जन्मदिन विशेष : जानें भारत के पहले गवर्नर और गांधीजी के समधि बनने वाले राजाजी की कहानी

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

नयी दिल्ली. आज देश के सबसे अग्रणी पंक्ति के स्वतंत्रता संग्राम के नेता और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के करीबी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (C. Rajagopalachari) का जन्मदिन है। वे 10 दिसंबर 1972 को तमिलनाडु के कृष्णागिरी जिले में पैदा हुए थे। साथ ही वे आजाद भारत के पहले भारतीय गर्वनर जनरल थे। इतना ही नहीं देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उन्हें भारत का पहला राष्ट्रपति बनाना चाहते थे लेकिन खैर ऐसा हो नहीं सका।  

बता दें कि उन्हें आधुनिक भारतीय इतिहास का चाणक्य भी कहा जाता है।  एक जमाने में तो वे बहुत बड़े वकील थे।  वहीं उन्हें राजनीति में लाने का श्रेय महात्मा गांधी को जाता है।  हालाँकि वो खुद गांधीजी के रिश्तेदार कैसे बने, इसका भी बड़ा दिलचस्प किस्सा है।  ने

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (Chakravarti Rajagopalachari) को यूँ तो आमतौर पर राजाजी के नाम से ज्यादा जाना जाता है।  लेकिन इसके साथ ही वे वकील, लेखक, राजनीतिज्ञ और दार्शनिक थे। उनके पिता तमिलनाडु के सेलम के न्यायालय में न्यायधीश रह चूके थे।  राजाजी बचपन से ही पढ़ने में जीनियस थे।  वे हमेशा ही प्रथम श्रेणी पास होते थे। हालाँकि राजाजी के राजनीति में आने की वजह गांधी ही बने।  गांधी के असहयोग आंदोलन का उन पर इतना व्यापक असर हुआ कि उन्होंने अपनी जमी-जमाई वकालत छोड़ दी और खुद खादी पहनने लगे। 

कहते हैं राजाजी की वकालत की स्थिति इतनी बुलंद थी कि वो सेलम में कार खरीदने वाले पहले वकील भी बन गए थे।  लेकिन फिर उनका मन बदला क्योंकि गांधी के छुआछूत आंदोलन और हिंदू-मुस्लिम एकता के कार्यक्रमों ने उन्हें सबसे ज़्यादा प्रभावित किया।  साल 1937 में हुए चुनावों के बाद राजाजी मद्रास के प्रधानमंत्री (तब मुख्यमंत्री के समकक्ष पद माना गया था ) बने।  1939 में जब वायसराय ने एकतरफ़ा निर्णय लेकर भारत को द्वितीय विश्वयुद्ध में धकेल दिया तो उन्होंने इसके विरोध स्वरूप अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। 

थे गांधीजी के मित्र और करीबी सलाहकार

राजाजी, गांधीजी के बहुत करीब थे।  अक्सर जब भी उन्हें जब गंभीर मामलों पर कोई सलाह लेनी होती थी तो वे अक्सर राजाजी को ही याद आते थे।  दोनों की अंतरंगता इतनी बढ़ी कि राजाजी ने बाद में अपनी बेटी को गांधीजी के आश्रम में रहने के लिए भेजा।  राजाजी की बेटी लक्ष्मी जब वर्धा के आश्रम में रह रही थीं तभी उनके और गांधीजी के छोटे बेटे देवदास के बीच प्रेम हो गया था। 

आखिर बन गए आपस में समधि

तब देवदास तब 28 साल के थे और लक्ष्मी सिर्फ 15 की।  तब ना तो स्वयं गांधीजी इस शादी के पक्ष में थे और ना ही राजाजी।  शायद अलग अलग जातियों का होने के कारण दोनों उस समय इसके लिए तैयार नहीं थे।  उन्होंने देवदास के साथ एक बहुत कठिन शर्त रखी कि वो 05 साल तक लक्ष्मी से वे बिल्कुलअलग रहें।  अगर तब भी दोनों का एक दूसरे के प्रति प्यार कायम रहेगा तो उनकी शादी कर दी जाएगी।  ऐसा ही हुआ।  फिर दोनों की शादी हो गई।  इस तरह राजाजी और गांधीजी आपस में समधि भी बन गए। 

विभाजन को लेकर किया था आगाह 

जी हाँ आपने ठीक पढ़ा, राजाजी ही वो पहले शख्स थे, जिन्होंने 1942 में इलाहाबाद कांग्रेस अधिवेशन में देश के विभाजन पर अपनी सहमति जता दी थी।  हालांकि उस समय उनका इस पर प्रचंड विरोध हुआ लेकिन उन्होंने तो जैसे इसकी कोई परवाह नहीं की।  हालांकि 1947 में वही हुआ, जो वो पांच साल पहले ही वे कह चुके थे।  ये तमाम वो वजहें थीं कि कांग्रेस के नेता उनकी दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता का लोहा भी मानते थे। 

भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद साल 1954 में राजा जी को ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया।  वह विद्वान् और अद्भुत लेखन प्रतिभा के भी पुरजोर धनी थे।  साथ ही वे तमिल और अंग्रेज़ी के बहुत अच्छे लेखक थे।  ‘गीता’ और ‘उपनिषदों’ पर उनकी टीकाएं आज भी प्रसिद्ध हैं।  28 दिसम्बर, 1972 को चेन्नई में उनका दुखद निधन हो गया।