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Published: Jun 03, 2023 06:02 PM IST

Sedition Lawराजद्रोह कानून संबंधी विधि आयोग की सिफारिशों पर चिदंबरम, शशि थरूर ने खड़े किए सवाल

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

नई दिल्ली: कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पी चिदंबरम और शशि थरूर ने विधि आयोग द्वारा राजद्रोह के अपराध संबंधी दंडात्मक प्रावधान का समर्थन किए जाने पर शनिवार को सवाल खड़े किए। चिदंबरम ने कहा कि यह देखकर दुख होता है कि कुछ न्यायाधीश और पूर्व न्यायाधीश वास्तविक दुनिया से कितने कटे हुए हैं। उन्होंने यह दावा भी किया कि यह कानून शासकों को इसके दुरुपयोग का निमंत्रण देता है।   

थरूर ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन होना चाहिए और केंद्र एवं राज्य सरकारों को राजद्रोह से संबंधित कोई मामला दर्ज नहीं करना चाहिए।  पूर्व गृहमंत्री चिदंबरम ने ट्वीट किया, “भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की वैधानिकता की जांच-परख करने वाले विधि आयोग के सुझाव कुछ इस तरह हैं कि किसी चिकित्सक द्वारा सुझाया गया उपचार बीमारी से भी ज्यादा खतरनाक हो।”   

उन्होंने कहा, “जब राजद्रोह के कानून को निरस्त करने की मांग हो रही है, ऐसे समय विधि आयोग ने सिफारिश की है कि सजा को 3 साल से बढ़ाकर 7 साल किया जाए।”  चिदंबरम ने दावा किया, ” इस तरह का खतरनाक कानून शासकों को इस बात का निमंत्रण है कि वे इसका दुरूपयोग करें। यह बात कई बार साबित हो चुकी है।” 

उन्होंने यह भी कहा, “यह देखकर दुख होता है कि कुछ न्यायाधीश और पूर्व न्यायाधीश इस तरह से वास्तविक दुनिया से कटे हुए हैं।”    थरूर ने ट्वीट किया, ” यह (विधि आयोग की सिफारिश) बहुत हैरान करने वाला है और इसका विरोध होना चाहिए। इस कानून का पहले ही बहुत और बार-बार दुरुपयोग हो चुका है। मैं 2014 में इसको लेकर गैर सरकारी विधेयक लाया था और कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये घोषणा पत्र में भी वादा किया था कि राजद्रोह कानून में संशोधन किया जाएगा।”   

उन्होंने कहा कि 2022 में उच्चतम न्यायालय ने जो आदेश दिया था, उसका पालन होना चाहिये और केंद्र एवं राज्य सरकारों को इस कानून के तहत कोई मामला दर्ज नहीं करना चाहिए।  उल्लेखनीय है कि विधि आयोग ने राजद्रोह के अपराध संबंधी दंडात्मक प्रावधान का समर्थन करते हुए कहा है कि इसे पूरी तरह से निरस्त करने से देश की सुरक्षा और अखंडता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के चलते भारतीय दंड संहिता की राजद्रोह संबंधी धारा 124ए फिलहाल स्थगित है।   

पिछले साल 11 मई को एक ऐतिहासिक आदेश में शीर्ष अदालत ने राजद्रोह संबंधी औपनिवेशिक युग के दंडात्मक कानून पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी, जब तक कि ‘उचित’ सरकारी मंच इसकी समीक्षा नहीं करता। इसने केंद्र और राज्यों को इस कानून के तहत कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं करने का निर्देश दिया था।  शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी थी कि देशभर में राजद्रोह कानून के तहत जारी जांच, लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाही पर भी रोक रहेगी।(एजेंसी)